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पैथोलॉजी जांच का खेल: पैकेज के नाम पर मरीजों से कराते हैं अनावश्यक जांच

रांची: पैथोलॉजिकल जांच में कमीशन के लिए डॉक्टर (सभी डॉक्टर नहीं) मरीजों को लूटने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं. मरीजों से अनावश्यक जांच भी करायी जाती है. जिस जांच की आवश्यकता नहीं, वह भी करा ली जाती है. इससे मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. एक डाॅक्टर ने बताया, कोई मरीज […]

रांची: पैथोलॉजिकल जांच में कमीशन के लिए डॉक्टर (सभी डॉक्टर नहीं) मरीजों को लूटने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं. मरीजों से अनावश्यक जांच भी करायी जाती है. जिस जांच की आवश्यकता नहीं, वह भी करा ली जाती है. इससे मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. एक डाॅक्टर ने बताया, कोई मरीज अगर रुमेटोयड अर्थराइटिस की समस्या लेकर आता है, तो उसके लिए आरए फैक्टर, सीआरपी या इएसआर और एसीसीपी की जांच ही काफी है. काफी कुछ इन्हीं जांच में पता चल जाता है.

पर कमीशन के चक्कर में कुछ डॉक्टर (सभी नहीं) पैकेज में शामिल 60 से 75 तरह की जांच कराने की सलाह दे देते हैं. किडनी, लिवर, थायराइड, कॉलेस्ट्राल, सुगर, सोडियम, पोटाशियम आदि की भी जांच लिख देते हैं. एक पैथोलॉजिस्ट के अनुसार, रुमेटोयड अर्थराइटिस की जांच में 250 से 500 रुपये (मुनाफा के साथ) खर्च आता है. पर मरीज को पैकेज में शामिल पूरी जांच के लिए 1500 से 5000 रुपये देने पड़ते हैं (यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज को किस तरह की पैकेज जांच के लिए भेजा गया है).

वहीं अगर मरीज एनिमिया से पीड़ित है, तो हिमोग्लोबीन, आरबीसी व ब्लड स्लाइड जांच से काफी हद तक जानकारी मिल जाती है. इस जांच में 100 से 150 (मुनाफा के साथ) रुपये तक खर्च आता है. लेकिन पैकेज में शामिल अनावश्यक जांच के कारण मरीज को 1400 से 3,000 रुपये देने पड़ जाते हैं.

पैकेज में डॉक्टर को 40 से 45 फीसदी कमीशन
पैकेज की जांच में डाॅक्टर को 40 से 45 फीसदी तक कमीशन मिलता है. कॉरपोरेट लैब व लैब संचालक इसके लिए जांच पैकेज बना कर रखते हैं. हर बीमारी की प्रोफाइल जांच की दर अलग है. डाॅक्टर को इसकी सूचना कैटलॉग के माध्यम से दे दी जाती है.
90% बीमारी में तुरंत जांच आवश्यक नहीं
शहर के एक अन्य प्रतिष्ठित पैथोलॉजिस्ट ने बताया, डॉक्टर तीन प्रकार से बीमारी को डाइग्नोस कर सकते हैं. क्लिनिकली, पैथोलॉजिकल व रेडियोलॉजिकल. लेकिन आज कल क्लिनिकली डाइग्नोस पर ध्यान नहीं दिया जाता है. मरीज के अस्पताल या क्लिनिक पहुंचते ही दो-चार हजार की जांच लिख दी जाती है. यह आज के मेडिकल पेशा का ट्रेंड बन गया है. 90 फीसदी बीमारी में तुरंत जांच की आवश्यकता होती ही नहीं है. उन्होंने यहां तक कह दिया है कि हमारे पेशा की बात है, क्या कहें. बदनामी अपने परिवार की ही होती है, लेकिन डॉक्टरों को समझना चाहिए.

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