राजधानी रांची का जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है. शहर के 55 में से अधिकतर वाडों में जल समस्या गहरा गयी है. राजधानी के डोरंडा, रातू रोड, पिस्कामोड़, मोरहाबादी, हरमू , धुर्वा जैसे इलाके बड़े इलाके में लोगों को एक बाल्टी पानी का जुगाड़ करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. ऊपर से अनियमित जलापूर्ति ने शहर के लोगों की परेशानी और बढ़ा दी है. इसे लेकर पार्टियों के बैनर तले आंदोलन शुरू हो गया है.
रांची: पिस्कामोड़ स्थित लक्ष्मीनगर मुहल्ले में गरीबों (कम आय वालों) की कौन पूछे, यहां तो संपन्न व रसूख वालों को भी पानी के लिए बाल्टी लेकर सड़क पर निकलना पड़ रहा है. लोग अगल-बगल से पानी ढोकर घर ला रहे हैं.
स्थिति यह है कि मुहल्लेवाली ठीक से नहा-धो तक नहीं पा रहे हैं. गरमी आते ही यहां पानी की किल्लत हो गयी है. तीन दिनों से पानी की सप्लाइ नहीं हुई है. यहां रहनेवालों का दुर्भाग्य है कि लाखों खर्च कर और सारी सुविधाओं से लैस घर बनाने के बाद भी पानी के लिए तरसते हैं. छत पर वाटर टैंक हैं. आधुनिक नल व झरनों से सुसज्जित बाथरूम बनाया गया है, पर कोई काम का नहीं. बालटी से पानी लाते हैं, तो इस्तेमाल होता है.
क्यों है यह स्थिति : मुहल्ले के सारे कुएं सूख गये हैं. मुहल्ले के चापानलों से भी पानी नहीं निकल रहा. किसी-किसी के घर में चापानल है. इसी पर लोग निर्भर हैं. मुहल्ले का अधिकांश हिस्सा सप्लाई वाटर पर निर्भर है. दो-तीन दिन पानी नहीं आया, तो संकट बढ़ जाता है.
एक हिस्सा है ड्राइ जोन : मुहल्ला दो हिस्सों में बंटा है. सड़क की एक ओर बोरिंग नहीं हो पाता है. दलदल होने की वजह से बोरिंग फेल हो जाता है. कुआं खोदना भी संभव नहीं है. मुहल्लेवासी इस इलाके को ड्राइ जोन कहते हैं.
पानी आया, तो चमका चेहरा : तीन दिनों के बाद सोमवार को लक्ष्मीनगर में थोड़ा बहुत पानी आया. यह देख लोगों के चेहरे चमक गये. हालांकि, इससे सिर्फ खाना बन पायेगा.