एजेंसियां, नयी दिल्लीवे दिन लद गये दिखते हैं, जब कंपनियों की वार्षिक आमसभाएं चाय-समोसा पार्टी बन कर खत्म हो जाया करती थीं. किसी शेयर धारक को कोई शिकायत होती भी थी, तो वह भुनभुनाहट से ऊपर नहीं उठती थी. इन सभाओं में अब शेयरधरकों की आवज बुलंद होने लगी है. वर्ष 2014 ऐसी घटनाओं का गवाह बना, जबकि शेयरधारकों की बात सुनी गयीं. उन्हें प्रवर्तकों के फायदे के सौदे पर सवाल उठा कर कंपनी को उनमें बदलाव को मजबूर किया. शीर्ष कार्यकारियों के मोटे वेतन के प्रस्तावों पर अपने निषेधाधिकार का इस्तेमाल किया.कुछ विवादास्पद सौदों को रोकने और कंपनी संचालन में पारदर्शिता के लिए कारगर दबाव बनाने के बाद अब उम्मीद है कि नये साल में शेयरधारक और सक्रिय होंगे. वर्ष 14 में व्यक्तिगत शेयरधारक, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआइआइ), साझा कोष कंपनियां और बीमा कंपनियांे समेत अल्पांश शेयरधारक अपने अधिकार के प्रति ज्यादा सतर्क दिखे. भारतीय शेयर बाजारों में 5,000 से कंपनियां सूचीबद्ध है. शेयर बाजार नियामक सेबी के अध्यक्ष यूके सिन्हा ने कहा कि हालात बदल रहे हैं. शेयरधारकों तथा निदेशक मंडल की बैठकें अब सिर्फ ‘चाय-समोसा पार्टी’ नहीं रहीं, क्योंकि निवेशक एवं स्वतंत्र निदेशक अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. उन्होंने संस्थागत निवेशकों से कंपनी प्रबंधन द्वारा किये गये प्रस्ताव पर मतदान करते हुए और सक्रिय होने तथा अपेक्षाकृत छोटे शेयरधारकों के लिए ‘संरक्षक’ की भूमिका अदा करने का आह्वान किया.
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शेयरधारकों के मुखर होने का बाजार पर दिखा असर
एजेंसियां, नयी दिल्लीवे दिन लद गये दिखते हैं, जब कंपनियों की वार्षिक आमसभाएं चाय-समोसा पार्टी बन कर खत्म हो जाया करती थीं. किसी शेयर धारक को कोई शिकायत होती भी थी, तो वह भुनभुनाहट से ऊपर नहीं उठती थी. इन सभाओं में अब शेयरधरकों की आवज बुलंद होने लगी है. वर्ष 2014 ऐसी घटनाओं का […]
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