Advertisement
छह महीने से नहीं हो सका आयोग का पुनर्गठन
झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग पिछले छह माह से अध्यक्ष व सदस्य विहीन है. इसका पुनर्गठन नहीं हुआ है़ आयोग कार्यालय में सचिव के अतिरिक्त एक प्रशाखा पदाधिकारी, दो सचिवालय सहायक, तीन निजी सहायक, एक टंकक और दो आदेशपाल के पद स्वीकृत हैं, पर इसके विरुद्ध विभागीय सचिव, एक प्रशाखा पदाधिकारी व एक आदेशपाल (कल्याण विभाग […]
झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग पिछले छह माह से अध्यक्ष व सदस्य विहीन है. इसका पुनर्गठन नहीं हुआ है़ आयोग कार्यालय में सचिव के अतिरिक्त एक प्रशाखा पदाधिकारी, दो सचिवालय सहायक, तीन निजी सहायक, एक टंकक और दो आदेशपाल के पद स्वीकृत हैं, पर इसके विरुद्ध विभागीय सचिव, एक प्रशाखा पदाधिकारी व एक आदेशपाल (कल्याण विभाग से प्रतिनियुक्त पर) ही कार्यरत है़ं दिहाड़ी वेतन पर एक झाड़ू लगानेवाला व एक ड्राइवर भी है़.
रांची: राज्य की लगभग 20 फीसदी धार्मिक व 19 प्रतिशत भाषायी अल्पसंख्यक आबादी परेशान है कि अपनी शिकायत लेकर कहां जायें. आयोग के सदस्यों को जो वेतन व भत्ता मिलने चाहिए, वह नहीं मिलता. यह सिर्फ अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को मिलता है. बिहार सहित देश के कई राज्यों में राज्य अल्पसंख्यक आयोग में महिलाओं को सदस्य बनाया जाता है, पर झारखंड में कभी किसी महिला को सदस्य नहीं बनाया गया. इससे महिलाओं को अपनी समस्याओं को लेकर सामने आने में झिझक महसूस होती है.
झारखंड में 11 जून 2001 को हुआ गठन : झारखंड सरकार ने 11 जून 2001 को इस आयोग का गठन किया. वर्ष 2001 से 2016 तक इसका गठन चार बार हुआ है. मो कमाल खां आयोग के पहले अध्यक्ष बनाये गये. वहीं प्रो नर्मिल कुमार चटर्जी दूसरे, डॉ गुलफाम मुजीबी तीसरे और डॉ शाहिद अख्तर चौथे अध्यक्ष बनाये गये. डॉ अख्तर का कार्यकाल आठ जनवरी 2016 को समाप्त हो गया. पूर्व अध्यक्ष डॉ शाहिद अख्तर ने बताया कि आयोग में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष व आठ सदस्यों का मनोनयन हो सकता है. पर अब तक आयोग का कभी भी पूर्णरूपेण गठन नहीं हुआ. न ही अल्पसंख्यक घोषित सभी समुदायों को प्रतिनिधित्व मिला. राज्य में धार्मिक अल्पसंख्यकों में मुसलिम, ईसाई, पारसी, बौध व जैन समुदाय शामिल हैं, वहीं भाषायी अल्पसंख्यकों में बांग्ला व उड़िया भाषियों को शामिल किया गया है. स्थापना के समय से ही आयोग के कार्यों का निष्पादन अध्यक्ष व उपाध्यक्षों के निजी कर्मियों द्वारा होता है. सरकार के द्वारा स्वीकृत पदों के विरुद्ध नियुक्तियां नहीं होना विभाग के लिए हमेशा कठिनाई का सबब बना.
वित्तीय वर्ष 2016-2017 के लिए 29़10 लाख का आवंटन : सचिव नेसार अहमद ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2016-2017 के लिए 29़10 लाख का आवंटन मिला है़ इसमें वेतन मद के 20 लाख रुपये, मजदूरी के तीन लाख, एलटीसी के 10 हजार, टीए के 50 हजार, कार्यालय के 50 हजार, मशीन व उपकरणों के 50 हजार, मुद्रण के एक लाख, प्रचार-प्रचार व सेमिनार के 25 हजार, दूरभाष के 25 हजार व मरम्मत के तीन लाख रुपये शामिल है़ं
आयोग के कार्य : आयोग को अल्पसंख्यकों की शिकायतों पर सुनवाई कर कार्रवाई करने का अधिकार है. इसके अतिरिक्त अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने, उनके सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक उत्थान के लिए अध्ययन, शोध, विश्लेषण व अनुशंसा करने की शक्ति है. यदि अल्पसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव होता है, कहीं दंगा होता है, अल्पसंख्यकों को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो उसकी भरपाई दिलाने और जिनके द्वारा यह किया जाता है, उन पर कार्रवाई की अनुशंसा करने का अधिकार आयोग का है. यदि ऐसी घटनाओं में पुलिस-प्रशासन के लोग संलिप्त हैं, तब आयोग उनके निलंबन व विभागीय कार्रवाई के लिए राज्य सरकार से अनुशंसा कर सकता है.
