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रांची : गीत-संगीत से कलाकारों ने पेश की झारखंडी संस्कृति की झलक

हेहल में तीन दिवसीय लोक नृत्य महोत्सव शुरू चाला अखड़ा खोड़हा हेहल के तत्वावधान में किया गया तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन रांची : चाला अखड़ा खोड़हा हेहल के तत्वावधान में शुक्रवार से तीन दिवसीय लोक नृत्य महोत्सव की शुरुआत हुई. महोत्सव के पहले दिन खूंटी से आये सुखराम पाहन की टीम ने मुंडारी लोकनृत्य […]

हेहल में तीन दिवसीय लोक नृत्य महोत्सव शुरू
चाला अखड़ा खोड़हा हेहल के तत्वावधान में किया गया तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन
रांची : चाला अखड़ा खोड़हा हेहल के तत्वावधान में शुक्रवार से तीन दिवसीय लोक नृत्य महोत्सव की शुरुआत हुई. महोत्सव के पहले दिन खूंटी से आये सुखराम पाहन की टीम ने मुंडारी लोकनृत्य का प्रदर्शन किया.
वहीं, सरिता कच्छप की टीम ने कलसा नृत्य की प्रस्तुति दी. साथ ही सोमरा तिर्की की टीम ने उरांव लोकनृत्य का प्रदर्शन किया. उदघाटन समारोह में सरिता कच्छप व टीम ने सरहुल के गीत का फूल गेला वन में चरका दिसयं पर नृत्य किया. इसका अर्थ है जंगल में कौन सा फूल खिल गया है, जिससे जंगल सफेद दिख रहा है…, शरण उरांव ने महुआ रे महुआ पतई… महुआ पतई सोये झाईर गेल रे…, डारी में खोंस लगे, खोंचा में फूल रे…फूल कीरे धरती सोभय रे… गीत को मनमोहक अंदाज में गाया.
इससे पूर्व अपने संबोधन में शरण उरांव ने कहा कि यह सरहुल का समय है अौर गांव-गांव में सरहुल के गीत गाये जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज में गीत अौर राग मौसम पर आधारित होते हैं.
कई गीत ऐसे हैं, जिनमें वाद्य यंत्रों का उपयोग होता है, जबकि कई गीत बिना वाद्य यंत्रों के ही गाये जाते हैं. कार्यक्रम के आरंभ में उपस्थित अतिथियों का पगड़ी अौर शॉल अोढ़ाकर स्वागत किया गया. कार्यक्रम में कृष्णकांत टोप्पो, प्रदीप लकड़ा, सुषमा अौर चाला अखड़ा खोड़हा के अध्यक्ष बंदी उरांव मुख्य रूप से उपस्थित थे.

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