लातेहार: लातेहार से कुमंडीह की दूरी मात्र 13 किलोमीटर है. वहां जाने के लिए सिर्फ ट्रेन ही जरिया है. दो पटरियों के बीच की खाली जगह से कुछ लोग बाइक से जा सकते हैं. कुमंडीह से करीब चार किमी दूर दक्षिण दिशा में राजगढ़ पहाड़ है. इसी पहाड़ पर नक्सलियों का दस्ता पिछले चार-पांच माह से रुका हुआ है.
पुलिस का ऑपरेशन भी इसी पहाड़ से शुरू हुआ है. इस पहाड़ पर कभी मेदिनी राजा ने किला की सुरंग से निकलने का रास्ता बनाने की शुरुआत की थी, लेकिन अब यह पहाड़ नक्सलियों का पनाहगार साबित हो रहा है. वहां अब भी नक्सली जमे हुए हैं. लगातार पांच दिनों तक चले इस अभियान के दौरान दूसरे व तीसरे दिन इस पहाड़ पर 400-500 विस्फोट हुए हैं. 300 के करीब लैंड माइंस नक्सलियों ने किये, तो पुलिस ने भी पहाड़ के नीचे से करीब 200 मोर्टार दागे.
इसकी आवाज दूर तक सुनाई दी. पहाड़ के पश्चिम में बड़काडीह गांव के गैरबही टोला है. यहां के लोग पहाड़ी पर हुए विस्फोटों के गवाह हैं. टोला के प्रभु मिस्त्री ने कहा: दो दिन तक हुई गोलीबारी व विस्फोट से राजगढ़ पहाड़ छलनी हो गया है. कान बहरा हो गया है.
लंबे समय से लड़ रहे हैं नक्सली
कुमंडीह में नक्सली और सीआरपीएफ जवान के बीच चार-पांच दिनों तक रुक-रुक कर मुठभेड़ चलती रही. 48 घंटे तक तो लगातार चली. यह नक्सलियों के युद्ध कौशल और लंबे समय तक फोर्स से लड़ने की बढ़ती क्षमता को बता रहा है. पिछले सात-आठ सालों से नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला रहे सीआरपीएफ के एक सीनियर अधिकारी कहते हैं : शुरू (2003-04) में फोर्स के सामने नक्सली 10-15 मिनट से ज्यादा नहीं टिकते थे. धीरे-धीरे घंटों में आ गये और अब तो लगातार तीन-चार दिनों से अड़े हुए हैं. वो अब भी पहाड़ पर जमे हुए हैं. साफ है कि युद्ध के मामले में भी नक्सली पहले से कई गुना ज्यादा पारंगत हो गये हैं. कमांडेंट रैंक के दूसरे अधिकारी ने बताया कि शुरुआत में हम यह समझ रहे थे कि अभियान दो दिनों तक चलेगा, लेकिन पांचवें दिन भी जारी है. आगे और जारी रहने का अंदेशा है. इसी कारण फोर्स को रिप्लेस भी किया गया है.