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हाल.वर्ष 2007 में शुरू होना था, अब तक नहीं बना सुपरस्पेशियालिटी अस्पताल, स्वास्थ्य मंत्री ने लौटायी फाइल
रांची: पीपीपी मोड में सुपर स्पेशियलिटी (सदर) अस्पताल के संचालन का मामला फेल होने के बाद सरकार अब इसे अपने स्तर से चलाने की बात कर रही है. करीब छह माह पहले ही सैद्धांतिक तौर पर यह निर्णय हो गया, पर इसकी फाइल मूवमेंट धीमी है. पीपीपी मोड निरस्त करने तथा अस्पताल के सृजन संबंधी […]
रांची: पीपीपी मोड में सुपर स्पेशियलिटी (सदर) अस्पताल के संचालन का मामला फेल होने के बाद सरकार अब इसे अपने स्तर से चलाने की बात कर रही है. करीब छह माह पहले ही सैद्धांतिक तौर पर यह निर्णय हो गया, पर इसकी फाइल मूवमेंट धीमी है. पीपीपी मोड निरस्त करने तथा अस्पताल के सृजन संबंधी फाइल देर से तैयार हुई. कई दिनों स्वास्थ्य मंत्री के पास रहने के बाद अब फाइल वित्त की मंजूरी के लिए भेजी गयी है. सरकार के कागजात के मुताबिक सुपर स्पेशियलिटी (सदर) अस्पताल, रांची को वर्ष मार्च 2007 में आंशिक रूप से तथा 2009 में पूरी तरह चालू हो जाना चाहिए था.
तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने यही कहा था. उन्होंने 17 अगस्त 2006 को अस्पताल के शिलान्यास के अवसर पर उम्मीद जतायी थी कि 500 बेड वाले इस अस्पताल की छवि विश्व स्तरीय होगी. पर इसका निर्माण ही 2008 में शुरू हुआ तथा 144 करोड़ रु खर्च होने के बाद अभी भी इसे पूरी तरह बनना बाकी है.
राजा राय दास बिड़ला के बनाये वार्ड को आज भी बिड़ला वार्ड के रूप में जाना जाता है. अभी इसके ग्राउंड फ्लोर में 24 फीमेल तथा 24 प्रसव वार्ड हैं. सरकार ने इसे एक धरोहर मानते हुए इस वार्ड को सही सलामत रखने का निर्णय लिया है. तय किया गया है कि इस भवन का इस्तेमाल 500 बेड वाले नये अस्पताल के प्रशासनिक भवन के रूप में होगा.
सदर अस्पताल का इतिहास
सदर अस्पताल रांची की स्थापना वर्ष 1914 में एक प्रशासनिक भवन के रूप में हुई थी. राजा राय दास बिड़ला के प्रयास से जुलाई 1928 में यहां बिड़ला वीमेंस हॉस्पिटल की नींव रखी गयी. तब के गवर्नर लार्ड इरविन तथा गर्वनर जनरल अॉफ इंडिया की उपस्थिति में यह काम हुआ था. इसके बाद 20 अक्तूबर 1930 को इस नये भवन को गर्वनर जनरल बिहार व अोड़िशा हगल्सडाउन स्टीफेंस ने जनता को समर्पित किया. वर्ष 1934 में यहां एक मेडिकल वार्ड विकसित किया गया, जिसे श्री ठाकुर दास के पुत्र विमलानंद ने बनवाया था. 1975 तक यह अस्पताल प्रसव व इसके बाद के प्रशिक्षण के लिए रिम्स का अभिन्न अंग बना रहा. अाजादी के बाद रांची के इस अस्पताल का महत्व अौर बढ़ गया. तब से यहां कुल 217 वार्ड वाला इनडोर व तथा विभिन्न विभागों वाला आउटडोर अस्पताल संचालित होता रहा है. इधर झारखंड अलग राज्य बनने के बाद एक अत्याधुनिक अस्पताल की जरूरत महसूस की गयी. इसी आलोक में इसके निर्माण का निर्णय लिया गया था.
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