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रांची : कोर्ट के निर्णय से 11 लाख परिवार होंगे प्रभावित: मंच
रांची : सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी को वनाधिकार कानून 2006 की संवैधानिकता को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई के बाद वनों पर आश्रित समुदायों को अतिक्रमणकारी घोषित करते हुए वनभूमि से बेदखल करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वैसे सभी वनाधिकार दावे, […]
रांची : सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी को वनाधिकार कानून 2006 की संवैधानिकता को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई के बाद वनों पर आश्रित समुदायों को अतिक्रमणकारी घोषित करते हुए वनभूमि से बेदखल करने का आदेश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वैसे सभी वनाधिकार दावे, जिन्हें निरस्त किया गया है उनके दावेदारों को 27 जुलाई 2019 तक बेदखल किया जाये. झारखंड वनाधिकार मंच के संयोजक मंडली के सदस्य फादर जॉर्ज मोन्नोपोली, सुधीर पॉल अौर संजय बसु मल्लिक ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इससे देश भर में वनभूमि पर आश्रित 11 लाख परिवार प्रभावित होंगे. इनमें झारखंड के करीब 28 हजार परिवार हैं. इनमें आदिवासी अौर वनभूमि पर आश्रित अन्य समुदाय के लोग हैं.
कोर्ट में हाजिर नहीं हुए वकील% संयोजक मंडली के सदस्यों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पिछली चार तारीखों में केंद्र सरकार की अोर से उनके अधिवक्ता या प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए. इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार इस मामले में गंभीर नहीं थी.
हम सरकार से मांग करते हैं कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करे अौर कोशिश की जाये कि इस फैसले को बदला जाये. इस मामले पर विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधियों से भी वार्ता कर जनदबाव बनाने की कोशिश की जायेगी. सदस्यों ने कहा कि झारखंड का 29 फीसदी हिस्सा जंगल है.
लगभग सात लाख आदिवासी और तीन लाख गैरआदिवासी लोगों की आजीविका व अस्तित्व वनों पर आधारित है. जंगल की जमीन पर ये खेती करते हैं, केंदु पत्ता, महुआ, साल के बीज, इमली, आंवला, चिरौंजी, चिरैता, वन तुलसी आदि इनकी आजीविका अौर जिंदगी के हिस्से हैं.
अध्यादेश लाकर बेदखली रोके सरकार : इधर, माकपा के राज्य सचिव मंडल ने लाखों आदिवासियों व अन्य परंपरागत वन निवासियों को उनकी जमीन व पेशे से बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आश्चर्य व्यक्त किया है. पार्टी के अनुसार इस निर्णय से झारखंड भी बुरी तरह प्रभावित होगा. माकपा, केंद्र सरकार से मांग करती है कि बिना देर किये, अध्यादेश लाकर बेदखली पर रोक लगायी जाये.
माकपा की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि दिसंबर-2018 के आंकड़ों के अनुसार वन अधिकार अधिनियम के तहत किये गए 42.19 लाख दावा के विरुद्ध 23.30 लाख दावा ही स्वीकार किया गया है. अब इस फैसले से ऐसे लोग भी प्रभावित होंगे. इसलिए प्रधानमंत्री को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए.
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