तब मिली पहली राजनीतिक सफलतावरीय संवाददाता, रांचीअमित महतो की सफलता 10 सालों की संघर्ष की सफलता है. यह आनन-फानन में नहीं मिली, और न ही संयोग से. वर्ष 2003 में बीआइटी मेसरा से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के बाद अमित महतो के पास सारा आकाश था. एक आम युवा की तरह उड़ने व सपने देखने के लिए. यह वक्त कैरियर बनाने का था. पर इस नौजवान ने इसके लिए दूसरी राह चुनी. बकौल अमित वह राजनीति को पेशा बनाने नहीं आये. इसके पीछे समाज व लोगों की मदद का सपना व आकांक्षा दोनों थी. दरअसल अमित के राजनीति में आने की वजह भी मदद से ही जुड़ी घटना है. तब बाबूलाल मुख्यमंत्री थे. वर्ष 2003 की घटना है. रांची सहित पूरा राज्य डोमिसाइल की आग में जल रहा था. रांची कॉलेज के पास एक बच्चे को गोली लग गयी थी. एक युवक ने उसे अस्पताल पहुंचाया, पर बच्चा जीवित न रह सका. बाद में उस युवक को भी झूठे मामले में फंसाने की कोशिश हुई, पर उसने हर परिस्थिति का सामना किया. वह युवक अमित महतो था. श्री महतो के करीबी मानते हैं कि उसने उसी दौरान राजनीति में आने का मन बना लिया था. तब से अब तक अमित ने अपने इसी परवान को हवा दी. सिल्ली के लोगों के साथ दुख-सुख में खड़ा होने की कोशिश की. अमित के अनुसार पैसे से मदद करने की औकात न तब थी, न आज है. पर जो बनता था, करते थे. देर से ही सही, क्षेत्र के लोगों ने उन्हें पहचाना. यह पहचान कुछ ऐसी रही कि अमित ने आजसू के सुप्रीमो व एक राजनीतिक ताकत बन रहे सुदेश महतो को बड़े अंतर से हरा दिया. बतौर झामुमो प्रत्याशी उन्होंने तीन बार से लगातार पास रहे सुदेश को फेल कर दिया.
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अमित ने गुजारे हैं संघर्ष के 10 साल
तब मिली पहली राजनीतिक सफलतावरीय संवाददाता, रांचीअमित महतो की सफलता 10 सालों की संघर्ष की सफलता है. यह आनन-फानन में नहीं मिली, और न ही संयोग से. वर्ष 2003 में बीआइटी मेसरा से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के बाद अमित महतो के पास सारा आकाश था. एक आम युवा की तरह उड़ने व सपने […]
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