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एपीडीआरपी योजना में हुई 10 करोड़ की गड़बड़ी, अफसरों पर चलेगा मुकदमा

रांची: जमशेदपुर में एपीडीआरपी योजना में हुई करीब 10 करोड़ की गड़बड़ी में शामिल होने के आरोप में झारखंड उर्जा विकास निगम लिमिटेड के तीन अफसरों के खिलाफ निगरानी को मुकदमा चलाने की अनुमति मिल गयी है. जिनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मिली है, उनमें उमेश प्रसाद, वीरेंद्र प्रताप दूबे और देवाशीष महापात्र का […]

रांची: जमशेदपुर में एपीडीआरपी योजना में हुई करीब 10 करोड़ की गड़बड़ी में शामिल होने के आरोप में झारखंड उर्जा विकास निगम लिमिटेड के तीन अफसरों के खिलाफ निगरानी को मुकदमा चलाने की अनुमति मिल गयी है. जिनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मिली है, उनमें उमेश प्रसाद, वीरेंद्र प्रताप दूबे और देवाशीष महापात्र का नाम शामिल है. अब निगरानी उनके खिलाफ जल्द ही न्यायालय में चाजर्शीट दाखिल करेगी. उल्लेखनीय एपीडीआरपी पैकेज डी (जमशेदपुर) योजना में करीब 10 करोड़ की वित्तीय गड़बड़ी की बात सामने आने पर सरकार के निर्देश पर मामले की निगरानी जांच शुरू हुई थी.
जांच पूरी होने पर निगरानी थाना में कांड संख्या 02/11 के अंतर्गत बिजली बोर्ड के पदाधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. इस केस में कुछ लोगों पर आरोप सही पाये जाने पर निगरानी वर्ष 2013 से मामले में शामिल लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुमति देने के लिए अनुरोध कर रही थी. लेकिन निगरानी को मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिल रही थी. वर्ष 2015 के आरंभ में उक्त तीनों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के लिए झारखंड ऊर्जा विकास निगम के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक से पत्रचार किया. इसके बाद निगरानी को बताया गया कि मुकदमा चलाने की अनुमति देने पर बोर्ड की बैठक में निर्णय ले लिया गया था, लेकिन बाद में यह निर्णय लिया गया कि मामले में एक बार कुछ बिंदुओं पर विधि विभाग से निर्णय ले लिया. इस वजह से अभियोजन स्वीकृति देने पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका था.
तीनों के खिलाफ निगरानी के पास उपलब्ध है साक्ष्य
अनुसंधान में तीनों के खिलाफ निगरानी के पास जो उपलब्ध साक्ष्य हैं. उसके अनुसार प्राथमिकी अभियुक्त वीरेंद्र प्रताप दूबे के कार्यकाल की संचिका संख्या 372/ 04- 05 पार्ट फाइल की टिप्पणी पृष्ठ संख्या 05 से 20 तक वीरेंद्र प्रताप दूबे और एवं देवाशीष महापात्र द्वारा पीवीसी बिल (प्राइज वेरिफकेशन बिल) का भुगतान करने के संबंध में प्रस्ताव दिया गया था. पीवीसी मद में भुगतान करने के लिए अलग से राशि आवंटित नहीं थी. राशि आवंटित होने के उपरांत भी भुगतान किया जाना चाहिए था. इस बात का उल्लेख सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में भी है. इस तरह बोर्ड के हितों की अनदेखी करना तथा मेसर्स रामजी पावर को गलत तरीके से लाभ पहुंचाया गया. जिससे सरकार को वित्तीय नुकसान हुआ. इसी तरह कंपनी को गलत तरीके से लाभ पहुंचाने में उमेश प्रसाद की संलिप्तता रही थी.

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