मांडर: प्रिया, कृष्णा, बबलू, रोहण व गुड़िया जैसे कई अनगिनत बच्चे हैं, जो कल तक कुपोषित होने के कारण बेहद कमजोर व चिड़चिड़े थे, लेकिन आज वे हष्ट पुष्ट हैं और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट लौट आयी है. यह कमाल मांडर रेफरल अस्पताल में चल रहे कुपोषण उपचार केंद्र का है. यूनिसेफ के सहयोग से संचालित इस कुपोषण उपचार केंद्र की स्थापना रेफरल अस्पताल में वर्ष 2008 मे हुई थी़ विस्तारीकरण के बाद 16 बेड की क्षमता वाले इस केंद्र में अब तक लगभग 1100 बच्चों का उपचार किया जा चुका है़ रेफरल अस्पताल के चिकित्सा प्रभारी डॉ बीके गुप्ता के मुताबिक कम उम्र में विवाह व गर्भधारण, गर्भवती को संपूर्ण आहार नहीं मिलने से, सही समय पर टीका नहीं मिलने से तथा निश्चित अवधि तक स्तनपान नहीं कराये जाने से बच्चे कुपोषित हो सकते हैं.
कुपोषित बच्चों की पहचान वजन , ऊंचाई, बांह का घेरा व सूजन से की जाती है. जांच मे कुपोषित पाये जाने पर बच्चों को कुपोषण उपचार केंद्र में भरती किया जाता है़ उसके बाद भूख की जांच के आधार पर 15 दिन तक न्यूनतम व अधिकतम एक महीने तक बच्चों को पौष्टिक आहार के साथ चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध करायी जाती है. केंद्र में कार्यरत एएनएम झालो कुमारी व सविता कुमारी ने बताया कि इस दौरान बच्चे का नियमित वजन व बांह के घेरा का नाप लिया जाता है और उम्र के अनुसार मापदंड पूरा होने के बाद ही उसे केंद्र से छुट्टी मिलती है़ छु्ट्टी के पश्चात भी बच्चों की समय-समय पर जांच होतीहै.
15-15 दिन में बच्चों को जांच के लिए केंद्र बुलाया जाता है और उनके वजन में वृद्धि पाये जाने पर मां को 1500 रुपये उसके आहार के लिए दिये जाते हैं.इसके अलावा समय-समय पर केंद्र में आंगनबाड़ी सेविका सहिया को कुपोषण को लेकर प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे कुपोषित बच्चों पर नजर रखें और लोगों को कुपोषण से बचने के उपाय भी बतायें.