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निजी स्वार्थ को लेकर दायर हो रहे पीआइएल, हाइकोर्ट सख्त (यह खबर रविवार को अनिवार्य रूप से लगा लें)

पांच हजार से लेकर एक लाख तक का लग चुका है हर्जानावरीय संवाददाता, रांची झारखंड हाइकोर्ट में प्रत्येक कार्यदिवस औसतन दो जनहित याचिकाएं (पीआइएल) दायर हो रही हैं. झारखंड हाइकोर्ट पहले से ही जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर सख्त रुख अपना रहा है. हाइकोर्ट दर्जनों बेबुनियाद जनहित याचिकाओं को खारिज कर चुका है. साथ ही […]

पांच हजार से लेकर एक लाख तक का लग चुका है हर्जानावरीय संवाददाता, रांची झारखंड हाइकोर्ट में प्रत्येक कार्यदिवस औसतन दो जनहित याचिकाएं (पीआइएल) दायर हो रही हैं. झारखंड हाइकोर्ट पहले से ही जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर सख्त रुख अपना रहा है. हाइकोर्ट दर्जनों बेबुनियाद जनहित याचिकाओं को खारिज कर चुका है. साथ ही याचिकाकर्ताओं पर पांच हजार से लेकर एक लाख रुपये तक का हर्जाना भी लगा चुका है, ताकि जनहित याचिका के दुरुपयोग पर विराम लग सके. इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट ने कई दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं, जिसमें कहा गया है कि बेबुनियाद जनहित याचिकाओं की वजह से कोर्ट का महत्वपूर्ण समय बरबाद होता है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरांचल सरकार बनाम बलवंत सिंह चंदफूल व अन्य के मामले में सुनवाई करते हुए जनहित याचिका को लेकर कई दिशा-निर्देश जारी किये हैं. वहीं हाइकोर्ट ने अधिसूचना जारी कर झारखंड हाइकोर्ट (पब्लिक इंटरेस्ट लेटिगेशन) रूल्स बनाया है. क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देशजनहित याचिकाओं के दुरुपयोग को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाइकोर्ट को निर्देश दिया है कि हाइकोर्ट सही जनहित याचिकाओं को तरजीह दे. साथ ही गलत नीयत से याचिका दायर करने वाले लोगों को हतोत्साहित करने का भी प्रावधान करे. याचिका स्वीकृत करने पर पहले याचिकाकर्ता के क्रेडेंसियल ( परिचय पत्र) की जांच करें. याचिका मंे लगाये गये आरोपों पर संतुष्ट होने के बाद ही उस पर सुनवाई की जाये. उन याचिकाओं को तवज्जो दी जाये, जिससे एक बड़ा समूह प्रभावित हो रहा हो. इस बात का ध्यान रखा जाये कि कोई अपना निजी हित नहीं साधे. क्या है झारखंड हाइकोर्ट रूल्स मेंसुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में झारखंड हाइकोर्ट ने नियमावली बनायी है. इसे झारखंड हाइकोर्ट (पब्लिक इंटरेस्ट लेटिगेशन) रूल्स 2010 के नाम से जाना जाता है. इसमें यह प्रावधान किया गया है कि सिर्फ वैसे मामलों को ही पीआइएल माना जायेगा, जिसमें व्यापक और वास्तविक जनहित का मुद्दा जुड़ा हुआ हो. सुनवाई में अदालत पहले यह सुनिश्चित करेगी कि याचिका किसी निजी लाभ या गलत तरीके से किसी को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से तो नहीं दायर किया गया है. नियम में इस बात का भी प्रावधान किया गया है कि पीआइएल दायर करनेवाले व्यक्ति को इस बात का शपथ पत्र भी देना होगा कि इस याचिका में उसका कोई निजी हित शामिल नहीं है. इसके अलावा याचिकाकर्ता को अपना विस्तृत ब्योरा जैसे शिक्षा, जनहित के मुद्दों से उनका लगाव, किये गये सामाजिक कार्य आदि देना होगा. याचिकाकर्ता को अपनी जानकारी के हिसाब से इस बात का भी ब्योरा देना होगा कि वह जिस मुद्दे को लेकर जनहित याचिका दायर कर रहा है, उस मुद्दे को लेकर पूर्व में अदालत में कोई याचिका दायर की गयी थी या नहीं. अगर याचिका दायर की गयी थी, तो फैसला क्या था. कैसी-कैसी जनहित याचिकाएंएक लाख का हर्जाना लगाराज्यसभा चुनाव को लेकर जयशंकर पाठक ने हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया. याचिकाकर्ता को यह राशि झालसा के पास जमा करने का निर्देश दिया था. इसी प्रकार वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के खिलाफ दायर याचिका को कोर्ट ने खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगायी थी.धौनी के खिलाफ भी हुआ था पीआइएलटीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के खिलाफ भी हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई थी. हरमू वासियों ने महेंद्र सिंह धौनी के घर में बन रहे स्वीमिंग पुल पर रोक लगाने का आग्रह किया था. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया था. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह पब्लिसिटी इंटरेस्ट याचिका है. याचिका दायर होने से टीम इंडिया के कप्तान की छवि धूमिल हुई है. वर्जनझारखंड हाइकोर्ट ने जो पीआइएल रूल्स बनाया है, वह सराहनीय है. उसका अनुपालन होना चाहिए. जो मामले जनहित के दायरे में नहीं आते है, वैसे मामले में भी जनहित याचिका दायर हो रहे है. जिस उद्देश्य से जनहित याचिका दायर करने की व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट ने स्थापित की थी, वह बहुत ही नेक उद्देश्य से बनाया गया था. वह लोकहित में बनाया गया था, लेकिन वर्तमान माहौल में जो प्रवृत्ति बढ़ी है, वह चिंताजनक है. इसलिए हाइकोर्ट ने जो रूल्स तय किया है, उसका कड़ाई से पालन कराया जाना चाहिए, ताकि लोकहित के मुद्दों का निष्पादन हो सके. राजेश कुमार शुक्ला, उपाध्यक्ष झारखंड स्टेट बार काउंसिल.

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