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VIDEO : झारखंड में हेमंत सोरेन की जीत का ऑक्सफोर्ड कनेक्शन

मिथिलेश झा रांची : अखिलेश यादव, जगन मोहन रेड्डी और हेमंत सोरेन उन सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में शुमार हो गये हैं, जिन्होंने अपने पिता की विरासत संभाली है. झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम की पूरे देश में चर्चा हो रही है. विश्लेषण हो रहे हैं. भाजपा की हार और हेमंत सोरेन की जीत की वजह […]

मिथिलेश झा

रांची : अखिलेश यादव, जगन मोहन रेड्डी और हेमंत सोरेन उन सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में शुमार हो गये हैं, जिन्होंने अपने पिता की विरासत संभाली है. झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम की पूरे देश में चर्चा हो रही है. विश्लेषण हो रहे हैं. भाजपा की हार और हेमंत सोरेन की जीत की वजह बतायी और तलाशी जा रही है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व क्षमता की सभी तारीफ कर रहे हैं. उनकी रणनीति को सभी सफल मान रहे हैं, लेकिन जीत के असल हीरो वो 12 लोग हैं, जो ऑक्सफोर्ड, ससेक्स, एसेक्स और टीआइएसएस जैसे दुनिया के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों से जुड़े हैं. इस जीत के रचनाकर वे 15 युवा प्रोफेशनल हैं, जिन्होंने सोशल मीडिया के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकर्ताओं को ट्रेंड किया.

शिबू सोरेन के 44 साल के पुत्र हेमंत सोरेन वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में नयी रणनीति के साथ आगे बढ़े और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रघुवर दास सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया. इसकी शुरुआत उन्होंने सितंबर, 2018 से ही कर दी थी. लोकसभा चुनाव से पहले जो अभियान झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने शुरू किया, उसे ‘संघर्ष यात्रा’ नाम दिया. इसके तहत उन्होंने राज्य के सभी 263 प्रशासनिक ब्लॉक में जाकर सभाएं कीं. युवाओं को पार्टी से जोड़ा, झारखंड के लिए शहीद हुए आदिवासियों को सम्मानित किया. बड़े पैमाने पर डिजिटल प्रचार अभियान चलाया.

जैसे ही ‘संघर्ष यात्रा’ का समापन हुआ, हेमंत सोरेन एक बार फिर यात्रा पर निकल पड़े और इस यात्रा को नाम दिया ‘परिवर्तन यात्रा’. इस यात्रा की शुरुआत उन्होंने संथाल परगना के साहिबगंज से की. रांची में इसका समापन हुआ. यात्रा के दौरान वह सुदूर इलाकों में भी गये. आंगनबाड़ी सेविकाओं और पारा शिक्षकों से मिले. उनकी समस्याएं सुनीं. उनकी समस्या के समाधान का वादा किया. अपनी पूरी यात्रा के दौरान उन्होंने जो कुछ भी देखा और समझा, उसके आधार पर पार्टी का घोषणा पत्र तैयार किया.

इस तरह हेमंत सोरेन ने संथाल परगना के आदिवासी बहुल सीटों तक सीमित माने जाने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को पूरे झारखंड की पार्टी बना दिया और खुद पूरे झारखंड के नेता बन गये. इस तरह पूरे झारखंड में झामुमो का जनाधार बढ़ा और सिर्फ 26.2 फीसदी आदिवासियों तक सीमित इस पार्टी को वहां भी जीत मिली, जहां जीतने के बारे में शिबू सोरेन या हेमंत सोरेन ने सोचा भी नहीं था. पहली बार लातेहार और पलामू प्रमंडल के गढ़वा विधानसभा में झामुमो के उम्मीदवार जीते हैं.

हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा चुनाव में ही महागठबंधन पर जोड़ दिया. कांग्रेस, राजद और बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने की रणनीति बनायी. प्रदेश में यह प्रयोग असफल रहा. विधानसभा चुनाव से पहले यही कहा जा रहा था कि लोकसभा चुनाव की तरह राज्य के चुनाव में भी यह गठबंधन बिखर जायेगा. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी चुनाव प्रचार से लगातार दूर रहे. प्रियंका या सोनिया गांधी ने भी ज्यादा प्रचार नहीं किया. फिर भी झामुमो की अगुवाई वाले गठबंधन को 47 सीटें मिलीं, तो इसकी वजह ऑक्सफोर्ड, ससेक्स, एसेक्स और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के एक दर्जन प्रोफेशनल्स थे.

पब्लिक पॉलीसी और कम्युनिकेशन एंड कंसल्टिंग स्पेशलिस्ट की 12 लोगों की टीम ने झारखंड से जुड़े मुद्दों की सूक्ष्मता से मैपिंग की. फील्ड एनालिसिस की और 360 डिग्री कम्युनिकेशन के अलावा झामुमो की सांगठनिक क्षमता बढ़ायी. 15 युवा विशेषज्ञों ने झामुमो के 200 कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया पर लोगों से संवाद करने के लिए ट्रेंड किया. उन्हें सिखाया कि कैसे पार्टी के अभियान को आगे बढ़ाया जाये. किस तरह पार्टी के नेता के कार्यक्रमों, रैलियों और पार्टी की नीतियों को लेकर जनता के बीच जायें. फेसबुक और ट्विटर पर लोगों को अपनी पार्टी से जोड़ें.

इधर, हेमंत सोरेन ने बिना इस बात की परवाह किये कि कांग्रेस में क्या अंदरूनी कलह है, वह अपने प्रचार अभियान में जुटे रहे. उनकी टीम ने उनकी ऐसी ब्रांड इमेज बनायी कि झारखंड का चुनाव प्रचार अमेरिका के प्रेसिडेंशियल कैंपेन बन गया और हेमंत सोरेन झारखंड की सत्ता के शिखर पर पहुंच गये. वर्ष 2012-13 में अर्जुन मुंडा की अगुवाई वाली भाजपा सरकार में झारखंड के उप-मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन वर्ष 2014 के राज्य विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करने वाले प्रदेश के एकमात्र मुख्यमंत्री थे. बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा सरीखे दिग्गज मुख्यमंत्री भी चुनाव हार गये थे.

इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से लगाव रखने और मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने के शौकीन हेमंत सोरेन की इस सफलता ने अन्य राज्यों में भाजपा की सहयोगी पार्टियों को उस पर दबाव बनाने का मौका दे दिया है, तो दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को मात देने का कोई फॉर्मूला मिल गया है. मोदी-शाह की जोड़ी की रणनीति को विफल करने वाला कोई फॉर्मूला विपक्षी दलों को मिला है या नहीं, यह तो वे ही जानें, लेकिन झारखंड में रघुवर दास का 65 पार का फॉर्मूला फेल हो गया. लोकसभा चुनाव से पहले शुरू हुई हेमंत की ‘संघर्ष यात्रा’ और विधानसभा से पहले हुई ‘बदलाव यात्रा’ ने झारखंड में सत्ता परिवर्तन कर दिया.

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