स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
(बिहार योग विद्यालय, मुंगेर के परमाचार्य)
Advertisement
योग को जीवन शैली में शामिल करने की जरूरत
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती(बिहार योग विद्यालय, मुंगेर के परमाचार्य) योग को अनिवार्य रूप से एक जीवनशैली व एक जीवनविद्या के रूप में हमें अपने जीवन में शामिल करने की जरूरत है. आज के युग में हमारे सामने यही चुनौती है कि हम योगाभ्यास से यौगिक जीवनशैली की ओर अग्रसर हो. योगविद्या से स्वयं को जोड़ें और […]
योग को अनिवार्य रूप से एक जीवनशैली व एक जीवनविद्या के रूप में हमें अपने जीवन में शामिल करने की जरूरत है. आज के युग में हमारे सामने यही चुनौती है कि हम योगाभ्यास से यौगिक जीवनशैली की ओर अग्रसर हो. योगविद्या से स्वयं को जोड़ें और उस विद्या को अपने दैनिक जीवन में प्रयुक्त करें.
प्रा चीनकाल में योग को एक विद्या के रूप में अनुभव, आत्मसात और अभिव्यक्त किया जाता था. इससे जुड़ कर साधक योग के एक संपूर्ण जीवन विज्ञान के रूप में अनुभव करते थे. इसमें जीवन के शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, भावनात्मक तथा आध्यात्मिकता के आयामों का विकास और पोषण होता था.
प्राचीन ऋषि-मुनियों के अंतर ज्ञान के आधार पर योग परंपरा में अनेक प्रामाणिक ग्रंथ और शास्त्र रचे गये. इसका उपयोग साधकों ने अपनी समझ, ज्ञान, प्रज्ञा और अध्यात्मिक चेतना को विकसित करने के लिए किया.
आज के युग में योग की विधियों एवं अभ्यासों को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान आवश्यक है. वैज्ञानिक प्रयोगों और प्रमाणों के माध्यम से योग विद्या की समझ गहन होगी. योग का उपयोग अधिक व्यापक बनेगा. योग की विद्या आज उतनी ही सटीक एवं मूल्यवान है, जितनी हजारों साल पहले थी.
योग आत्मानुशासन की शिक्षा : आधुनिक शिक्षा प्रणाली में हम अपनी बुद्धि और मस्तिष्क का विकास करते हैं, लेकिन भावना, संवेदनशीलता और व्यावहारिकता का विकास इस बौद्धिक शिक्षा से संभव नहीं है. योग भावनात्मक विकास, संवेदनशीलता, व्यावहारिकता व आत्मानुशासन की शिक्षा की प्राप्ति का माध्यम है.
आज विश्व तथा हमारे समाज में कोई समस्या है, तो सिर्फ यह कि व्यक्ति को संयमी और आत्मानुशासित कैसे बनाया जाए.अगर शिक्षा यह कार्य कर सकती, तो शायद योग की आवश्यकता ही नहीं होती, क्योंकि शिक्षा का प्रयोजन सिर्फ बौद्धिक विकास ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के सभी पक्षों को रचनात्मक और सकारात्मक बनाना तथा प्रतिभा व मानवीय गुणों का विकास है़
योग सिर्फ शारीरिक क्रिया नहीं : योग केवल शारीरिक क्रियाओं या ध्यान के अभ्यासों तक सीमित नहीं है़ वे तो योग को सिद्ध करने के साधन हैं, योग नहीं. आसन, प्राणायाम, जप या ध्यान योग के छोटे से अंग हैं. यहां तक कि क्रिया योग व कुंडलिनी योग भी योग के छोटे से भाग हैं.
इनसे योग की वास्तविक व्याख्या नहीं की जा सकती, क्योंकि योग साधना नहीं, बल्कि यह जीवन की एक अवस्था है़ मन की, चेतना की, ऊर्जा की एक अवस्था है, जिसको हम साधना के माध्यम से प्राप्त करते हैं. योग में जिस बात पर जोर दिया जाता है, वह है दृष्टिकोण, विचार और व्यवहार परिवर्तन. परिवर्तन तभी संभव है, जब हम अपने जीवन की वास्तविकता तथा व्यावहारिकता को समझ सकें.
परिवर्तन का अर्थ होता है कि हम उचित-अनुचित के भेद को समझें. यह तभी संभव है, जब मनुष्य की सजगता इस प्रकार जाग्रत हो कि वह अपने दैनिक जीवन के व्यवहार और विचार को उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय और धर्म-अधर्म के मापदंड से नाप सके. योग का सबसे अमूल्य योगदान है कि हर मनुष्य को जीवन में सामर्थ्य, शक्ति और प्रतिभा के प्रति सजग बनाये.
(विदित हो कि बिहार योग विद्यालय योग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कार्य कर रहा. योग के संगठनात्मक विकास के लिए बिहार योग विद्यालय को प्रधानमंत्री अवाॅर्ड- 2019 से नवाजा गया है.)
हृदय रोग से बचाव के स्वर्णिम सूत्र
हंसने-हंसाने की आदत डालें. गेहूं की बजाय जौ के आटे, गाजर, संतरा, बादाम, अखरोट, ऑलिव ऑयल, ब्लैक बींस हृदय रोग से बचाते हैं. कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर स्तर को नियंत्रित रखते हैं और शरीर में वसा को नहीं जमने देते.
प्राणायाम से प्रति मिनट 50 लीटर से अधिक हवा हमारे भीतर जाती है, जो जॉगिंग से मिलने वाली हवा से भी अधिक है. सुबह की सैर करें.
सर्वाधिक 21 प्रतिशत ऑक्सीजन सुबह की हवा में होती है, जो शाम होते-होते महज 4 प्रतिशत रह जाती है.
अधिक पानी और कम कैलोरी
अन्य कौन-से आसन हैं लाभकारी
स्वस्थ हृदय के लिए अर्द्धमत्स्येन्द्रासन, आकर्ण धनुरासन, कपोतासन, चक्रासन, धनुरासन, नटराजासन, पद्मासन, पश्चिमोत्तानासन, बकासन, बद्धकोणासन, भुजंगासन, शवासन, शीर्षासन, सर्वांगासन, सुखासन, सूर्य नमस्कार बेहद उपयोगी हैं. मोटे तौर पर, हृदय रोगों में पीछे झुक कर किये जाने वाले सभी आसन फायदेमंद हैं, किंतु यदि हृदय रोग जटिल हो, तो धनुरासन, विपरीतकरणी, शीर्षासन, सर्वांगासन और हलासन न करें.
कुंभकरहित उज्जायी, नाड़ीशोधन प्राणायाम, योगनिद्रा और ध्यान स्वस्थ और हृदय रोगी- दोनों के लिए हैं, किंतु जिन्हें फेफड़े की समस्या हो, उनके लिए लोलासन और वीरासन, खड़े होकर किये जाने वाले सभी आसन और अंतर्कुंभक वाले प्राणायाम विशेष उपयोगी हैं.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement