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बुलू दा के लिए : श्रद्धांजलि …मगर तुम जैसे गये, वैसे जाता कोई नहीं, अंतिम संस्कार आज
संगीत में झारखंड-बिहार की शान बुलू दा नहीं रहे हृदय गति रुकने से हुआ निधन, अंतिम संस्कार आज संगीत के क्षेत्र में झारखंड-बिहार के शान बुलू घोष उर्फ बुलू दा (62 वर्ष) का मंगलवार को दिन के 11 बजे हृदय गति रुकने से निधन हो गया. वह कुत्ते को खाना देने छत पर गये थे, […]
संगीत में झारखंड-बिहार की शान बुलू दा नहीं रहे
हृदय गति रुकने से हुआ निधन, अंतिम संस्कार आज
संगीत के क्षेत्र में झारखंड-बिहार के शान बुलू घोष उर्फ बुलू दा (62 वर्ष) का मंगलवार को दिन के 11 बजे हृदय गति रुकने से निधन हो गया. वह कुत्ते को खाना देने छत पर गये थे, वहीं उनके सीने में दर्द हुआ. उन्होंने पत्नी मिताली घोष को यह बात इशारे से बतायी. इसके बाद उन्हें सेंटेवीटा अस्पताल ले जाया गया. वहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
रांची : बुलू दा का शव केसी राय मेमोरियल अस्पताल में रखा गया है. उनके पुत्र दिव्यान घोष बेंगलुरु व पुत्री दिव्या घोष बासु दिल्ली से मंगलवार रात पहुंचेंगे. बुधवार सुबह दस बजे हरमू मुक्तिधाम में बुलू घोष का अंतिम संस्कार किया जायेगा़ उसके पहले लोगों के अंतिम दर्शन के लिए उनका शव थड़पखना के राधा गोविंद रोड स्थित आवास में रखा जायेगा़ इधर बुलू दा के निधन की खबर पूरे झारखंड-बिहार में आग की तरह फैल गयी. जिसने भी सुना वह सहसा विश्वास नहीं कर सका.
वेटनरी कॉलेज से कार्यक्रम की शुरुआत की और
वहीं दी अंतिम प्रस्तुति : फिल्म निर्माता अनिल सिकदर ने बताया कि बुलू-पापा आकेस्ट्रा का पहला कार्यक्रम वेटनरी कॉलेज में हुआ था. उन्होंने सोमवार को सरस्वती पूजा के उपलक्ष्य में वेटनरी कॉलेज में कार्यक्रम की प्रस्तुति दी. यह कार्यक्रम बुलू घोष का अंतिम कार्यक्रम साबित हुआ़ सोमवार की रात कार्यक्रम के बाद वह यूनियन क्लब आये थे और रात का खाना वहीं खाया था़
वर्ष 1975 से संगीत के क्षेत्र में आये थे बुलू दा
बुलू घोष 1975 से संगीत के क्षेत्र में आये. उनके मित्र आनंद जालान ने बताया कि वह अप्सरा व आर्या होटल में आर्केस्ट्रा किया करते थे. बाद में बुलू-पापा आर्केस्ट्रा के नाम से खुद का आर्केस्ट्रा बना लिया. वह झारखंड-बिहार ही नहीं, पूरे इर्स्टन जोन में प्रसिद्ध हो गये थे. 1982 में उन्होंने धनबाद के सिंदरी निवासी गायिका मिताली घोष से शादी की. वर्तमान में मिताली घोष को झारखंड का लता मंगेशकर कहा जाता है़ बुलू घोष ने नागपुरी, भोजपुरी, खोरठा, बांग्ला आदि फिल्मों में संगीत भी दिया था़ वह झारखंड फिल्म निगम के तकनीकी सलाहकार समिति के सदस्य भी थे़
आरडी बर्मन के फैन थे शोले की थीम पसंद थी
बुलू घोष प्रसिद्ध संगीतकार आरडी बर्मन के फैन थे. वह कार्यक्रम की शुरुआत आरडी बर्मन के संगीत व शोले की थीम से करते थे. यह थीम लोगों के साथ उन्हें भी काफी पसंद थी. उन्होंने नागपुरी फिल्म सजना अनाड़ी, प्यार तो होई गेलक, उलगुलान सहित कई फिल्मों में संगीत दिया था. उन्होंने बीप्स अोडियो विजुअल रिकॉडिंग स्टूडियो सह म्यूजिक इंस्टीट्यूट भी खोला था. उनके निधन की सूचना पर आनंद जालान, अनिल शिकदर, डॉ राजेश गुप्ता छोटू , समाजसेवी लौटन चौधरी, दीपक श्रेष्ठ, मनेाज शहरी, मनोज चंचल, नंदलाल नायक, राजीव सिन्हा सहित कई लाेग उनके आवास पहुंचे थे़
17 वर्ष की उम्र में संगीत के क्षेत्र में आये
बुलू-पापा ग्रुप के बुलू घोष ने महज 17 वर्ष की उम्र में संगीत के क्षेत्र में प्रवेश किया. 1972 में वह पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम संगीत में भी सक्रिय रहे. संगीत परफॉर्मेंस की बात करें, तो बुलू घोष ने अपने छोटे भाई पापा के साथ इसकी शुरुआत की. तब वे माउथ ऑरगेन और गिटार बजाया करते थे. प्रोफेशनल तरीके से इन्होंने अपने छोटे भाई पापा और अन्य दो साथियों के साथ मिल कर 70 के दशक में बीटल्स ग्रुप की शुरुआत की. आगे चल कर यह जोड़ी अविभाजित बिहार और फिर झारखंड में बुलू-पापा ग्रुप के नाम मशहूर हुई.