कई उपलब्धियां भी हैं खाते में : राज्य गठन के बाद से आयोग के प्रयास से अल्पसंख्यकों के हित में कई योजनाएं चलायी गयीं. इनमें छात्रावास निर्माण, कब्रिस्तान की घेराबंदी, अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना, कियोस्क निर्माण व कोचिंग कार्यक्रम शामिल हैं. कई अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाया गया. शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत कई गरीब बच्चों का नामांकन भी निजी स्कूलों में कराया गया है. डॉ शाहिद अख्तर के कार्यकाल में अल्पसंख्यक आयोग को सूचना तकनीक से लैस करने का प्रयास हुआ. वेबसाइट के माध्यम से आयोग की गतिविधियों की जानकारी आम लोगों को उपलब्ध कराने व शिकायत दर्ज कराने की सुविधा दी गयी. हेल्पलाइन नंबर भी जारी हुआ. सभी अल्पसंख्यक समुदायों के साथ बैठक कर उनकी समस्याओं से अवगत हो कर उसे दूर करने की दिशा में कार्रवाई हुई. जन संवाद कार्यक्रम भी हुए.
अल्पसंख्यक परेशान, अपनी समस्याएं लेकर जायें तो जायें कहां
इन योजनाओं पर असर
अल्पसंख्यक आयोग केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा करता है और जिला व राज्यस्तरीय समीक्षा बैठक कर उन्हें सही ढंग से लागू कराने का प्रयास करता है. आयोग के क्रियाशील नहीं होने से कई योजनाओें पर विपरीत असर पड़ रहा है.
साइबर ग्राम योजना : इस योजना के तहत 50 हजार विद्यार्थियों को कंप्यूटर का प्रशिक्षण देना है. उन्हें 40 घंटे का कोर्स करा कर आइटी विभाग का सर्टिफिकेट दिलाना है. इससे उन्हें रोजगार पाने में मदद मिलेगी. झारखंड में यह योजना जनवरी तक शुरू होनी थी, पर ऐसा नहीं हुआ है़ वहीं कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल व कई अन्य राज्यों में यह योजना पिछले वित्तीय वर्ष में समाप्त भी हो चुकी है.
अल्पसंख्यकों को ऋण : छोटे कारोबार के लिए अल्पसंख्यकों को नेशनल माइनॉरिटी फाइनांशियल कारपोरेशन से ऋण मुहैया कराने की योजना है. दिसंबर में राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने समीक्षा बैठक की थी, जिसमें विभाग के पदाधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि 15 जनवरी 2016 तक इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी जायेगी, पर अब तक ऐसा नहीं हुआ है़
छात्रवृत्ति : राज्य अल्पसंख्यक आयोग अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के आवेदनों की त्रुटियों को दूर कर छात्रवृत्ति दिलाने में मदद कर रहा था, पर अब इसमें देरी हो रही है.
मानस स्कीम : अल्पसंख्यकों के कौशल विकास व उन्हें रोजगार से जोड़ने के लिए मौलाना आजाद नेशनल एकेडमी फॉर स्किल (मानस) स्कीम है. इसका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है, जबकि यह बिहार व महाराष्ट्र में चल रहा है.
आवासीय विद्यालयों का निर्माण: अल्पसंख्यक आयोग ने कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों की तर्ज पर अल्पसंख्यक बहुल प्रखंडों में आवासीय विद्यालय खोलने की योजना बनायी थी. पर अब यह अधर में है. इसके अतिरिक्त मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्लान (एमएसडीपी), कब्रिस्तानों की घेराबंदी, छात्रवास निर्माण आदि योजनाएं भी विभागों के साथ समीक्षा बैठक नहीं होने से अटकी पड़ी हैं.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement