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गिरफ्तार कई नक्सलियों- उग्रवादियों ने पुलिस के सामने पूछताछ में किया खुलासा, जमीन विवाद के कारण बन गये नक्सली

रांची : झारखंड में जमीन और उससे उत्पन्न आपसी विवाद का बदला लेने के लिए अधिकांश लोग बड़े नक्सली और उग्रवादी बने. इस बात का खुलासा पुलिस के समक्ष पूछताछ के दौरान हाल ही में गिरफ्तार नक्सली और उग्रवादी कर चुके हैं. संगठन में शामिल होने के बाद कुछ लोगों ने विवाद का बदल तो […]

रांची : झारखंड में जमीन और उससे उत्पन्न आपसी विवाद का बदला लेने के लिए अधिकांश लोग बड़े नक्सली और उग्रवादी बने. इस बात का खुलासा पुलिस के समक्ष पूछताछ के दौरान हाल ही में गिरफ्तार नक्सली और उग्रवादी कर चुके हैं. संगठन में शामिल होने के बाद कुछ लोगों ने विवाद का बदल तो ले लिया. लेकिन संगठन में शामिल होने के बाद उनका परिवार से संबंध टूट गया और उन्हें गांव छोड़ना पड़ा. इस वजह से नक्सलियों और उग्रवादियों के पास वर्तमान में इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके परिवार को जमीन वापस मिली या नहीं.

नक्सली कुंदन पाहन भी पैतृक जमीन वापस पाने के लिए 1999 में नक्सली बना था. पीलएफआइ का उग्रवादी जेठा कच्छप के चाचा की हत्या गांव के फूलचंद महतो ने जमीन विवाद में कर दी थी. इसी विवाद का बदला लेने के लिए जेठा कच्छप पहले नक्सली संगठन में शामिल हुआ. बाद में उग्रवादी संगठन पीएलएफआइ में शामिल हुआ. उसने फूलचंद की हत्या कर जमीन विवाद का बदला लिया. वहीं दूसरी ओर लापुंग थाना क्षेत्र निवासी प्रेमनाथ उरांव 16 वर्ष की उम्र में जमीन विवाद का बदला लेने के लिए नक्सली संगठन में शामिल हो गया और धीरे-धीरे बड़ा नक्सली बन गया.

