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मनोचिकित्सालयों में बढ़ रही मरीजों की तादाद, लोगों में बढ़ रहा दबाव ,हर दिन 800 मनोरोगी आ रहे इलाज कराने

रांची: राज्य में मनोरोगियों की संख्या बढ़ रही है. झारखंड में दो सरकारी मनोचिकित्सालय हैं, पहला केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीपीआइ) और दूसरा रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एलायड साइंस (रिनपास). आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में इन दोनों मनोचिकित्सालयों में मरीजों की संख्या बढ़ी है. मौजूदा समय में रोजाना करीब 600 मरीज इलाज […]

रांची: राज्य में मनोरोगियों की संख्या बढ़ रही है. झारखंड में दो सरकारी मनोचिकित्सालय हैं, पहला केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीपीआइ) और दूसरा रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एलायड साइंस (रिनपास). आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में इन दोनों मनोचिकित्सालयों में मरीजों की संख्या बढ़ी है.

मौजूदा समय में रोजाना करीब 600 मरीज इलाज के लिए यहां आ रहे हैं. 2015-16 में राज्य के दोनों अस्पतालों में इलाज के लिए एक लाख 68 हजार 140 मरीज आये. रिनपास में करीब एक लाख 252 और सीआइपी के 77 हजार 431 मरीज लाये गये़ इसके अतिरिक्त राज्य के अन्य मनोचिकित्सालयों (निजी अस्पताल व क्लीनिक) में भी करीब 200 मरीज हर दिन आ रहे हैं. राजधानी में करीब एक दर्जन से अधिक चिकित्सक निजी रूप से मनोरोगियों का इलाज करते हैं. एक निजी अस्पताल भी है.

अस्पतालों पर बढ़ा दबाव
पिछले 10 वर्षों में मनोरोग के अस्पतालों पर दबाव भी बढ़ा है. वर्ष 2006-07 में केवल रिनपास के ओपीडी में मनोरोग का इलाज कराने के लिए 39 हजार 757 मरीज आये थे. 10 वर्षों में यह संख्या बढ़ कर एक लाख 252 हो गयी है. मतलब मरीजों की संख्या में करीब ढाई गुना वृद्धि हुई है. 2006-07 में रिनपास में करीब 1846 मरीज भरती थे. यह संख्या वर्ष 2015-16 में बढ़ कर करीब 2430 हो गयी है.
महिलाएं भी नहीं हैं पीछे
इलाज के लिए आनेवालों में महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है. 10 वर्षों में इनकी संख्या भी तकरीबन तीन गुना बढ़ी है. वर्ष 2006-07 में 11274 महिलाएं रिनपास के ओपीडी में आयी थीं. आज यह संख्या बढ़ कर 37 हजार 652 हो गयी है. वर्ष 2006-07 में इलाज के लिए 28493 पुरुष मरीज आये थे, यह संख्या बढ़ कर 67 हजार 600 हो गयी है.
आउटरिच में घटी मरीजों की संख्या
रिनपास के चिकित्सक राज्य के दूसरे जिलों में जाकर भी मरीजों का इलाज करता है. वहां के मरीजों को मुफ्त में दवाएं भी दी जाती हैं. वर्ष 2006-07 में रिनपास ने अाउटरिच कार्यक्रम के तहत 25 हजार 502 मरीजों का इलाज किया था. वर्ष 2013-14 तक यह संख्या 33 हजार 297 हो गयी थी. हालांकि यह पिछले दो वर्षों में घट कर 20 हजार के करीब आ गयी है.
क्या कहते हैं चिकित्सक पिछले कुछ वर्षों में मनोरोग एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है. यह कहा जा रहा है कि 2020 तक डिप्रेशन और अन्य मनोरोग दुनिया की बड़ी चुनौती होगी. आनेवाले कुछ वर्षों में यह दूसरी बड़ी बीमारियों से आगे हो जायेगी. ड्रग और अलकोहल के कारण भी तनाव बढ़ रहे हैं. – डॉ डी राम, निदेशक, सीआइपी
यह बीमारी नयी चुनौतियों के साथ हमारे सामने आ रही है. इसके बावजूद हम इससे लड़ने के लिए अब तक तैयार नहीं हैं. मनोरोग का कारण केवल पुरानी तरह का तनाव या नशे की लत नहीं हैं. कई नयी तरह की लत सामने आ रही हैं. इंटरनेट व मोबाइल की लत, सोशल साइट का नकारात्मक असर भी मनोरोग बना रहा है. – डॉ सिद्धार्थ, सीनियर रेजीडेंट, रिनपास

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