रांची: जेपीएससी नियुक्ति घोटाले में सरकार ने झारखंड लोक सेवा के तत्कालीन अध्यक्ष और एक सदस्य के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति दी है. वहीं राधा गोविंद नागेश के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति का मामला केंद्र सरकार को भेजा गया है. यह अभियुक्त अब तक सीबीआइ की पकड़ से बाहर है.
सीबीआइ ने सहायक अभियंता और कनीय अभियंता नियुक्ति घोटाले की जांच पूरी कर ली है. सीबीआइ ने इस मामले में तत्कालीन अध्यक्ष दिलीप प्रसाद, सदस्य गोपाल प्रसाद सिंह और राधा गोविंद नागेश के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति मांगी थी.
सरकार ने दिलीप प्रसाद और गोपाल प्रसाद सिंह के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति दे दी है, पर राधा गोविंद नागेश के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति के मामले को केंद्र के हवाले कर दिया है. इस मामले में सरकार की ओर से यह तर्क पेश किया गया है कि दिलीप प्रसाद और गोपाल प्रसाद दोनों राज्य सरकार के कर्मचारी रहते हुए आयोग में पदस्थापित थे. राधा गोविंद नागेश को न्यायिक सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद आयोग में सदस्य बनाया गया था, इसलिए उनके विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति का अधिकार केंद्र सरकार को है. नागेश को न तो निगरानी और न ही सीबीआइ के अधिकारी पकड़ पाये.
घोटाले की निगरानी जांच की अवधि से ही वह गायब हो गये. कोर्ट के आदेश के बाद घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ ने भी इस अभियुक्त को पकड़ने की नाकाम कोशिश की. इंजीनियरों की नियुक्ति की जांच के दौरान पाया गया है कि अध्यक्ष सहित इन सदस्यों से सुनियोजित साजिश के तहत ऐसे आवेदकों को कनीय व सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त करने की अनुशंसा की जो इस पद के योग्य नहीं थे. राधा गोविंद नागेश से साक्षात्कार के दौरान मिले अंकों में काट छांट की और मद पसंद आवेदकों को अधिक नंबर दिये.