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भारत-पाक युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता शहीद अलबर्ट एक्का को नमन
अनुज कुमार सिन्हा आज से ठीक 44 साल पहले यानी 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध में देश की रक्षा करते हुए, पाकिस्तानी सेना को पस्त करते हुए लांस नायक अलबर्ट एक्का शहीद हो गये थे. वे गुमला के जारी गांव के रहनेवाले थे. वीरता के लिए उन्हें भारत का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान परमवीर […]
अनुज कुमार सिन्हा
आज से ठीक 44 साल पहले यानी 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध में देश की रक्षा करते हुए, पाकिस्तानी सेना को पस्त करते
हुए लांस नायक अलबर्ट एक्का शहीद हो गये थे.
वे गुमला के जारी गांव के रहनेवाले थे. वीरता के लिए उन्हें भारत का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया था.
यह लड़ाई गंगासागर में हुई थी. त्रिपुरा के दक्षिण अगरतला से 15 किलोमीटर दूर दुलकी गांव में उनकी समाधि है. 44 साल के बाद उनकी समाधि को खोजा गया है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद कलश में रखी पवित्र मिट्टी को शहीद अलबर्ट एक्का के पैतृक गांव जारी जाकर उनकी पत्नी बलमदीना एक्का को सौंपेंगे.
सैनिकों को नमन
प्रभात खबर ने झारखंड के सैनिकों और सैन्य अफसरों के सम्मान में शौर्य गाथा का प्रकाशन किया है. इसमें झारखंड के परमवीर चक्र, वीर चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र विजेताओं की गाथा है. इसका विमोचन 5 दिसंबर को रांची में आर्य भट्ट सभागार, मोराबादी में किया जायेगा.
ऐतिहासिक दिन : रोमांचित करनेवाला पल. 1971 के भारत-पाक युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता की समाधि की पवित्र मिट्टी को उनकी पत्नी बलमदीना एक्का को मुख्यमंत्री रघुवर दास के हाथों सौंपने की तैयारी. उस नायक को एक बार फिर से सम्मान करने का सौभाग्य झारखंड के लोगों को मिला है, जिसने अपनी बहादुरी से युद्ध के मैदान में दुश्मनों को धूल चटायी थी. अपने देश की रक्षा करते हुए, बहादुरी से लड़ते हुए, दुश्मनों को मारते हुए वे शहीद हुए थे. इसी बहादुरी के कारण उन्हें देश का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) दिया गया था.
आपसे अपील-गुरुवार (3 दिसंबर, उनकी पुण्यतिथि भी) को जब रांची से शहीद अलबर्ट एक्का की समाधि की पवित्र मिट्टी वाहन से उनके पैतृक घर जाये, तो रास्ते में एक कतार में खड़ा होकर कलश पर फूल बरसा कर, बिरसा मुंडा की धरती के अपने इस सच्चे नायक का सम्मान करें. छोटी और ओछी राजनीति, आलोचना, नकारात्मकता से समाज का भला नहीं होता. यह शहीद की समाधि की माटी है. इसकी पवित्रता को समझें और नमन करें. कर्म और दायित्व कोप्रमुखता दें.
यह भावुक पल होगा. झारखंड के लोगों के लिए, उनके गांव के लोगों के लिए, जहां वे जनमे, पले-बढ़े, पूर्व सैनिकों और सेना के लिए. इस योद्धा ने देश का मान बढ़ाया, सेना का मान बढ़ाया.
यह पल ऐसे ही नहीं आया. लगभग 44 साल पहले यानी 1971 के भारत-पाक युद्ध में अलबर्ट एक्का शहीद हुए थे. उनकी शहादत के दिन यानी तीन दिसंबर को गुमला के जारी गांव में (जो उनका पैतृक गांव है) हर साल मेला भी लगता है. किसी को पता भी नहीं था कि शहीद होने के बाद अलबर्ट एक्का का पार्थिव शरीर उनके गांव नहीं आया था और उसे कहां दफनाया गया था. उनकी पत्नी बलमदीना एक्का ने एक मार्मिक इच्छा व्यक्त की थी-मरने के पहले अपने पति की अस्थि (या माटी) का दर्शन करना चाहती हूं.
यह दिल को छू लेनेवाली बात थी. यह जानकारी मिली और उसी समय हमने (प्रभात खबर) तय कर लिया कि माटी का अखबार होने के नाते प्रभात खबर का यह दायित्व है, वह अलबर्ट एक्का की समाधि को खोजे. प्रभात खबर ने सामाजिक दायित्व का निर्वाह करते हुए बलमदीना एक्का की इच्छा को पेज की लीड स्टोरी बनायी. पूरे झारखंड में रिपोर्ट छपी. हमने अपील भी की कि अगर किसी को, सैनिक-पूर्व सैनिक को भी अलबर्ट एक्का की समाधि के बारे में कोई जानकारी हो ,तो प्रभात खबर को सूचित करे.
कुछ सूचना मिली. इस बीच रतन तिर्की और उनके साथियों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास से बात कर बलमदीना एक्का की इच्छा को बताया. मुख्यमंत्री तुरंत सक्रिय हो गये, अपने प्रधान सचिव संजय कुमार को जिम्मेवारी सौंपी.
