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खुलासा नं 2 : दवा कंपनियां ही तैयार करती हैं मुनाफे का प्लान, कॉरपोरेट अस्पतालों से होती सांठगांठ

राजीव पांडेय, रांची : किसी भी दवा कंपनी के लिए अपने उत्पाद की अधिक बिक्री ही मुख्य लक्ष्य होता है. इसके लिए दवा कंपनियां सीधे कॉरपोरेट अस्पतालों से सांठगांठ करती हैं. इसके तहत दवा कंपनियां दवाओं के निर्माण व उसके प्रचार-प्रसार , प्रमोशन खर्च के अतिरिक्त 10 से 15 फीसदी अपना मुनाफा और 9 से […]

राजीव पांडेय, रांची : किसी भी दवा कंपनी के लिए अपने उत्पाद की अधिक बिक्री ही मुख्य लक्ष्य होता है. इसके लिए दवा कंपनियां सीधे कॉरपोरेट अस्पतालों से सांठगांठ करती हैं. इसके तहत दवा कंपनियां दवाओं के निर्माण व उसके प्रचार-प्रसार , प्रमोशन खर्च के अतिरिक्त 10 से 15 फीसदी अपना मुनाफा और 9 से 10 फीसदी डिस्ट्रीब्यूटर का मुनाफा जोड़ कर अस्पताल के लिए दवा की कीमत तय करती हैं.

वहीं दवा की एमआरपी उसकी मूल कीमत से करीब 10 गुना तक अधिक प्रिंट की जाती है. दवा कंपनियां ही दवाओं की पैकिंग पर इतना अधिक एमआरपी प्रिंट कर देती हैं कि अस्पताल को कोई घालमेल करने की जरूरत ही नहीं होती है. एमआरपी के आधार पर ही अस्पताल मरीज को दवाओं पर होनेवाले खर्च का बिल देते हैं.
राजधानी के ही एक दवा डिस्ट्रीब्यूटर ने बताया कि हमलोग सब जानते हुए भी आंखें बंद किये रहते हैं. कंपनी और अस्पताल के बीच हमारा काम सिर्फ दवा पहुंचाना होता है. दवाओं की बिक्री के बाद मिलनेवाले मुनाफे से हमारा कोई मतलब नहीं है. हमें दवा पहुंचाने के नाम पर जो नौ से 10 फीसदी मार्जिन मिलता है, हम केवल उसी पर ध्यान देते हैं.
वास्तविक कीमत से 10 गुना ज्यादा निर्धारित की जाती है दवाओं की कीमत
कॉरपोरेट अस्पतालों में महंगी दवाओं के नाम पर मुनाफे का खेल जान कर आप चौंक जायेंगे. दवा कंपनियां ही अस्पतालों के लिए मुनाफा कमाने का प्लान तैयार करती हैं. दवा कंपनी के प्रतिनिधि और अस्पताल प्रबंधन मिलजुल कर दवा की दर तय करते हैं. इससे कंपनी को एक ओर बड़ी मात्रा में दवा बनाने का ऑर्डर मिलता है, वहीं अस्पताल प्रबंधन को 70 फीसदी तक मुनाफा होता है. इसमें डिस्ट्रीब्यूटर शामिल नहीं होता है.
दवा के दाम को लेकर आमने-सामने बात करते हैं अस्पताल प्रबंधन और दवा कंपनियों के प्रतिनिधि
दवा कंपनियों को होता है केवल उत्पाद बेचने से मतलब, 70 फीसदी तक मुनाफा कमाते हैं अस्पताल
डिस्ट्रीब्यूटर को मिलता है केवल नौ से 10 फीसदी तक का ही मुनाफा, हल्की होती है मरीजों की जेब
अस्पताल की कमाई का गणित
दवा : एंटीबायोटिक फास्फोमाइसिन
दवा : कोलिस्टिमिथेट
सोडियम इंजेक्शन
लागत : 296 रुपये
डिस्ट्रीब्यूटर को : 360 से 390 रुपये में मिलता है
अस्पताल को : 390 से 396 रुपये में मिलता है
डिस्ट्रीब्यूटर को : 468 से 495 रुपये में मिलता है
अस्पताल को : 514 से 544 रुपये में मिलता है
एनपीपीए की छूट से अस्पतालों की है चांदी
देश में दवा कंपनियों द्वारा बनायी गयी दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग ऑथरिटी (एनपीपीए) है. यह दवा की कीमतों पर ध्यान रखती है. अगर ऐसा लगता है कि दवाओं की कीमत अनियंत्रित है, तो उसको डीपीसीओ के भीतर लगा कर कीमत को कम करती है. देश के कई बड़ी कंपनियां इस कानून का उल्लंघन करती हैं. ऐसे में एनपीपीए चाह कर भी दवाओं की कीमत को नियंत्रित नहीं कर पाती है.
डिस्ट्रीब्यूटर हो जाता है बेचारा
कंपनी और अस्पताल की सांठगांठ में डिस्ट्रीब्यूटर बेचारे हो जाते हैं. एक डिस्ट्रीब्यूटर ने बताया कि वह कंपनी के निर्देश पर अस्पतालों को दवाएं मुहैया कराया, लेकिन अस्पताल द्वारा उनको समय पर राशि का भुगतान नहीं किया जाता है. राजधानी के अधिकांश अस्पतालों में प्रत्येक डिस्ट्रीब्यूटर का पैसा छह माह तक फंसा रहता है. जबकि, अस्पताल मरीज से समय पर पैसा वसूल लेता है और मुनाफा कमाता रहता है.

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