गालूडीह दायीं नहर के 22.50-22.83 किलोमीटर से 25.110-25.400 किलोमीटर तक मिट्टी और पीसीसी लाइनिंग का काम नेशनल कंस्ट्रक्शन को दिया गया था. इस काम के लिए 6.28 करोड़ रुपये का एस्टीमेट तैयार किया गया था, लेकिन ठेकेदार ने 15 प्रतिशत कम(5.34 करोड़) पर काम लिया. मई 2005 में किये गये एकरारनामे के तहत ठेकेदार को अप्रैल 2006 तक काम पूरा करना था, लेकिन पांच बार समय बढ़ाने के बावजूद काम पूरा नहीं हुआ और कानूनी लड़ाई के बाद ठेकेदार ने सरकार से 5.20 करोड़ रुपये का भुगतान भी ले लिया. स्वर्ण रेखा बहुद्देशीय परियोजना के मुख्य अभियंता ने 10 दिन के अंदर ठेकेदार के साथ एकरारनामा करने का आदेश दिया था, पर करीब डेढ़ माह बाद एकरारनामा किया गया. निर्धारित समय में काम पूरा नहीं होने के नाम पर मुख्य अभियंता ने काम पूरा करने के लिए 31 मार्च 2007 तक का समय दे दिया. समय बढ़ाने के बाद अधीक्षण अभियंता ने पूर्व निर्धारित काम के मुकाबले 19.07 लाख रुपये के अतिरिक्त काम की जरूरत बतायी. इसे मुख्य अभियंता ने स्वीकार कर लिया. इसके बाद ठेकेदार ने नौ मार्च 2007 को कार्यपालक अभियंता को एक पत्र लिखा. इसमें इस बात का उल्लेख किया कि विधि व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है.
असामाजिक तत्व काम नहीं करने दे रहे हैं. सीमेंट का दाम बढ़ गया है. इसलिए मूल्य वृद्धि के मुकाबले अंतर की राशि का भुगतान करें. असामाजिक तत्वों के नाम इंजीनियरों ने ठेकेदार को पांचवीं बार 31 मार्च 2010 तक काम पूरा करने का समय दिया. पर ठेकेदार ने ग्रामीणों द्वारा कार्य स्थल पर झंडा गाड़ने और काम में बाधा पहुंचाने के नाम पर काम करना बंद कर दिया.
ठेकेदार और इंजीनियरों के इस कारनामे की जांच में यह पाया गया कि कार्यपालक अभियंता ने 17 जनवरी 2009 को ठेकेदार को एक पत्र लिखा था. इसमें ठेकेदार को एकरारनामा रद्द करने की चेतावनी दी गयी थी. साथ यह कहा गया था कि इतने सारे स्मार पत्रों और आश्वासनों के बावजूद काम में प्रगति नगण्य है. ठेकेदार को लिखे गये इस चेतावनी भरे पत्र के 18 दिन बाद छह फरवरी 2009 को कार्यपालक अभियंता ने ठेकेदार के नाम एक प्रमाण पत्र जारी किया. इसमें यह लिखा गया कि काम संतोषप्रद और प्रगति पर है. इसके बाद मुख्य अभियंता ने काम में प्रगति नहीं होने और पांच बार समय देने के बावजूद अपेक्षित प्रगति नहीं होने के आधार पर ठेकेदार के साथ किये गये एकरारनामे को रद्द कर दिया. इसके बाद कानूनी विवाद शुरू हुआ और न्यायालय के आदेश के आलोक में ठेकेदार को 5.20 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा. इस तरह एक साल में पूरा होनेवाला काम पांच साल में भी पूरा नहीं हुआ.