उन्होंने टीम का गठन किया. प्रभात खबर ने अपने बंगाल और दिल्ली के साथियों को भी इस काम में लगाया. उस कमांडर को खोज निकाला, जो लड़ाई के वक्त अलबर्ट एक्का के साथ थे. उन्होंने यह जानकारी दी कि अलबर्ट एक्का की समाधि अगरतला में है. सरकार अपना काम कर रही थी, प्रभात खबर अपने हिसाब से खोजबीन में लगा था, लेकिन सबसे तेजी से काम किया पूर्व सैनिकों ने. बिना विलंब किये पूर्व सैनिक कल्याण संघ के सचिव अनिरुद्ध सिंह ने सेना (14 गार्ड्स) से संपर्क किया.
सेना के अफसरों ने तेजी से काम किया और बीएसएफ को यह जिम्मेवारी सौंपी. सेना-बीएसएफ के पास रिकाॅर्ड थे. फिर पवित्र मिट्टी को सेना-बीएसएफ ने रांची भेजा. उन तमाम लोगों को बधाई, जो इस अभियान में लगे रहे और अंजाम तक पहुंचाया. समाधि को खोजना कठिन काम था, लेकिन अगर जज्बा हो तो कुछ भी असंभव नहीं.
अलबर्ट एक्का देश के नायक थे. उनका सम्मान ऐतिहासिक होना चाहिए. प्रभात खबर पहले भी अलबर्ट एक्का की पत्नी को सम्मान-सहयोग देने का अभियान चला चुका है. 1999 में जमशेदपुर में यह बड़ा अभियान जिला प्रशासन के साथ मिल कर चलाया था. तब वही संजय कुमार पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त थे, जो इस समय मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव हैं.
उस अभियान का नाम था-हम आपके साथ हैं मिसेज एक्का. माटी का अखबार होने के कारण प्रभात खबर अपने नायकों का सम्मान करता रहा है. इसी क्रम में झारखंड क्षेत्र के गैलेंट्री अवार्ड प्राप्त सैनिकों, सैन्य अफसरों पर प्रभात खबर ने शौर्य गाथा नामक पुस्तक का प्रकाशन किया है, इसका विमोचन पांच दिसंबर को होना है. इस पुस्तक में झारखंड के वीर सैनिकों (जिन्हें परमवीर चक्र, कीर्ति चक्र, वीर चक्र, शौर्य चक्र मिला हो) की गाथा है. प्रभात खबर आगे भी अपने दायित्व को इसी प्रकार निभाता रहेगा.
शहीद अलबर्ट एक्का की समाधि की पवित्र मिट्टी को उनकी पत्नी को सौंप देना अंतिम अभियान नहीं है. बेहतर है, देश-दुनिया को अपने इस नायक के बारे में अधिक से अधिक बताने की. ऐसे नायक बार-बार पैदा नहीं होते. भारतीय सेना में झारखंड का बहुत योगदान रहा है. खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा जिलों के लाखों युवकों ने फौज में नौकरी की है और देश की सेवा की है. ऐसे फौजियों-पूर्व फौजियों को प्रभात खबर नमन करता है, गर्व करता है.
हमें झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों पर गर्व है, जिन्होंने अंगरेजों को इस क्षेत्र में जमने नहीं दिया. इनमें बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू, बाबा तिलका मांझी, शेख भिखारी, तेलंगा खड़िया, पांडेय गणपत राय, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, टिकैत उमरांव सिंह, नीलांबर-पीतांबर, जतरा भगत समेत अन्य शामिल हैं. झारखंड राज्य के लिए अनेक आंदोलनकारियों ने जान दी.
देश की सेवा करते हुए झारखंड के सैकड़ों सैनिक शहीद हुए. इन तमाम शहीदों की याद में झारखंड में कोई बड़ा शहीद पार्क नहीं है. सरकार चाहे तो इन शहीदों की याद में रांची शहर के आसपास एक बड़ा शहीद पार्क (बड़ा परिसर, 50-60 एकड़ का) बना सकती है, जिसमें शहीदों की प्रतिमाएं हों, शिलापट्ट हों, इसी पार्क में झारखंड की संस्कृति से जुड़ा म्यूजियम हो, बेहतर पुस्तकालय हो, आर्काइब्स, अपने नायकों की जीवनी हो.
इसका उद्देश्य होगा-हम अपने नायकों से सीखें, प्रेरणा लें, उद्देश्यों से भटके नहीं. इस स्थल को टूरिज्म के तौर पर विकसित किया जा सकता है. ऐसे कार्य कर हम अपने शहीदों को याद कर सकते हैं. सच यह है कि आज की पीढ़ी अपने नायकों को नहीं जानती-पहचानती. ये अपनी संस्कृति से दूर हो रही है. ऐसे में शहीद पार्क-परिसर का निर्माण कर सरकार भावी पीढ़ी को तोहफा दे सकती है. यह अपने शहीदों के प्रति नमन भी होगा.
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