रांची : झारखंड को इज अॉफ डूइंग बिजनेस को लेकर वर्ल्ड बैंक ने तीसरा स्थान दिया है. यानी झारखंड में व्यापार करना, उद्योग लगाना आसान हो गया है. दूसरी ओर राज्य की दो-दो कंपनियां यहां विभागों की मार झेल रही हैं. भारी घाटा उठा रही है. आधुनिक पावर एंड नेचुरल रिसोर्सेज को हर माह 20 करोड़ का नुकसान हो रहा है.
250 मेगावाट की एक यूनिट उत्पादन के लिए 2013 से तैयार है, पर ऊर्जा विकास निगम बिजली नहीं ले रही है. इसके चलते यूनिट को बंद रखा जा रहा है. यूनिट बंद होने की वजह से कंपनी को हर माह भारी नुकसान हो रहा है. वहीं कोहिनूर स्टील सरकार की नीतियों को लेकर खफा है.
क्या है आधुनिक पावर का मामला : आधुनिक पावर द्वारा 270 मेगावाट की दो यूनिट लगायी गयी है. कुल 540 मेगावाट की क्षमता है. इसमें एक यूनिट चालू है. 122 मेगावाट बिजली झारखंड ऊर्जा विकास निगम को दी जाती है. इससे कंपनी को हर माह 30 करोड़ रुपये मिलते हैं. शेष बिजली के लिए भी ऊर्जा विकास निगम के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट हो चुका है. कंपनी 3.70 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली देने के लिए पीपीए (पॉवर परचेज एग्रीमेंट) कर चुकी है. गौरतलब है कि कंपनी द्वारा 3376 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है, जो वित्तीय संस्थानों द्वारा कर्ज के तौर पर दिया गया है. कंपनी में 10 हजार लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम कर रहे हैं, पर ऊर्जा विकास निगम द्वारा बिजली न खरीदे जाने की वजह से भारी घाटा हो रहा है.
सरकार इज ऑफ डूइंग बिजनेस के सिद्धांत लागू भी कराये : निदेशक
आधुनिक के कार्यकारी निदेशक अमृतांशु प्रसाद बताते हैं कि हर माह 50 करोड़ रुपये ब्याज के रूप में देने पड़ रहे हैं, जबकि आय केवल 30 करोड़ रुपये की ही है. 20 करोड़ रुपये प्रति माह का घाटा हो रहा है. सरकार एक तरफ इज अॉफ डूइंग बिजनेस को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है. कहा जा रहा है कि झारखंड में व्यापार करना आसान हो गया है, पर दूसरी ओर आधुनिक पावर के साथ पीपीए होने के बावजूद बिजली नहीं ली जा रही है. सरकार इसे लागू कराने पर भी जोर दे तो बेहतर होगा. एक तरफ दूसरी कंपनियों से ऊर्जा विकास निगम बिजली ले रही है, जबकि आधुनिक के साथ पीपीए करने के बावजूद बिजली नहीं ले रही है. पीपीए की वजह से बाहर भी बिजली नहीं बेची जा सकती. यदि घाटा में ही व्यापार कोई यहां करेगा तो कितने दिनों तक टिक पायेगा. कोई पूंजी लेकर इतना बड़ा रिस्क झारखंड में ले रहा है तो सरकार को भी देखना चाहिए कि नियम संगत काम हो रहा है या नहीं.
कोहिनूर स्टील भी है परेशान
कोहिनूर स्टील के एमडी विजय बोथरा का कहना है कि इज अॉफ डूइंग बिजनेस में कैसे झारखंड आ गया, नहीं कह सकता. पर यहां हालात यह है कि एक पत्र का जवाब देने में विभाग को पांच साल लग जाते हैं. 2010 में कंपनी को बड़ा बालजोरी लौह अयस्क खदान कह कर गलत खदान दिया गया. केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से जवाब मांगा. जवाब 2010 में मांगा गया, तो जवाब मिला जुलाई 2015 में. इस दौरान केंद्र सरकार का नया एक्ट आ गया कि अब अॉक्शन से ही माइंस मिलेगा. इसी तरह वर्ष 2005 में 40 एकड़ भूमि अधिग्रहण के लिए जिडको को आवेदन दिया गया. 1.5 करोड़ रुपये आवेदन की फीस भी दी गयी. आज 10 साल हो गये हैं भूमि नहीं दी गयी है. कंपनी के स्टील प्लांट के लिए आवंटित पानी की दर अचानक चार गुणा बढ़ा दी गयी.
एक बार बिजली कटने पर होता है तीन लाख का नुकसान
श्री बोथरा कहते हैं कि इज अॉफ डूइंग में बिजनेस में अबाधित बिजली की बात कही गयी है. उनके प्लांट में एक दिन में 10-10 बार तक बिजली कटती है. एक बार बिजली कटने पर प्लांट की मशीनों को दोबारा चालू करने में तीन लाख रुपये का खर्च आता है. कहा जाये तो कंपनी की कमर टूट गयी है बिजली को लेकर. श्री बोथरा ने कहा कि सरकार यहां सिर्फ हाइकोर्ट की भाषा समझती है.