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दिखने का लगाया ‘प्रयास’ का असर

पायलट प्राजेक्ट के तहत 24 प्रखंड में हुई थी शुरुआत रांची जिले के के सभी प्रखंडों में शुरू हुई योजना स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ कर 80 फीसदी तक हुई लाइफ रिपोर्टर @ रांचीराज्य के प्राथमिक और मध्य विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए बनायी गयी योजना ‘प्रयास’ का असर दिखने लगा […]

पायलट प्राजेक्ट के तहत 24 प्रखंड में हुई थी शुरुआत रांची जिले के के सभी प्रखंडों में शुरू हुई योजना स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ कर 80 फीसदी तक हुई लाइफ रिपोर्टर @ रांचीराज्य के प्राथमिक और मध्य विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए बनायी गयी योजना ‘प्रयास’ का असर दिखने लगा है. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति में काफी बढ़ोतरी हुई है. इस योजना को पायलट प्रोजक्ट के तहत सभी जिलों के एक -एक प्रखंड के विद्यालय में लागू किया गया था. योजना इस वर्ष मई में लागू की गयी थी. इसकी समीक्षा के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है. कार्यशाला में सभी प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी ने योजना लागू होने के बाद बच्चों की उपस्थिति में हुई बढ़ोतरी की जानकारी दी. कई स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति 80 फीसदी तक हो गयी है. पहले विद्यालय आने वाले बच्चों की संख्या 50 फीसदी तक थी. यह योजना झारखंड शिक्षा परियोजना के प्रशासी पदाधिकारी प्रदीप कुमार चौबे ने बनायी है. सहपाठी लाते हैं स्कूल इस योजना के तहत सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चों के स्कूल नहीं आने पर अब उनके सहपाठी स्कूल लाने उनके घर जाते हैं. स्कूल से बाहर पांच से 14 वर्ष तक के बच्चों को स्कूल लाने की योजना है. इस महीने से रांची जिले के सभी स्कूलों में इस योजना को लागू किया जायेगा. क्या है योजना स्कूल में बच्चों की औसत उपस्थिति के आधार पर बच्चों को स्कूल लाने की योजना. प्रत्येक विद्यालय के पोषक क्षेत्र का निर्धारण. बाल पंजी में क्षेत्र के शून्य से 14 वर्ष तक के बच्चों का नाम व पंजी को समय-समय पर अद्यतन किया किया जाता है. स्कूल में बच्चों की उपस्थिति दो बार दर्ज होगी. प्रतिदिन स्कूल आनेवाले बच्चों के लिए उपस्थिति पंजी में जी, तीन दिन लगातार नहीं आनेवालों के लिए वाई, 15 दिन नहीं आनेवालों के लिए बी व एक माह तक स्कूल नहीं आनेवाले बच्चों की उपस्थिति पंजी में आर लिखा जाता है. महीने भर स्कूल आनेवाले बच्चों को अलग-अलग ग्रुप में बांटा जायेगा. प्रत्येक ग्रुप की देख-रेख का जिम्मा विद्यालय के एक शिक्षक या ग्राम शिक्षा समिति के सक्रिय सदस्य पर होता है. महीने भर स्कूल नहीं आनेवाले बच्चों के अभिभावक को शनिवार को होनेवाले शिक्षक अभिभावक बैठक में बुलाया जाता है. बच्चे को स्कूल भेजने के लिए अभिभावक की काउंसलिंग की जाती है. बच्चे जिस कारण से स्कूल नहीं आ रहे हैं, उसे दूर किया जाता है. इसके बाद भी अगर बच्चे स्कूल नहीं आते हैं, तो क्षेत्र के सीआरपी बच्चों को स्कूल लाने के लिए घर जाते हैं. बच्चे इसके बाद भी स्कूल नहीं आते, तो ग्रुप के बच्चे घर जाकर अपने दोस्त को स्कूल लाते हैं.

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