रांची : कांग्रेस पार्टी लोहरदगा शिफ्ट कर गयी है. प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत फिलहाल लोहरदगा के चुनावी जंग के रिहर्सल में व्यस्त हैं. पिछले एक महीने से प्रदेश अध्यक्ष लगातार लोहरदगा में कैंप कर रहे हैं. पार्टी के दूसरे पदाधिकारी भी लोहरदगा की दौड़ लगा रहे हैं. पार्टी मीडिया कमेटी से लेकर संगठन के पदाधिकारियों […]
रांची : कांग्रेस पार्टी लोहरदगा शिफ्ट कर गयी है. प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत फिलहाल लोहरदगा के चुनावी जंग के रिहर्सल में व्यस्त हैं. पिछले एक महीने से प्रदेश अध्यक्ष लगातार लोहरदगा में कैंप कर रहे हैं. पार्टी के दूसरे पदाधिकारी भी लोहरदगा की दौड़ लगा रहे हैं. पार्टी मीडिया कमेटी से लेकर संगठन के पदाधिकारियों की टीम का समय लोहरदगा में गुजर रहा है.
लोहरदगा के विधायक रहे कमल किशाेर भगत को एक मामले में सजा सुनाये जाने के बाद खाली हुई इस सीट पर प्रदेश अध्यक्ष को चुनावी जंग में दाेबारा उतरने का मौका मिला है. कांग्रेस के लिए यह सीट साख से जुड़ी है. इधर सरकार ने भी कांग्रेस की बेचैनी बढ़ा दी है. पिछले दिनों मुख्यमंत्री रघुवर दास ने लोहरदगा में दो दिनों तक कैंप किया. लोहरदगा में योजनाओं की झड़ी लगा दी. रघुवर सरकार के लिए भी लोहरदगा उपचुनाव पहला चुनाव होगा. ऐसे में सरकार और इसके गंठबंधन के लिए चुनौती होगी. सरकार के गंठबंधन दल भी लोहरदगा में पूरी ताकत लगायेंगे.
बंधु तिर्की ने भी सुखदेव के रास्ते पर कांटे बिछा दिये हैं. मांडर छोड़ कर वह लोहरदगा पहुंच गये हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए दोहरी चुनौती है. बंधु कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में ही सेंधमारी करेंगे. इन चुनौतियों के बीच सुखदेव लोहरदगा के चुनावी मैदान से इधर-उधर नहीं कर सकते हैं. पिछले चुनाव में महज 400 वोट से हारने के बाद इस बार सुखदेव हर गलती को दुरुस्त करने में लगे हैं.
पार्टी का अभियान पड़ा ठंडा : पार्टी ने राज्य में केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ गांव-गांव, पांव-पांव अभियान की शुरुआत की थी. राजधानी से शुरू कर इसे गांव-गांव तक पहुंचाना था. अध्यक्ष लोहरदगा में व्यस्त हो गये, तो पार्टी के दूसरे नेताओं ने भी रुचि नहीं दिखायी. विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक सहित दूसरे नेताओं ने अभियान को बीच में ही छोड़ दिया. पूरा अभियान दक्षिणी छोटानागपुर से बाहर नहीं निकल पाया.
सांगठनिक चुनाव में रुचि नहीं : पार्टी के सदस्यता अभियान में पदाधिकारियों-नेताओं की रुचि नहीं है. महज औपचारिकता पूरी हो रही है. जमीन पर संगठन पस्त है. सांगठनिक चुनाव को लेकर भी सक्रियता नहीं है. केंद्रीय नेतृत्व ने सांगठनिक चुनाव की तिथि अभी तक घोषित नहीं की है. इधर प्रदेश संगठन भी सुस्त पड़ा है. नेता संगठन में जगह पाने के लिए बहुत भागदौड़ नहीं मचा रहे हैं.