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खटालों का पुनर्वास नहीं

रांची: राजधानी के बीच बसे खटालों का शहर के बाहर पुनर्वास की योजना आज तक पूरी नहीं हो सकी है. वर्ष 2004 में झारखंड हाइकोर्ट ने एक जनहित याचिका (सं-149/03) पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा था कि वह खटालों को योजना बना कर शहर के बाहर बसाये. इस आदेश के बाद पशुपालन […]

रांची: राजधानी के बीच बसे खटालों का शहर के बाहर पुनर्वास की योजना आज तक पूरी नहीं हो सकी है. वर्ष 2004 में झारखंड हाइकोर्ट ने एक जनहित याचिका (सं-149/03) पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा था कि वह खटालों को योजना बना कर शहर के बाहर बसाये.

इस आदेश के बाद पशुपालन विभाग ने नाबार्ड की सहयोगी संस्था नैबकॉन से खटाल पुनर्वास प्रोजेक्ट की डीपीआर बनवायी थी. नैबकॉन को प्रोजेक्ट की डीपीआर बनाने के लिए 25.34 करोड़ रु बतौर फीस अदा किये गये थे. तब शहर में छोटे-बड़े 900 खटाल चिह्न्ति किये गये थे. इन्हीं खटालों व इनके कर्मियों का पुनर्वास होना था. पर पुनर्वास का काम आज भी बाकी है. शहर में अब भी गाय-भैंसों को सड़कों पर टहलते देखा जा सकता है. सफाई, स्वच्छता व यातायात व्यवस्था का सवाल खड़ा करते हुए खटालों के शहर से हटाने संबंधी जनहित याचिका दायर हुई थी. पर यह सवाल आज भी वहीं खड़ा है.

नहीं मिली जमीन : डीपीआर तैयार होने के बाद पशुपालन विभाग ने जिला प्रशासन से खटाल पुनर्वास के लिए जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया था. झिरी, नगड़ी व नामकुम में पुनर्वास होना था. यहां जमीन अधिग्रहण के लिए जिला प्रशासन को सात करोड़ रु भी उपलब्ध कराये गये थे, पर जिला प्रशासन विभाग को आज तक जमीन उपलब्ध नहीं करा पाया है.

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