साथ ही संताली भाषा के प्रचार-प्रसार, समृद्ध अौर विकसित करने के लिए बनी ‘आसेका’ कमेटी से जुड़े थे. इससे उनका मातृभाषा के प्रति लगाव बढ़ता गया. इस तरह उसने साहित्य लिखने की सोची. फिर एक कविता संग्रह को प्रकाशन भी किया. धुआं ओटांगो काना उनकी पहली पुस्तक है.
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संताली के लिए परिमल हांसदा पुरस्कृत
रांची/जमशेदपुर: पश्चिम बंगाल के 30 वर्षीय संताली साहित्यकार परिमल हांसदा को वर्ष-2016 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला है़ उन्हें यह पुरस्कार कविता संग्रह पुस्तक ‘धुंआ ओटांगो काना’ के लिए मिला है. गुरुवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा की गयी. परिमल हांसदा पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के रांटामाटिया गांव(कमलपुर प्रखंड) के रहने वाले […]
रांची/जमशेदपुर: पश्चिम बंगाल के 30 वर्षीय संताली साहित्यकार परिमल हांसदा को वर्ष-2016 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला है़ उन्हें यह पुरस्कार कविता संग्रह पुस्तक ‘धुंआ ओटांगो काना’ के लिए मिला है. गुरुवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा की गयी.
परिमल हांसदा पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के रांटामाटिया गांव(कमलपुर प्रखंड) के रहने वाले हैं. उन्होंने अब तक कई नाटक और कविताएं लिखी हैं, लेकिन उन्हें पुस्तकों का रूप नहीं दे सके हैं. साइंस ग्रेजुएट परिमल हांसदा मिदनापुर के दासपुर विवेकानंद हाइस्कूल में गणित के शिक्षक हैं. वे बच्चों को पढ़ाने के साथ साहित्य सृजन के कार्य में काफी दिलचस्पी रखते हैं.
मातृभाषा प्रेम ने साहित्य सृजन के लिए प्रेरित किया: परिमल हांसदा बताते हैं कि स्कूली जमाने से ही साहित्य लेखन में काफी रुचि रखते थे. जब स्कूल में पढ़ते थे़, उसी वक्त संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के आंदोलन बढ़-चढ़कर भाग लेते थे.
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