पीएजी की ओर से सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि देवघर में स्पोर्ट्स कांप्लेक्स बनाने के लिए मेसर्स इंडियन प्रोग्रेसिव कंस्ट्रक्शन कंपनी को पहले वर्क आॅर्डर दिया गया. इसके बाद स्पोर्ट्स कांप्लेक्स की तकनीकी स्वीकृति दी गयी. एेसा करना गलत है, क्योंकि पीडब्ल्यूडी कोड के अनुसार बिना तकनीकी स्वीकृति के किसी काम का वर्क आर्डर नहीं दिया जा सकता है. निविदा के समय स्पोर्ट्स कांप्लेक्स निर्माण की प्राक्कलित राशि 14.41 करोड़ आंकी गयी थी. हालांकि निविदा निपटारे के बाद इस काम को 38 प्रतिशत अधिक पर दिया गया.
मुख्य अभियंता ने 11 मई 2015 को इस योजना की तकनीकी स्वीकृति दी. इस तरह स्पोट् र्स कांप्लेक्स का निर्माण कार्य पूरा करने के लिए निर्धारित समय के बाद योजना की तकनीकी स्वीकृति मिली. निर्माण कार्य से जुड़े दस्तावेड के ऑडिट के दौरान यह पाया गया कि स्पोट् र्स कांप्लेक्स के निर्माण के लिए ठेकेदार के साथ आठ नवंबर 2012 को एकरारनामा किया गया. एकरारनामे की शर्तों के अनुसार निर्माण कार्य 18 महीने अर्थात सात जून 2014 तक पूरा करना था.
हालांकि अब तक निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है. कार्यपालक अभियंता ने ठेकेदार द्वारा जमा कराये गये 54.21 लाख रुपये की बैंक गारंटी को ना तो भुनाया, ना ही समय खत्म होने के बाद उसकी अवधि बढ़वायी. ऑडिट के दौरान पाया गया कि बिना विस्तृत मापी के ही ठेकेदार को उसके काम के बदले 14.10 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है. ऑडिट टीम द्वारा इस सिलसिले में पूछे जाने पर स्थानीय स्तर पर यह कहा गया कि टर्न के आधार पर काम दिया गया है. इसलिए इसमें विस्तृत मापी की जरूरत नहीं है. पीएजी ने स्थानीय अधिकारियों के इस जवाब पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए यह जानना चाहा है कि बगैर विस्तृत मापी के यह कैसे पता लगाया जा सकता है कि ठेकेदार ने डिजाइन और स्पेशिफिकेशन के अनुरूप काम किया है? पीएजी ने बिना मापी के किये गये भुगतान को अनियमित बताते हुए इस पूरे प्रकरण में सरकार का पक्ष जानना चाहा है.