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प्रदेश भाजपा के संगठन में हो सकता है बदलाव
सतीश कुमार केंद्रीय नेतृत्व ने मांगी पदाधिकारियों की सूची रांची : नये वर्ष में प्रदेश भाजपा के संगठन में बड़ा बदलाव हो सकता है. केंद्रीय नेतृत्व ने इसकी कवायद शुरू कर दी है. प्रदेश भाजपा से पदाधिकारियों की सूची मांगी गयी है. कई पदाधिकारी चुनाव जीत कर सांसद और विधायक बन गये हैं. 30 पदाधिकारियों […]
सतीश कुमार
केंद्रीय नेतृत्व ने मांगी पदाधिकारियों की सूची
रांची : नये वर्ष में प्रदेश भाजपा के संगठन में बड़ा बदलाव हो सकता है. केंद्रीय नेतृत्व ने इसकी कवायद शुरू कर दी है. प्रदेश भाजपा से पदाधिकारियों की सूची मांगी गयी है. कई पदाधिकारी चुनाव जीत कर सांसद और विधायक बन गये हैं. 30 पदाधिकारियों में से छह पदाधिकारी सांसद, विधायक और मेयर बन चुके हैं. ऐसे में वे पूरी तरह से संगठन में अपना समय नहीं दे सकते हैं.
लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी संगठन में कोई बदलाव नहीं करना चाहती थी. पार्टी सूत्रों का कहना है कि चुनाव से पहले संगठन में बदलाव करने से लोगों के बीच गलत संदेश जा सकता था. अब चुनाव संपन्न हो गया है. नये लोगों को संगठन की जिम्मेवारी सौंपी जा सकती है. हालांकि भाजपा के लिए वर्ष 2014 काफी महत्वपूर्ण रहा.
इस बार पार्टी ने लोकसभा, विधानसभा के साथ-साथ मेयर चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया. लोकसभा की 14 सीटों में से 12 में पार्टी प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. मेयर चुनाव में भी पार्टी प्रत्याशी आशा लकड़ा भारी मतों से जीतीं. पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार पार्टी प्रत्याशी ने दोगुनी सीटों पर विजय प्राप्त की.
यही वजह है कि झारखंड में इस बार एनडीए गंठबंधन की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. इन चुनावों में प्रदेश पदाधिकारियों की अहम भूमिका रही. कई प्रदेश पदाधिकारियों ने लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव भी लड़ा. अध्यक्ष समेत दो पदाधिकारी सांसद बन गये हैं. वहीं दो पदाधिकारी चुनाव जीत कर विधायक बन गये हैं. सांसद विधायक बनने के बाद इनकी जिम्मेदारी और बढ़ गयी है.
अध्यक्ष व महामंत्री बने सांसद तीन उपाध्यक्ष बने विधायक
लोकसभा चुनाव जीत कर प्रदेश अध्यक्ष डॉ रवींद्र कुमार राय और महामंत्री सुनील कुमार सिंह पहले ही सांसद बन चुके हैं. इनके अलावा आठ उपाध्यक्षों में से तीन विधायक बन गये हैं. इसमें दिनेश उरांव, अनंत ओझा और बिरंची नारायण शामिल हैं. इनके अलावा मंत्री आशा लकड़ा चुनाव जीत कर मेयर बन चुकी हैं. कुल 30 पदाधिकारियों में से छह फिलहाल दोहरी भूमिका निभा रहे हैं. अपने काम के अलावा संगठन का भी काम देख रहे हैं. भाजपा में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत है. हालांकि सांसद और विधायक को पार्टी में पद नहीं माना जाता है. पिछली कमेटी में भी किसी भी विधायक सांसद को जिम्मा नहीं सौंपा गया था.
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