वह बुलू घोष ही थे, जिन्होंने 1979 में संगीत के नये वाद्ययंत्र जैसे इको माइक, इलेक्ट्रिक ऑरगेन व सिन्थेसाइजर आदि को एकसाथ जोड़ा. हालांकि उस समय प्रचार तंत्र आज की तरह मजबूत नहीं था, लेकिन उनकी लोकप्रियता ने उन्हें शिमला, दार्जिलिंग, चेन्नई, बंगाल, ओड़िशा तक पहुंचाया. रांची जैसे शहर में उन्होंने रिकॉर्डिंग स्टूडियो को न केवल स्थापित किया, बल्कि उसे अलग पहचान दिलायी. बुलू घोष व टीम से प्रशिक्षित आज कई लोग बॉलीवुड सहित देश-विदेश के कई शहरों में सेवाएं दे रहे हैं. 1997 में जब नागपुरी फिल्म निर्माण का दौर शुरू हुआ, तो यही वह शख्सियत थे, जिन्होंने संगीत तकनीक के हर स्वरूप में अपनी सेवा दी.
नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने जताया शोक
नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने बुलू घाेष के निधन पर शोक जताया है. कहा कि झारखंड और बिहार के संगीत जगत के एक चमकते सितारे का असमय अंत हो गया. वे बुलू दा को उनके शुरुआती िदनों से जानते थे. वे जितने बेहतरीन संगीतकार थे, उतने ही बेहतर इंसान भी थे. उनके चले जाने से झारखंड-बिहार के संगीत जगत को भारी क्षति हुई है.
श्रद्धांजलि …मगर तुम जैसे गये, वैसे जाता काेई नहीं
हेमंत गुप्ता
हतप्रभ हूं मैं. बुलू दा के आकस्मिक निधन का समाचार सुन कर कम से कम छह लोगों से संपर्क किया कि शायद खबर गलत हो, परंतु नियति पर किसका जोर चलता है. मुझे याद आ रहा है 70 का दशक, बुलू पापा समूह के उदय का. चार बिल्कुल नये कलेवर के युवाओं के समूह के नेतृत्वकर्ता-बुलू दा माउथ आर्गन बजाते थे. फिर स्पैनिश गिटार पर महारत हासिल की और अविभाजित बिहार के संगीत पटल पर बिजली की भांति छा गये. शोले पिक्चर का सिग्नेचर धुन, महबूबा-महबूबा गाने में उनकी जादुई आवाज, बालिका वधू के गाने में उनका अपनापन पूरे राज्य को दीवाना बना कर रख दिया था.
बप्पी लहरी के गीत अभी-अभी थी दोस्ती पर गिटार के साथ उनका प्रयोग लोकलुभावन था. पागलों की भांति उनके स्टेज प्रोग्राम को देखा जाता था. बुलू दा नित नये-नये प्रयोग को अंजाम देते रहे. प्रख्यात गायिका निलिमा ठाकुर, सेक्सोफोन वादक शाैकत जी और न जाने कितने कलाकारों की योग्यता को उन्होंने जाना-समझा, परखा और मौका दिया. उनकी धर्मपत्नी मिताली और वे एक-दूसरे के पूरक बन गये थे. उनके संगीत का असर आमजन को झकझोर देता था.
बुलू दा ने सर्वप्रथम होटल अप्सरा एवं आर्या में शाम को कार्यक्रम देना प्रारंभ किया. बिहार-झारखंड का चमकता सितारा, जिनकी चमक से सारे लोग अभिभूत रहे, मेरा उनसे व्यक्तिगत पारिवारिक संबंध रहा. वे हमारे सुख-दु:ख के साथी थे. उनके यादगार कार्यक्रमों का हम सभी को इंतजार रहता था. आरडी बर्मन नाइट का प्रत्येक वर्ष आयोजन होता था, जिसका वह बेहतरीन निर्देशन करते थे. लिखने को तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है उन पर, परंतु दिल के कोने में उद्गार जगे, तो बुलू दा को श्रद्धाजंलि स्वरूप कुछ यादगार लम्हे सभी पाठकों के साथ बांट रहा हूं.
यों तो हमेशा शहर में, रहने को आता कोई नहीं
मगर तुम जैसे गये वैसे जाता कोई नहीं
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