रांची : झारखंड में वित्त रहित शिक्षा नीति समाप्त करने की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की घोषणा विभागीय पेंच में फंसने की संभावना बढ़ गयी है. गौरतलब है कि सरकारी स्तर पर कमेटी की घोषणा की गयी है, लेकिन तकनीकी कारणों से कमेटी अब तक कार्य शुरू नहीं कर पायी है. वर्ष 1982 के बाद बिहार एवं 2000 के बाद झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में समाजसेवियों एवं बुद्धिजीवियों ने समय-समय पर महाविद्यालयों की स्थापना की. इनको मान्यता एवं संबद्धता देने का कार्य सरकार करती है. वित्त रहित कॉलेजों के शिक्षक व कर्मचारी वित्त सहित करने के लिए आंदोलनरत हैं. उन्होंने कई दिनों तक राजभवन के समक्ष धरना व अनशन भी किया. इनके शिक्षकों व कर्मचारियों का कहना है कि सरकार स्वयं मानती है कि ये महाविद्यालय अधिग्रहण की सारी शर्तों को पूरा करते हैं. शिक्षकों का कहना है कि विगत 25-30 वर्षों से इन महाविद्यालयों को अपनी सेवाएं देने वाले अधिकांश शिक्षक व कर्मी सेवा के अंतिम पड़ाव पर हैं. मात्र 5-10 वर्षों में लगभग सभी महाविद्यालयों में अधिकतर पद रिक्त हो जायेंगे. उन्होंने सरकार से मांग की है कि यदि अच्छी स्थिति वाले महाविद्यालयों का अधिग्रहण किया जाये, तो सरकार पर अधिक आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ेगा.
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वित्त रहित शिक्षा नीति विभागीय पेंच में फंसी
रांची : झारखंड में वित्त रहित शिक्षा नीति समाप्त करने की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की घोषणा विभागीय पेंच में फंसने की संभावना बढ़ गयी है. गौरतलब है कि सरकारी स्तर पर कमेटी की घोषणा की गयी है, लेकिन तकनीकी कारणों से कमेटी अब तक कार्य शुरू नहीं कर पायी है. वर्ष 1982 के बाद बिहार […]
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