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गरमी में सूख गयीं झारखंड की 141 छोटी-बड़ी नदियां

रांची : झारखंड में हर वर्ष करीब 1100 से 1400 मिमी बारिश होती है. इसके बाद भी पूरा राज्य जल समस्या से जूझ रहा है. किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है. लोग पीने के पानी के लिए भी तरस रहे हैं. इसका मुख्य कारण है, झारखंड की नदियों का बरसाती होना. […]

रांची : झारखंड में हर वर्ष करीब 1100 से 1400 मिमी बारिश होती है. इसके बाद भी पूरा राज्य जल समस्या से जूझ रहा है. किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है. लोग पीने के पानी के लिए भी तरस रहे हैं. इसका मुख्य कारण है, झारखंड की नदियों का बरसाती होना.
बरसात के दौरान यहां की नदियों में पानी लबालब होता है और इसके बाद इनमें पानी कम होने लगता है. इसके अलावा प्रदूषण और मौसम की मार के कारण भी झारखंड की नदियां सिमटती जा रही हैं. वर्ष 2001 से तुलना की जाये, तो मौसम में आये बदलाव के कारण देश के दूसरे इलाकों की तरह झारखंड में भी मुख्य नदियां गरमी शुरू होते ही सूख गयीं. इस साल गरमी में झारखंड में छोटी-बड़ी करीब 141 नदियां सूख गयी. पलामू, लातेहार, देवघर, दुमका, गुमला, चतरा, बोकारो, खूंटी और गिरिडीह में तो सारी नदियां सूख गयी. गरमी शुरू होने से पहले ही इन जिलों की नदियों से पानी गायबहो गया.
पलामू प्रमंडल की हालत सबसे खराब
सबसे बुरी स्थिति पलामू प्रमंडल की है. इस प्रमंडल के तीन जिलों (पलामू, लातेहार, गढ़वा) की 30 नदियों में 26 गरमी शुरू होने से पहले ही पूरी तरह सूख गयी. पलामू की प्रमुख नदी कोयल व अमानत में इस बार मार्च से ही पानी गायब हो गया था. गरमी में शेष चार नदियों का पानी भी गायब हो गया. पलामू की सदाबह नदी में कभी पानी कम नहीं होता था़ पर इस बार यह नदी भी सूख गयी. बुजुर्ग बताते हैं कि 50 साल में उन्होंने कभी अमानत नदी को सूखते नहीं देखा, पर इस बार इसमें भी पानी नहीं है़
गुमला की सभी 13 नदियां सूखी
दक्षिणी छोटानागपुर में गुमला जिले की स्थिति सबसे खराब है. जिले की सभी 13 नदियों से पानी गायब हो गया. गुमला में शंख, उत्तरी कोयल, पारस, नागफेनी प्रमुख नदियां हैं, पर गरमियों में इनमें सिर्फ रेत दिखता रहा. खूंटी जिले में भी सभी तीन नदियां सूख गयी. उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में चतरा की हालत अधिक खराब है. जिले की सभी 17 छोटी-बड़ी नदियां गरमी की पहली मार भी सह नहीं पायी और बेपानी हो गयी. कोडरमा में 15 में 12 नदियां सूख गयी.
संताल में देवघर और दुमका की सभी नदियां इस बार गरमी से पहले ही सूख चुकी थी़ मूलत: राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में बसे पाकुड़ जिले की नदियां भी अब अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं. करीब 20 वर्ष पूर्व जिले में 15099.46 हेक्टेयर क्षेत्रफल में घने जंगल हुआ करते थे. स्थानीय लोगों के अनुसार, इससे पर्यावरण अनुकूल रहता था. पर अब स्थिति काफी खराब हो गयी. संताल परगना से होकर गुजरनेवाली गंगा में भी इस बार गरमियों में पानी कम हो गया.
जलप्रपातों में भी पानी नहीं
नदियों में पानी नहीं होने से राज्य के प्रमुख जल प्रपात भी सूख गये हैं. रांची और खूंटी के प्रसिद्ध व खूबसूरत जलप्रपातों में इस बार समय से पहले ही पानी खत्म हो गया. अनगड़ा का जोन्हा फॉल 25 अप्रैल के बाद सूखता था, पर इस बार मार्च से ही सूख गया. हुंडरू फॉल में भी पानी नहीं था. कुछ जलप्रपातों की जलधारा पतली और कमजोर हो गयी थी.
लगातार बदल रहे हालात
करीब 20 से 25 वर्ष पूर्व हालात इतने खराब नहीं थे. नदियों के किनारे अतिक्रमण और उनके प्रदूषित होने से हालात लगातार बदल रहे हैं. राज्य सरकार मानती है कि सतही जल की उपलब्धता में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है. पर नदियां प्रदूषित हो रही हैं और सिमट रही हैं. राजधानी रांची की हरमू और बोकारो व धनबाद की दामोदर नदी इसका एक उदाहरण है. झारखंड बनने के बाद नदियों का अतिक्रमण और उनमें प्रदूषण दोनों बढ़ा है.
खासकर, स्वर्णरेखा व दामोदर नदी में प्रदूषण का खतरा ज्यादा है. सरकार के निर्देश के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की कोल कंपनियों और पावर प्लांटों से दामोदर और उसकी सहायक नदियां लगातार प्रदूषित हो रही हैं. दामोदर की सबसे बड़ी सहायक नदी कोनार की स्थिति भी खराब है. मंत्री सरयू राय के मुताबिक, दामोदर वैली कॉरपोरेशन के बोकारो थर्मल पावर स्टेशन (बीटीपीएस ) ने नया ऐश पौंड बनाया है, पर उसमें से ओवरफ्लो होकर सारा दूषित पानी कोनार नदी और अन्य प्राकृतिक जलस्रोतों को प्रदूषित कर रहा है.
कहां कितनी नदियां सूखीं
जिला नदी सूखी
रांची 02 00
खूंटी 03 03
पलामू 04 04
गढ़वा 19 19
लातेहार 07 07
लोहरदगा 02 01
सिमडेगा 06 03
गुमला 13 13
कहां कितनी नदियां सूखीं
जिला नदी सूखी
हजारीबाग 32 06
रामगढ़ 11 10
कोडरमा 15 12
चतरा 17 17
देवघर 06 06
दुमका 05 05
पाकुड़ 04 03
गोड्डा 08 07
साहेबगंज 02 01
जामताड़ा 02 01
धनबाद 06 01
बोकारो 01 01
गिरिडीह 01 01
पू सिहंभूम 09 08
प सिंहभूम 14 10
सरायकेला 07 02
नहीं हो रही ठोस पहल
राज्य में 141 नदियों की धाराओं का मिट जाना गंभीर संकट है. इन नदियों पर निर्भर रहनेवाले लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय है. दुर्भाग्य से यह किसी के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. न सरकार को, न जन प्रतिनिधियों को और न ही बौद्धिक समाज को यह मुद्दा परेशान कर रहा है. अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई है. नदी, नालों और तालाबों पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है. इन्हें प्रदूषित किया जा रहा है. बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि पांच-छह दशक में उन्होंने पानी का ऐसा संकट नहीं देखा.
मॉनसून संकट के बावजूद हड़प्पा सभ्यता 3500 वर्षों तक बची रही, क्योंिक उस समय के लोग जंगल, नदी अौर तालाबों का महत्व समझते थे
लेिकन आज के लोग लोभी हैं. इसलिए मौजूदा सभ्यता हजार साल भी शायद पूरे न कर पाये

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