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ईश्वर की दिव्य योजना को समर्पित योगानंदजी का जीवन
अमरनाथ ठाकुर पांच जनवरी 1893 को जन्मे श्रीश्री परमहंस योगानंदजी विश्व की महान आध्यात्मिक विभूतियों में से एक हैं. गुरुदेव ने भारत के प्राचीन योग, प्राणायाम व आध्यात्मिक विज्ञान को न सिर्फ अमेरिका व यूरोप समेत दुनिया के कई देशों में फैलाने का काम किया, बल्कि योग विज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिभाषित व प्रमाणित […]
अमरनाथ ठाकुर
पांच जनवरी 1893 को जन्मे श्रीश्री परमहंस योगानंदजी विश्व की महान आध्यात्मिक विभूतियों में से एक हैं. गुरुदेव ने भारत के प्राचीन योग, प्राणायाम व आध्यात्मिक विज्ञान को न सिर्फ अमेरिका व यूरोप समेत दुनिया के कई देशों में फैलाने का काम किया, बल्कि योग विज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिभाषित व प्रमाणित करते हुए इसकी महत्ता से पश्चिमी जगत के कई देशों को जागृत करने का काम किया.
गुरुदेव द्वारा स्थापित योगदा सत्संग सोसाइटी इंडिया व सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप, अमेरिका के माध्यम से पूरी दुनिया में प्राचीन क्रिया योग विज्ञान की दीक्षा व गुरुदेव के आध्यात्मिक पाठमालाओं का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है.
इनके माध्यम से न सिर्फ धर्म की संकीर्णताएं दूर हो रहीं हैं, बल्कि विश्वव्यापी शांति, प्रेम,भाईचारा, सेवा जैसे मानवीय मूल्यों की भी स्थापना हो रही है. गुरुदेव परमहंस योगानंदजी, स्वामी विवेकानंदजी व स्वामी रामतीर्थ के बाद अमेरिका में भारतीय सनातन धर्म व योग विज्ञान के ध्वज वाहक बन कर वहां जानेवाले तीसरे महान धार्मिक विभूति थे. स्वामी विवेकानंदजी के बाद शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन को संबोधित करने का गौरव पानेवाले दूसरे भारतीय संत परमहंस योगानंदजी ही थ़े
परमहंस योगानंदजी में बचपन से ही ईश्वर प्राप्ति की ललक थी तथा युवावस्था में स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरिजी के रूप में सद्गुरु की प्राप्ति, गुरु के आश्रम में कठोर अनुशासन के साथ बीए की शिक्षा, रांची में ब्रह्म चर्य विद्यालय एवं योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना, अमेरिका गमन, कैलिफोर्निया में मुख्यालय तथा एनसिनिटास में समुद्र के निकट विशाल आश्रम समेत अनेक आश्रमों तथा ध्यान केंद्रों की स्थापना, श्रीमद्भागवत गीता, बाइबिल तथा अन्य ग्रंथों की टीका एवं अपनी अद्भुत जीवन गाथा योगी कथामृत का लेखन, 1935-36 में भारत आगमन के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी समेत एक लाख लोगों को क्रिया दीक्षा, भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय, महान आध्यात्मिक विभूति आनंदमयी मां समेत कई संतों से मुलाकात, ईश्वर प्राप्त शिष्यों को अपने कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण आदि ऐसे अनेक दिव्य कार्य उनके जीवन का संक्षिप्त परिचय हैं.
गुरुदेव की शिक्षाएं श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित प्रवृत्तिमार्ग व निवृत्तिमार्ग के भेद को स्पष्ट करते हुए एक ओर गृहस्थ जीवन व्यतीत करनेवालों के लिए कर्तव्यनिष्ठ संतुलित जीवन जीने की कला सिखाती है, तो दूसरी ओर संन्यासियों को ब्रह्म चर्य व्रत का पालन करते हुए ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर कैसे चलना है, इसकी भी शिक्षाएं देती है़
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