रांची: भारत में प्रतिवर्ष 92 हजार करोड़ रुपये का कृषि उत्पाद फसल कटाई और विपणन की प्रक्रिया के बीच बर्बाद हो जाता है. रसोईघर में खाद्य सामग्री के भंडारण, पकाने और भोजन करने के दौरान कितनी बर्बादी होती है, इसका तो कोई आकलन ही नहीं किया जाता है. हम ज्यादा बर्बादी के लिए ही ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं.
यह बातें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के सहायक महानिदेशक डॉ एसएन झा ने बुधवार को दो दिवसीय वार्षिक कार्यशाला में कही. बिरसा कृषि विवि में प्लास्टिकल्चर अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की ओर से कार्यशाला का आयोजन किया गया है.
डॉ झा ने कहा कि देश में किसानों की आय दोगुना करने की बात करने के बजाय उनका लाभ दोगुना करने की बात होनी चाहिए, क्योंकि यदि आय दोगुनी होने के साथ-साथ कृषि की लागत भी दोगुनी हो गयी, तो किसानों की स्थिति नहीं सुधरेगी. इसलिए कृषि की लागत घटाने और कृषि उत्पादों की बर्बादी न्यूनतम करने की रणनीति पर काम होना चाहिए. ऐसा करने से भी किसानों की आमदनी और लाभ में काफी वृद्धि हो सकती है.
डॉ झा ने कहा कि नेट शेड, ग्रीन हाउस, प्लास्टिक मल्चिंग आदि द्वारा संरक्षित खेती से उत्पादित सब्जी में कीटनाशी का अंश काफी मात्रा में रहता है. उन्होंने कहा कि विवि की गतिविधि, प्रदर्शन और उपलब्धि के आधार पर आइसीएआर रैंकिग करेगा और उस रैंकिग के आधार पर ही भविष्य में विवि को अनुदान और सहयोग मिलेगा. इसके लिए वैज्ञानिकों को सचेत हो जाना चाहिए. विवि के कुलपति डॉ पी कौशल ने कहा कि प्लास्टिक आज हमारे दैनिक जीवन का आवश्यक अंग हो गया है. प्लास्टिकल्चर संबंधी नयी एवं अनुकूल प्रौद्योगिकी को नये उद्यमियों तक पहुंचाने का प्रयास होना चाहिए. परियोजना समनव्यक डॉ आरके सिंह ने कहा कि भारत में प्लास्टिक की कुल वार्षिक खपत लगभग 14 मिलियन टन तथा प्रति व्यक्ति खपत 10 किलो है, जबकि विकसित देशों में प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत 109 किलो है. मौके पर केंद्रीय पोस्ट हार्वेस्ट अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना के निदेशक डॉ आरके गुप्ता, केंद्रीय कृषि अभियंत्रण संस्थान, भोपाल के पूर्व निदेशक डॉ अविनाश कुमार, बीएयू के शोध निदेशक डॉ डीएन सिंह तथा कार्यशाला आयोजन सचिव डीके रूसिया ने भी अपने विचार रखे. इस आयोजन में देश के 14 कृषि विवि व आइसीएआर शोध संस्थानों से लगभग 60 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं.