जेल में उन्हें किसने मोबाइल फोन दिया. उसने किससे बात की. इस प्रकरण में जेल के अधिकारी-कर्मचारियों की भी मिलीभगत हो सकती है. क्या अनुसंधानकर्ता ने उक्त बिंदुअों पर जांच की है. पूरे मामले की गहराई से जांच करने की जरूरत है. कोई भी बिंदु छुटने नहीं पाये. जरूरत पड़ी, तो जेलकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश कारा महानिरीक्षक को दिया जा सकता है. कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि याचिकाकर्ता प्रह्लाद प्रसाद साहू हत्याकांड की जांच के दाैरान इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस एकत्र किया गया या नहीं. कोर्ट ने एसपी को जांच से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट शपथ पत्र के माध्यम से दाखिल करने का निर्देश दिया. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह व जस्टिस एस चंद्रशेखर की खंडपीठ में हुई. राज्य सरकार की अोर से अपर महाधिवक्ता जय प्रकाश ने पक्ष रखा.
मालूम हो कि जन कल्याण समिति के संयोजक प्रह्लाद प्रसाद साहू ने जनहित याचिका दायर की थी. बाद में 15 जून 2015 को प्रार्थी की हत्या कर दी गयी. प्रार्थी ने याचिका में कहा था कि प्रदूषण बोर्ड से बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनअोसी) लिए ही टोरी-चंदवा क्षेत्र में कोयले का उत्खनन किया जा रहा था. इससे क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ रहा था. याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ फरवरी 2015 में याचिका दायर की थी आैर झारखंड स्टेट प्रदूषण बोर्ड व रेलवे को भी लिखित शिकायत की थी.