रांची: वन भूमि में गुजर-बसर करने वाले लोगों को वन पट्टा देने को लेकर कल्याण विभाग गैर सरकारी संस्थाअों का सहयोग ले रहा है. मुख्य रूप से दो संस्था की मदद ली जा रही है. इनमें झारखंड वन अधिकार मंच तथा पुअरेस्ट एरिया सिविल सोसाइटी शामिल हैं. वहीं ये दोनों संस्थाएं जिला स्तर पर अन्य […]
रांची: वन भूमि में गुजर-बसर करने वाले लोगों को वन पट्टा देने को लेकर कल्याण विभाग गैर सरकारी संस्थाअों का सहयोग ले रहा है. मुख्य रूप से दो संस्था की मदद ली जा रही है. इनमें झारखंड वन अधिकार मंच तथा पुअरेस्ट एरिया सिविल सोसाइटी शामिल हैं. वहीं ये दोनों संस्थाएं जिला स्तर पर अन्य एनजीअो की मदद ले रही हैं.
संस्थाअों का काम वन पट्टा के लिए लोगों को जागरूक करना, उनसे आवेदन दिलाना तथा इसे विभिन्न चरणों में अग्रसारित कराने में सहयोग करना है. विभाग ने 15 अगस्त तक करीब 3.5 लाख वनवासियों को जीविकोपार्जन के लिए वन भूमि का अधिकार (पट्टा) देने का निर्णय लिया है. इनमें 3.30 लाख व्यक्तिगत तथा 4482 सामूहिक पट्टा देने का लक्ष्य है. इनमें पहले से फंसे मामले भी शामिल हैं. वन भूमि तथा वहां रह रही आबादी के आधार पर यह लक्ष्य जिलावार तय किया गया है.
गौरतलब है कि अब तक राज्य भर के करीब 52 हजार लोगों ने वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत वन भूमि का पट्टा लेने के लिए आवेदन दिये हैं. इनमें से लगभग 20 हजार लोगों को ही पट्टा मिला है, जिसका रकबा लगभग 45 हजार एकड़ है. करीब 18 हजार आवेदन निरस्त कर दिये गये हैं. वहीं करीब 14 हजार लंबित हैं. सरकार इस उपलब्धि से खुश नहीं है.
क्या है वन अधिकार अधिनियम : वन अधिकार अधिनियम वनों में रहनेवाले परंपरागत निवासी व वन वासियों को वन भूमि व अन्य संसाधनों की सहायता से जीवन यापन का अधिकार देता है. वनों में रहनेवाले जनजातीय (एसटी) समुदाय के लोग, जो 13 दिसंबर 2005 से पहले से वनों पर निर्भर हैं, उन्हें इस अधिनियम के तहत वन भूमि पट्टा देने का प्रावधान है. वहीं उन गैर जनजातीय लोगों को भी पट्टा दिया जाना है, जो 13 दिसंबर 2005 से पूर्व तीन पीढ़ियों (75 वर्षों) से जंगलों में रह रहे हैं.
क्या है प्रक्रिया : वन भूमि का पट्टा पाने के लिए लाभुक ग्रामसभा को आवेदन देते हैं. ग्राम सभा इसे स्वीकार करने से पहले ग्रामीण वन अधिकार समिति को प्राधिकृत करती है. ग्रामीण समिति आवेदन को सत्यापित कर ग्राम सभा को लौटाती है. ग्राम सभा समिति के निष्कर्षों पर विचार कर संकल्प पारित करती है तथा आवेदन अनुमंडल वन अधिकार समिति (एसएलडीसी) को अग्रसारित कर दिया जाता है. एसएलडीसी की ओर से आवेदन की जांच कर इसे जिला स्तरीय समिति को भेज दिया जाता है. वहां स्वीकृत हो जाने पर वन भूमि पट्टा संबंधित व्यक्ति को मिल जाता है. व्यक्तिगत दावा के लिए आवेदन (फॉर्म-क) तथा सामुदायिक दावा के लिए आवेदन (फॉर्म-ख) पंचायत भवन व प्रखंड कार्यालय में नि:शुल्क उपलब्ध है.
क्या-क्या मिलता है अधिकार : निवास स्थान की भूमि पर खेती का अधिकार. लघु वन उत्पादों के संग्रह, उपयोग, स्वामित्व व व्ययन का अधिकार. घुमक्कड़ जातियों को वनों में स्थित जलाशय व नदियों से मछली पकड़ने तथा अन्य मौसमी संसाधनों तक पहुंच का अधिकार. आदिम जनजाति को वन भूमि सामुदायिक रूप से धारित करने का अधिकार. वन ग्राम व बसावट को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने का अधिकार तथा पुनर्वास के बगैर विस्थापित/बेदखल किये जाने पर यथावत पुनर्वास का अधिकार.