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चिंता. कंक्रीट के जंगल से नहीं हो सकता जल संरक्षण

रांची : पद्मश्री सिमोन उरांव ने कहा कि राज्य में कंक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं, ऐसे में कहां से होगा जल संरक्षण. पानी की समस्या तो होगी ही. उन्होंने कहा कि राज्य में मनरेगा पूरी तरह फेल साबित हुआ है. मनरेगा से फिर तालाब खुदाई का काम चल रहा है. सरकार के बूते […]

रांची : पद्मश्री सिमोन उरांव ने कहा कि राज्य में कंक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं, ऐसे में कहां से होगा जल संरक्षण. पानी की समस्या तो होगी ही. उन्होंने कहा कि राज्य में मनरेगा पूरी तरह फेल साबित हुआ है. मनरेगा से फिर तालाब खुदाई का काम चल रहा है. सरकार के बूते तो वर्षा जल संरक्षण संभव नहीं है. इससे समुदायों को जोड़ना होगा. उक्त बातें श्री उरांव ने मंगलवार को होटल बीएनआर चाणक्या में सुखाड़, समुदाय और समाधान, झारखंड में समुदाय आधारित विकेंद्रित जल सुरक्षा पर आयोजित राज्यस्तरीय परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए कही. परिचर्चा का आयोजन प्रिया, अर्घ्यम और साथी संस्था की ओर से किया गया था.
श्री उरांव ने कहा कि जल संकट के लिए सरकार और हम सब जिम्मेवार हैं. शहर में गगनचुंबी इमारत बना रहे हैं. सड़क व नाली का पक्कीकरण किया जा रहा है. ऐसे में बारिश का जल धरती के भीतर कहां से जायेगा. शहर तो कंक्रीट में तब्दील हो गया है. वर्षा जल का ठहराव हो, इसकी चिंता किसी को नहीं है.

अब पहाड़ी के ढलान पर तालाब बना दिया जायेगा, तो क्या बारिश का जल बचेगा. उन्होंने कहा कि सरकार व जनता को मिल कर कुआं, तालाब, पोखर व डोभा बनाना होगा. उन्होंने कहा कि अभी गरमी है, तालाबों को और गहरा किया जाना चाहिए. सूखे हुए कुएं को और गहरा किया जाना चाहिए. जगह-जगह डोभा का निर्माण करना चाहिए, ताकि बारिश के पानी का ठहराव हो सके. नालियां बन रही हैं, तो बीच-बीच में 10-20 फीट का गड्ढा होना चाहिए, ताकि नाली का पानी धरती के अंदर जा सके. जहां नदियां हैं, वहां तीन हजार फीट पर छोटे-छोटे बांध बनाये जाने चाहिए, ताकि पानी रुक सके. नहीं तो सारा पानी नदी से होते हुए समुद्र में चला जायेगा.

ग्राम पंचायतों के स्तर पर होगा समाधान : हीरालाल प्रसाद : पेयजल विभाग के अभियंता प्रमुख हीरालाल प्रसाद ने कहा कि ग्राम पंचायतों को 14वें वित्त आयोग से मिलने वाली राशि और पेयजल एवं स्वच्छता विभाग से मिलने वाली राशि को जोड़ कर ग्राम पंचायतों के स्तर पर पीने के पानी की समस्या का समाधान समुदाय के लोग निकाल सकते हैं.उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष 12500 करोड़ का बजट रखा गया है, जिससे राज्य में सूखे की समस्या का दीर्घकालिक समाधान निकाला जा सके. उन्होंने बताया कि विभाग में मानव संसाधन की कमी के कारण समस्या का त्वरित समाधान निकालने में दिक्कत आ रही है. प्रिया के अध्यक्ष डॉ राजेश टंडन ने कहा कि सरकार के साथ लोगों के मन में यह बात घर कर गयी है कि पीने के पानी की समस्या का समाधान केवल हैंडपंप और बोरवेल के द्वारा ही किया जा सकता है़ इसे दूर करने की आवश्यकता है.
साथी संस्था के डाॅ नीरज कुमार ने कहा कि आज जिस रेन वाटर हार्वेस्टिंग की बात हम कर रहे हैं, उसे ग्रामीण सदियों से करते आ रहे हैं. पारंपरिक तरीके से ही पानी का संरक्षण किया जा सकता है. हजारीबाग जिला पंचायत की सदस्य प्रियंका कुमारी ने कहा कि राज्य सरकार को डोभा के बजाय पनसोखा निर्माण पर ध्यान देना चाहिए़ मौके पर अरविंद जी, अधीन महतो, आशा, सतीश कर्ण, निखिलेश मैती, मो एजाज, मरांग मरांडी, सुनीता स्वर्णकार आदि ने भी अपने विचार रखे. अतिथियों का स्वागत कुमार संजय ने किया व धन्यवाद ज्ञापन खुशबू सिन्हा ने किया.
अभी नहीं जगे, तो झारखंड भी बन जाएगा लातूर : प्रो हरीश्वर दयाल
इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट पूर्वी क्षेत्र केंद्र के निदेशक प्रो हरीश्वर दयाल ने कहा कि झारखंड में जलसंकट से निबटने के लिए बहुत सारे स्कोप अभी बचे हुए हैं. अगर अभी नहीं जगे, तो झारखंड भी लातूर बन जायेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाल के 10-15 वर्षों में पानी का दोहन हुआ है. इसमें सबसे अधिक योगदान बोरिंग व डीप बोरिंग का रहा है. यह सभी को समझना होगा कि बोरिंग कभी भी पानी का स्थाई विकल्प नहीं हो सकता है. विकल्प तो केवल वर्षा जल संरक्षण व वाटर हार्वेस्टिंग ही है. सभी को एक अभियान चला कर, सख्त कानून बना कर इस पर काम करना होगा. इसमें आम जनता की सहभागिता बहुत जरूरी है.
34 करोड़ लोग प्रभावित
प्रिया संस्था के डाॅ आलोक पांडेय ने कहा कि देश भर में 34 करोड़ लोग सूखे से प्रभावित हैं. स्वराज अभियान के मुताबिक 10 राज्यों के 254 जिले के 2.55 लाख गांव में पानी की कमी है. दो लाख गांवों में पानी पूरी तरह खत्म हो चुके हैं. इस देश में 500 से अधिक ऐसे औद्योगिक घराने हैं, जो सरफेस तथा ग्राउंड वाटर का दोहन कर रहे हैं. इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारों को एक कानून बनाना चाहिए.

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