नामकुम: आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कृषि व आजीविका के मौजूदा संसाधनों के संवर्धन पर देश भर के कृषि वैज्ञानिक अपनी बातों को हार्प में आयोजित समर स्कूल के दौरान रखेंगे. मंगलवार को इस 21 दिनों के सत्र का शुभारंभ हुआ.
मौके पर भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के निदेशक डॉ आर रमणी ने कहा कि हमारे गांवों में पारंपरिक तौर पर फलों का उत्पाद होता है, पर व्यवसाय के तौर पर हम उन्हें नहीं अपनाते. उन्होंने कटहल का उदाहरण देते हुए कहा कि झारखंड में इस फल का उपयोग सब्जी की तरह होता है. हमें मौजूदा संसाधनों का ही उपयोग कर कटहल के उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में कार्य करना चाहिए़ आरसीएआर आरसीइआर के निदेशक डॉ बीपी भट्ट ने कहा कि ट्राइबल एग्रीकल्चर वनों पर आधारित होता है, चूंकि यह खेती व आजीविका दोनों को जोड़ता है. यह पद्घति इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालता है. साथ ही ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में खेती की यह पद्घति काफी कारगर साबित होती है.
कई राज्य के लोग शामिल
प्राकृतिक संपदा को उपयोग में लाकर इस पद्घति द्वारा आदिवासी इलाकों में आजीविका के साधनों को कैसे बढ़ाया जाये, इस सत्र के दौरान इन्हीं मुद्दों पर चर्चा की जायेगी. जम्मू कश्मीर, अरुणाचलप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल तथा ओड़िशा से आये 22 प्रतिभागी इस समर स्कूल में हिस्सा ले रहे हैं. कार्यक्रम के उदघाटन के दौरान डॉ एके सिंह, डॉ विकास दास सहित हार्प के अन्य वैज्ञानिक उपस्थित थे.