प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा कि दल-बदल बाढ़ की तरह है. जिस प्रकार बाढ़ का पानी पिया नहीं जाता, उसी तरह दल-बदल की स्थिति होती है. वह बाढ़ की तरह आते हैं और फिर चले जाते हैं. उनमें स्थिरता नहीं होती. उनका शामिल होना क्षणिक होता है. बाढ़ में रह जाते हैं वहीं पुराने पेड़, जिसके नीचे सांप और बिच्छू भी शरण लेते हैं. श्री भगत ने कहा कि दल-बदल की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है. इसपर राजनीतिक दलों को भी विचार करना होगा. मजबूत नेता, स्थिर सरकार पर श्री भगत ने कहा कि सत्य बहुत कटु होता है. सत्य और यथार्थ के विश्लेषण करने पर स्थिर सरकार की बातें स्पष्ट होती है. 1997 में सरकार बनी, पर चली नहीं. वहीं गंठबंधन में पहले एनडीए ने फिर यूपीए ने भी कार्यकाल पूरा किया. गंठबंधन स्थिर सरकार में बाधक नहीं है. सरकार का आना और जाना परिस्थितियों पर निर्भर करता है. यह भी देखना होगा कि इन परिस्थितियों का निर्माता कौन है और इसकी बार-बार पुनरावृत्ति कैसे हुई? उन्होंने कहा कि पूर्ण बहुमत की सरकार भी काम नहीं कर सकी. लोकतंत्र में निर्णय जनता का होता है. जो भी दायित्व, जनादेश मिला है उसे निष्ठा से निभाने की जरूरत है. 14 साल में झारखंड में सरकारों का पतन देखा. कारण अति महत्वाकांक्षा रही. जनप्रतिनिधियों को शीशे की तरह होना चाहिए. पारदर्शी होना चाहिए, लेकिन जब इस शीशे पर स्वार्थ का परत चढ़ जाता है, तो केवल अपना चेहरा नजर आता है. श्री भगत ने कहा कि आज प्रदेश में राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दल भी हैं. ऐसी परिस्थिति में सामूहिक नेतृत्व पर चलना होगा. साझा निर्णय ही विकास के रास्ते पर आगे लेकर चलेगा, लेकिन जरूरी है कि तब हम मन से कुछ, वचन से कुछ और कर्म से कुछ और न हों. इन तीनों में एकरूपता रहे.
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दल-बदल बाढ़ की तरह क्षणिक होता है : सुखदेव भगत
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा कि दल-बदल बाढ़ की तरह है. जिस प्रकार बाढ़ का पानी पिया नहीं जाता, उसी तरह दल-बदल की स्थिति होती है. वह बाढ़ की तरह आते हैं और फिर चले जाते हैं. उनमें स्थिरता नहीं होती. उनका शामिल होना क्षणिक होता है. बाढ़ में रह जाते हैं वहीं […]
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