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नोएडा की तर्ज पर रांची में भी चले सरकारी अस्पताल

यूपी का भीमराव आंबेडकर अस्पताल हो सकता है मॉडल पीके वर्मा यह एक तरह का कटाक्ष है कि कोई लोकतंत्र, जो सबके लिए समानतापूर्ण व्यवहार की बात करता है, वह अपने सभी नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा देने में संकोच कर रहा है. मुफ्त शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की जिम्मेवारियां हैं. दूसरी […]

यूपी का भीमराव आंबेडकर अस्पताल हो सकता है मॉडल
पीके वर्मा
यह एक तरह का कटाक्ष है कि कोई लोकतंत्र, जो सबके लिए समानतापूर्ण व्यवहार की बात करता है, वह अपने सभी नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा देने में संकोच कर रहा है. मुफ्त शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की जिम्मेवारियां हैं.
दूसरी ओर झारखंड सरकार की योजना नि:शुल्क चिकित्सा संस्थानों के निजीकरण की है. सदर व म्यूनिसिपल अस्पतालों को पीपीपी मोड में देने के लिए यह तर्क दिया जा रहा है कि सरकार के पास इसके संचालन के लिए पर्याप्त फंड व क्षमता नहीं है. सवाल यह है कि अपने अस्पतालों के संचालन में अक्षम सरकार आखिर राज्य को बेहतर भविष्य की ओर कैसे ले जायेगी, राज्य का संचालन कैसे होगा?
दुनिया के कई देश अपने नागरिकों को नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराना संवैधानिक दायित्व मानते हैं. लैटिन अमेरिकन गरीब देशों के अलावा यूरोप के अमीर देश भी ऐसा करते हैं. एक्वाडोर, क्यूबा, ब्राजील, थाइलैंड व कोस्टा रिका, स्विटजरलैंड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया व यूनाइटेड किंगडम अपने नागरिकों को बेहतर व सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं देने को वचनबद्ध हैं. अपने ही देश में यूपी के नोएडा स्थित डॉ भीमराव आंबेडकर मल्टी-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल सरकारी अस्पताल एक उदाहरण है. यह अस्पताल किसी तीन सितारा होटल जैसा है.
मरीजों के लिए यहां ओपीडी का निबंधन शुल्क सिर्फ एक रुपये है. पैथोलोजी जांच मुफ्त है. अल्ट्रासाउंड के लिए सिर्फ सौ रुपये लिये जाते हैं. मरीजों के लिए यहां तीन सौ बेड हैं. इस अस्पताल के मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ आरएनपी मिश्र ने पूछने पर बताया कि अस्पताल चलाना हो, तो फंड की कमी का रोना नहीं रोया जा सकता.
जब कभी सरकार का फंड कम पड़ा, उन्होंने आम लोगों से दान लेकर अस्पताल चलाया है. डॉ मिश्र का मानना है कि किसी काम को करने में ईमानदारी व लगन सबसे बड़ी चीज है. डॉ मिश्र से झारखंड में सरकारी अस्पतालों के निजीकरण की बात बताने पर उन्होंने कहा कि उनके विचार से निजीकरण से खास कर गरीबों को बेहतर व सस्ती स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं करायी जा सकती. निजीकरण से अस्पताल में सुविधाएं बढ़ सकती है, पर यह सुविधाएं आम लोगों की पहुंच से बाहर हो जायेगी.
(लेखक स्वयं सेवीसंस्था झारखंड नागरिक प्रयास से जुड़े हैं)
झारखंड में अस्पतालों का निजीकरण
सदर (सुपर स्पेशियलिटी) अस्पताल, रांची के लिए सरकार व आइएफसी के बीच हुए करार के तहत इसे निजी हाथों में सौंपा जाता है, तो 20-30 फीसदी बेड बीपीएल परिवारों की मुफ्त चिकित्सा के लिए आरक्षित होने की बात भी बेमानी हो जायेगी. यदि गाइड लाइन का उल्लंघन होता है, तो सजा किसको और क्या होगी? गरीबों को निजी अस्पताल के मुख्य द्वार से प्रवेश कराने के लिए वहां कौन खड़ा रहेगा? ये कुछ सवाल हैं, जिस पर झारखंड की नयी सरकार को सोचना होगा.

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