जमीन पर रिश्तेदारों ने किया कब्जा, तो बदला लेने के लिए कुंदन पाहन बन गया नक्सली
केस- 1
आज पुलिस की हिटलिस्ट में शामिल नक्सली कुंदन पाहन भी कभी साधारण इंसान हुआ करता था़ नक्सली बनने से पहले कुंदन पाहन के परिवार के पास करीब 1600 एकड़ पैतृक खूंटकटी जमीन थी. जमीन की रसीद कुंदन पाहन के रिश्तेदार मानकी बैजनाथ पाहन के नाम से कटता था़ उपरोक्त जमीन में कुंदन पाहन के परिवार का हिस्सा करीब 500 एकड़ था. लेकिन कुंदन पाहन के पिता का कब्जा मात्र 100 एकड़ जमीन पर था. बाद में धीरे-धीरे बैजनाथ पाहन 100 एकड़ जमीन से भी कुंदन पाहन के परिवार को बेदखल करने लगा. इसका विरोध करने पर कुंदन पाहन के भाई डिंबा पाहन को पीटा भी गया. इस घटना के बाद कुंदन पाहन का परिवार चप्पुडीह से भाग कर तमाड़ के बारूहातू गांव पहुंचा और बारूहातू निवासी गिरधर सिंह के यहां रहने लगा. गिरधर सिंह की भी करीब 500 एकड़ जमीन थी. 1999 के जनवरी माह में गिरिडीह से नक्सली मिथिलेश, तेजलाल उर्फ डेविड, ईश्वर महतो, गिरिश महतो, रामचंद्र गंझू और मितन सहित अन्य नक्सली गांव पहुंचे. सभी ने कुंदन पाहन को उसकी पैतृक जमीन वापस दिलाने का भरोसा दिलाया. जमीन विवाद का बदला और जमीन वापस पाने के लिए कुंदन पाहन नक्सली बन गया. संगठन में शामिल होने के बाद उसके रिश्तेदारों ने कुंदन पाहन के हिस्से की जमीन उसे लौटाने का निर्णय लिया था़ लेकिन पुलिस के रिकॉर्ड में नाम आने के बाद वह इधर से उधर भागता फिरता रहा़ बाद में कुंदन पाहन को उसकी जमीन मिली या नहीं. इस बात का उल्लेख खुफिया विभाग द्वारा कुंदन पाहन के संबंध में तैयार किये गये दस्तावेज में नहीं है.
केस- 2
चाचा की हत्या का बदला लेने के लिए उग्रवादी बना जेठा कच्छप
पीएलएफआइ के बड़े उग्रवादी जेठा कच्छप को पुलिस ने चार अगस्त, 2014 को तुपुदाना ओपी क्षेत्र से गिरफ्तार किया था. तब जेठा ने पुलिस को बताया था कि वह पूर्व में गुजरात में गाड़ी चलाने का काम करता था. वह तीन साल बाद गांव लौटा और खेतीबारी करने लगा. इसी बीच जेठा कच्छप के चाचा की गांव के लोगों ने जमीन विवाद में हत्या कर दी. हत्या करनेवाले ने जेठा को भी घर नहीं आने की धमकी दी. इस दौरान नक्सली संगठन के कुछ लोग जेठा कच्छप के गांव में सक्रिय थे. नक्सलियों को जेठा ने बताया कि मेरे चाचा की हत्या गांव के ही फूलचंद ने की है. इस पर जेठा को नक्सली सुखु मंडा ने जमीन विवाद में उसके चाचा की हत्या का बदला लेने का आश्वासन देकर संगठन में शामिल होने को कहा, लेकिन नक्सलियों ने जेठा की मदद नहीं की. बाद में जेठा की मुलाकात पीएलएफआइ के उग्रवादी राज कमल गोप के साथ हुई. राज कमल से कार्रवाई का भरोसा मिलने पर जेठा पीएलएफआइ संगठन में शामिल हो गया और सितंबर, 2008 में राज कमल गोप के साथ मिल कर फूलचंद की गाेली मार कर हत्या कर बदला लिया.
केस- 3
जमीन विवाद की वजह से नक्सली बना प्रेमनाथ उरांव
लापुंग थाना क्षेत्र के लोहागढ़ा निवासी नक्सली प्रेमनाथ उरांव ने गत सोमवार को डीजीपी और एसएसपी के समक्ष सरेंडर किया. उसने जेल जाने से पहले पुलिस को बताया कि गांव में उसके परिवार के नाम पर करीब 15 एकड़ जमीन थी. जमीन को लेकर गांव के कुछ लोगों से उनका विवाद हुआ था. जमीन विवाद को लेकर केस भी चल रहा था. लेकिन फैसला नहीं हो पा रहा था. इसी बीच वर्ष 2001 में 16 वर्ष की आयु में वह नक्सली कमांडर तेजू मुंडा के संपर्क में आया. तेजू मुंडा ने उसे जमीन विवाद सुलझाने का आश्वासन दिया. जमीन विवाद का बदला लेने के लिए बाद में प्रेमनाथ उरांव नक्सली संगठन में शामिल हो गया और धीरे-धीरे घटनाओं को अंजाम देते हुए जोनल कमांडर बन गया. जब पुलिस ने उसे पूछा कि संगठन में आने के बाद तुम्हारी जमीन का विवाद सुलझा या नहीं. तब उसने बताया था कि संगठन में शामिल होने के बाद अधिकांश समय मैं गांव से बाहर ही रहा. इस वजह से मुझे इस विषय में अब कोई जानकारी नहीं है.

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