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संघर्षों को मात दी, बेटे को बनाया डॉक्टर

फाटो मदर्स डे लता में …इशरत आजम, इरबा पहले सिंदूर-टिकली बेची, अब सफल बिजनेस वीमेन एक समय था जब इशरत आजम एक साधारण गृहिणी हुआ करती थी. आज एक आदर्श मां के रूप में जानी जाती हंै. 60 वर्षीय इशरत आज भी अकेले प्रति दिन अपने उत्पाद (मसाले) की मार्केटिंग के लिए अपने आवास इरबा […]

फाटो मदर्स डे लता में …इशरत आजम, इरबा पहले सिंदूर-टिकली बेची, अब सफल बिजनेस वीमेन एक समय था जब इशरत आजम एक साधारण गृहिणी हुआ करती थी. आज एक आदर्श मां के रूप में जानी जाती हंै. 60 वर्षीय इशरत आज भी अकेले प्रति दिन अपने उत्पाद (मसाले) की मार्केटिंग के लिए अपने आवास इरबा से रांची आती हैं. महिला उद्यमिता के क्षेत्र में उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली है. पति ने शुरुआती दौर में ही ताना देते हुए कहा था कि बेटा काम नहीं करेगा, तो कैसे चलेगा? क्या उसे डॉक्टर बनाओगी? पति के इसी ताना को उसने जज्बा बना लिया और ठान लिया कि वह बेटे को डॉक्टर ही बनायेगी. उन्होंने संघर्षों को मात देकर अपने बड़े बेटे को डॉक्टर बनाया. बड़ा बेटा डॉ मासूद आजम कोलकाता के यूटीआइ इंस्फ्रास्ट्रक्चर मेडिकल ऑफिसर है. बेटी शबातहसीन भांगुड़ कोलकाता में लेक्चरर है. छोटा बेटा इरशाद व्यवसायी है. इशरत ने अपने दम पर इरबा में खूबसूरत आशियाना भी बनाया है. टिकली सिंदूर बेच आज सफल व्यवसायी बनी1978 में इशरत आजम का रांची के मनीरउद्दीन के साथ विवाह हुआ. उनके पति का कांटाटोली में बैटरी की एक छोटी सी दुकान हुआ करती थी. 1999 में पति को पैरालाइसिस अटैक आया. इशरत को तीन बच्चों (दो बेटे व एक बेटी) की परवरिश के लिए सामने आना पड़ा. कामकाज की दुनिया में कदम रखी. शुरुआत में घर-घर जाकर टिकली- सिंदूर बेचना शुरू की. पति की देख-रेख के साथ बच्चों को पढ़ाने लगी. दिन रात मेहनत कर के पाई -पाई जुटा कर बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाया. बाद में महिला समिति के साथ मिल कर साउथ इंडियन मसाले का व्यापार करने लगी. कड़ी मेहनत की. आज इशरत का मसाला नेपाल व दुबई भी जाता है.

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