एजेंसियां, वाशिंगटनजॉन हॉपिकन्स यूनिवर्सिटी ऑफ अप्लाइड फिजिक्स लैब के इंजीनियरों ने ऐसे रोबोटिक हाथ बनाने में सफलता हासिल कर ली है जो किसी आम इनसान के हाथों की ही तरह मनुष्य के दिमाग के संकेतों पर काम करेंगे. मजेदार बात तो यह है कि इन हाथों का इनसानों पर अब तक का परीक्षण भी सफल रहा है.लैब ने इन हाथों का परीक्षण करने के लिए 59 साल के ले बॉग को चुना. टीन एज में ही एक हादसे के दौरान बॉग के दोनों हाथ जख्मी हो गये थे, जिन्हें कंधों से ही काटना पड़ा. बॉग के यह दोनों कंधे फिट करने के लिए उनकी सर्जरी की गयी. सर्जरी के जरिये बॉग के हाथों में बची खुची नसों और इन हाथों की नये सिरे से ऐसी मैपिंग की गयी कि दिमाग से संदेश हाथ के सेंसर तक और सेंसर से दिमाग तक पहुंच सके. इस लैब के चीफ इंजीनियर माइक मक्लॉगलिन का कहना है कि सर्जरी के बाद जैसे-जैसे यह नसें मजबूत होती गयीं, हाथों को संदेश उतने ही स्पष्ट रूप से मिलते गये. यह अलग बात है कि इस दौरान बॉग को खासे दर्द से जूझना पड़ा.इसे कहते हैं मॉड्युलर प्रॉस्थेटिक लिंबइन हाथों को मॉड्युलर प्रॉस्थेटिक लिंब (एमपीएल) कहा जाता है. 100 से ज्यादा सेंसरों से लैस हर हाथ में 26 जोड़ हैं, जोकि करीब 45 पाउंड तक का वजन उठाने में सक्षम हैं. अलग-अलग अक्षमताओं से पीडि़त लोगों की जरूरतों के हिसाब से इनमें बदलाव की पूरी गुंजाइश है. एमपीएल के निर्माण पर करीब पांच लाख डॉलर का खर्च आया है. बाजार में ये तभी सफल हो पायेंगे, जब ये पांच हजार डॉलर के आस-पास हो. बहरहाल, एमपीएल की इस सफलता ने शारीरिक रूप से अक्षम इनसानों को आत्मनिर्भर जीवन जीने के लिए आशा की एक किरण तो दिखायी ही है, और उम्मीद है कि आने वाले समय में यह सर्वसुलभ होगा.
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हमारे हाथों की जगह लेंगे रोबोटिक हाथ
एजेंसियां, वाशिंगटनजॉन हॉपिकन्स यूनिवर्सिटी ऑफ अप्लाइड फिजिक्स लैब के इंजीनियरों ने ऐसे रोबोटिक हाथ बनाने में सफलता हासिल कर ली है जो किसी आम इनसान के हाथों की ही तरह मनुष्य के दिमाग के संकेतों पर काम करेंगे. मजेदार बात तो यह है कि इन हाथों का इनसानों पर अब तक का परीक्षण भी सफल […]
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