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राणा की पेंटिंग में आदिवासी समाज की झलक

धर्मेंद्र @ रांचीहजारीबाग की रहने वाली हैं रेखा के.राणा आधुनिक भारतीय चित्रकला सभी रूपों में खुद को नये सिरे से खोज रही है. परिभाषित कर रही है. नये प्रयोगों का आकाश और विस्तृत हुआ है. इस बदलावों से इसे कोई गुरेज नहीं है. हजारीबाग की रेखा के. राणा अपनी इसी विद्या में लकीरों और रंगों […]

धर्मेंद्र @ रांचीहजारीबाग की रहने वाली हैं रेखा के.राणा आधुनिक भारतीय चित्रकला सभी रूपों में खुद को नये सिरे से खोज रही है. परिभाषित कर रही है. नये प्रयोगों का आकाश और विस्तृत हुआ है. इस बदलावों से इसे कोई गुरेज नहीं है. हजारीबाग की रेखा के. राणा अपनी इसी विद्या में लकीरों और रंगों के साथ प्रयोग कर रही हैं. इनकी रेखाओं में झारखंड के आदिवासी समाज की झलक दिखती है. इनके रंग तीखे और सजीले हैं. तीखेपन का अहसास आदिवासी समाज के पिछड़ेपन से किया जा सकता है. इसकी गरीबी से किया जा सकता है. इनकी पेंटिंग में आदिवासी समाज की झलकियां दिखती है. वहीं सजीले रंग से झारखंड की प्राकृतिक सुंदरता को निहार सकते हैं. यहां की अनुपम छटा, जंगल और पहाडि़यों से गिरते झरने को देखा जा सकता है. राणा की पेंटिंग की लकीरों में इतनी ऊर्जा है कि आखिरी बिंदू तक उसका तीखापन और सुंदरता बना दिखता है. इन चित्रों की कल्पना की उड़ान यहां की भूमि पर पहाडि़यों से गिर रहे झरने से कम नहीं है. उनकी पेंटिंग में अद्भुत रंग-संयोजन है. वर्ष 1977 में जन्मीं इस कला धर्मी के व्यक्तित्व की बिजलियां छह साल की उम्र में ही कौंधने लगी थी. रेखा झारखंडी संस्कृति और सभ्यता की झंडाबरदारों में से एक हैं. वह देश के कोने-कोने में झारखंड की संस्कृति और कला को प्रोत्साहित और प्रसारित कर रही हैं. उन्हें देशभर में सराहा और अपनाया जा रहा है. ……………………………………कला और पर्यटन को मिले बढ़ावारेखा राणा कहती हैं कि झारखंड में कला और पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत है. यहां के आदिवासी समाज के अंदर छिपी हुई कला को निखारने की जरूरत है. झारखंड की ताकत यहां की कला और संस्कृति है. यदि इस क्षेत्र में विकास किया जाये, तो आदिवासी समाज तेजी से प्रगति करेगा. …………………………… रेखा राणा को जानिएरेखा राणा का जन्म वर्ष 1977 में हजारीबाग जिले में हुआ. उनकी तीसरी तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल से हुई. इसके बाद इनका परिवार बोकारो स्टील सिटी आ गया. कक्षा चौथी से 12वीं तक की पढ़ाई बोकारो इस्पात विद्यालय, सेक्टर 2 सी से हुई. शुरू से ही पेंटिंग की शौकीन राणा आगे की पढ़ाई करने के लिए वाराणसी पहुंच गयीं. भारतीय संस्कृति की इस राजधानी में उन्होंने अपने 16 वर्ष दिये. इस दौरान उन्होंने बीएचयू से बीएफए, एमएफए (क्रिएटिव पेंटिंग) और पीएचडी की डिग्री हासिल की. वह गोल्ड मेडल भी हासिल कर चुकी हैं. अभी मुंबई में वह काम कर रही हैं. पेंटिंग की क्षेत्र में अपनी खास पहचान बना चुकीं रेखा राणा कहती हैं कि उनकी सफलता के पीछे पिता मानेश्वर राणा और मां शकुंतला राणा का योगदान रहा है. दादी और नानी ने भी उन्हें काफी सपोर्ट किया……………………………………..ये मिल चुका सम्मानबीएचयू रिसर्च फेलोशिप 2001-03, सोलो शो 2002 के लिए ललित कला अकादमी ग्रांट, यूपी स्टेट ललित कला अकादमी स्कॉलरशिप 2003-04, ललित कला अकादमी नेशनल स्कॉलरशिप 2005-06, कॉमनवेल्थ स्कॉलरशिप 2004-05.इसके अलावा वर्ष 2004-05 और 2005-06 में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा इंडो-चाइनिज कल्चरल एक्सचेंज स्कॉलरशिप प्रोग्राम के लिए रेखा राणा का चयन किया गया. भारत सरकार के संस्कृति कला विभाग ने झारखंड के जीवन और संस्कृति पर काम करने के लिए 2012-13 में जूनियर फेलोशिप दिया है. ………………………………झारखंड सरकार से डिमांड1. ललित कला अकादमी की स्थापना2. कलाकारों को आर्थिक मदद मिले3. फाइन आर्ट्स का कॉलेज4. लोककला के विकास के लिए डाइरेक्ट फंडिंग

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