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हाइकोर्ट के आदेश पर भी नहीं मिला शिक्षिका को वेतन
पांच साल से वेतन के लिए भटक रही गुमला की शिक्षिका विमला कुमारी रांची : गुमला के चैनपुर स्थित आरसी प्राथमिक विद्यालय मड़ाइकोना की शिक्षिका विमला कुमारी पिछले पांच वर्षो से वेतन के लिए भटक रही हैं. इस विद्यालय में विमला की नियुक्ति 1993 में हुई थी. जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय ने 1993 में ही […]
पांच साल से वेतन के लिए भटक रही
गुमला की शिक्षिका विमला कुमारी
रांची : गुमला के चैनपुर स्थित आरसी प्राथमिक विद्यालय मड़ाइकोना की शिक्षिका विमला कुमारी पिछले पांच वर्षो से वेतन के लिए भटक रही हैं. इस विद्यालय में विमला की नियुक्ति 1993 में हुई थी. जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय ने 1993 में ही नियुक्ति का अनुमोदन कर दिया था. विमला को फरवरी 2010 तक वेतन मिला.
इसके बाद मार्च 2010 से वेतन भुगतान बंद कर दिया गया.
हाइकोर्ट के आदेश के बाद भी विमला का वेतन दोबारा शुरू नहीं हो पाया. हाइकोर्ट ने 2011 में वेतन भुगतान करने का आदेश दिया था. हाइकोर्ट के आदेश का पालन नहीं होने पर विमला ने अवमाननावाद भी दायर की. 15 जनवरी 2014 को हाइकोर्ट ने फिर से जल्द वेतन भुगतान का आदेश शिक्षा विभाग को दिया.
हाइकोर्ट के आदेश के बाद तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक जीत वाहन उरांव ने जनवरी 2015 में गुमला के जिला शिक्षा अधीक्षक को वेतन निर्धारण का अनुमोदन और कार्य अवधि की गणना कर भुगतान सुनिश्चित करने को कहा. पर इसके बाद भी आज तक उन्हें वेतन नहीं मिला. वह बिना वेतन के ही पांच सालों से बच्चों को पढ़ा रही हैं. दूसरे बच्चों का भविष्य संवारने में लगी विमला के खुद के बच्चों की पढ़ाई पैसों के अभाव में बंद होने के कगार पर है. वह वेतन के लिए शिक्षा सचिव से लेकर शिक्षा अधीक्षक के कार्यालय का चक्कर लगा रही हैं.
गलत पत्र का हवाला दे रोक वेतन
जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय ने विमला कुमारी के छठे वेतनमान का निर्धारण किया. इस बीच शिक्षा विभाग से पत्र निर्गत हुआ कि अल्पसंख्यक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के एक वेतनमान का निर्धारण निदेशालय स्तर से होना अनिवार्य है. इसके बाद पांचवें वेतनमान के निर्धारण के लिए जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय ने प्राथमिक शिक्षा निदेशालय को प्रस्ताव भेजा. इसके बाद से शिक्षा विभाग ने विमला कुमारी का वेतन रोक दिया. विभाग का कहना था कि विमला की नियुक्ति के लिए गठित साक्षात्कार कमेटी में सरकार के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे.
जबकि उनकी नियुक्ति के समय बिहार सरकार प्राथमिक शिक्षा निदेशालय द्वारा वर्ष 1978 में जारी पत्र प्रभावी था. इसमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक विद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति में विभागीय पदाधिकारी का अनुमोदन अनिवार्य नहीं है.
शिक्षा विभाग को सिर्फ सूचना देनी है. मार्च 1993 में प्राथमिक शिक्षा निदेशालय बिहार सरकार ने दूसरा पत्र जारी किया था. इसमें कहा गया कि अल्पसंख्यक विद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार कमेटी में प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी को सरकार के प्रतिनिधि के रूप में अवश्य रखा जाये. विमला कुमारी की नियुक्ति फरवरी 1993 में ही हो गयी थी. ऐसे में यह निर्देश विमला की नियुक्ति पर प्रभावी नहीं होता. इसके बाद भी प्राथमिक शिक्षा निदेशालय ने विमला का वेतन रोक दिया.
आइएससी पास बेटा बन गया चालक
विमला के पति बीमार हैं. बेटी ने आइएससी पास की है. छोटे बेटे ने मैट्रिक की परीक्षा पास की. पर पैसे के अभाव में उसका नामांकन नहीं हो पाया. बड़ा बेटा भी पढ़ने में मेधावी था.
इंटर विज्ञान से पास करने के बाद पैसे के अभाव में उसने पढ़ाई छोड़ दी. वह प्राइवेट कार का चालक का काम कर रहा है. जो पैसे मिलते हैं, उससे किसी तरह पिता का इलाज करा रहा है. पैसे के अभाव में विमला अपने पति का बेहतर इलाज नहीं करा पा रही है.
डीएसइ भेज चुके वेतन का पत्र
जिला शिक्षा अधीक्षक ने विमला कुमारी के वेतन भुगतान का अनुमोदन व मार्च 2010 से अब तक की कार्य अवधि की गणना की रिपोर्ट प्राथमिक शिक्षा निदेशालय को भेज दी है. इसके बाद भी शिक्षा सचिव व प्राथमिक शिक्षा निदेशक आजकल में वेतन भुगतान का आश्वासन दे रहे हैं.
कब हुई थी नियुक्ति फरवरी 1993 में
कब से रुका वेतन मार्च 2010 से
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