रांची: झारखंड हाइकोर्ट में बुधवार को रांची-जमशेदपुर राष्ट्रीय राजमार्ग ( एनएच) के फोर लेनिंग कार्य की धीमी प्रगति को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए फोर लेनिंग कार्य की धीमी गति पर और संवेदक कंपनी द्वारा तय लक्ष्य से कम काम करने पर नाराजगी जतायी.
संवेदक कंपनी की कार्यशैली पर नाराजगी जताते हुए खंडपीठ ने मामले की जांच का आदेश दिया. खंडपीठ ने केंद्र सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ सरफेस ट्रांसपोर्ट, कॉरपोरेट अफेयर्स व डायरेक्टर ऑफ स्पेशल फ्रॉड इंवेस्टिगेशन को प्रतिवादी बनाते हुए नोटिस जारी करने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
खंडपीठ ने उक्त प्रतिवादी को रांची-जमशेदपुर (एनएच-33) फोर लेनिंग कार्य से संबंधित मामले की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 नवंबर की तिथि निर्धारित की.
पूर्व में कोर्ट द्वारा दिये गये आदेश के अनुसार, प्रतिवादी केनरा बैंक की अोर से शपथ पत्र दाखिल नहीं किये जाने तथा संवेदक कंपनी की अोर से अपने उच्च अधिकारियों की संपत्ति का ब्योरा नहीं दिये जाने पर खंडपीठ ने नाराजगी जतायी. खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि रांची-जमशेदपुर (एनएच-33) पथ पर गैर योजनाबद्ध तरीके से बनाये गये स्पीड ब्रेकर क्यों नहीं हटाये गये. जनवरी 2011 से अब तक उक्त एनएच पर कितनी दुर्घटनाएं हुई और कितने लोगों की माैत हुई है. बुंडू में सेवानिवृत्त डीएसपी का मकान अतिक्रमण में आ रहा है, तो उसे अब तक क्यों नहीं हटाया गया. सरकार को दुर्घटनाअों से संबंधित विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया.
एनएचएआइ ने दी थी जानकारी
इससे पूर्व नेशनल हाइवे अथॉरिटी अॉफ इंडिया (एनएचएआइ) की अोर से खंडपीठ को बताया गया कि संवेदक कंपनी के कार्य में कोई प्रगति नहीं है. उसके द्वारा निर्धारित मासिक लक्ष्य को पूरा नहीं किया गया है. एनएच-33 की मरम्मत के लिए तीन संवेदकों की नियुक्ति की गयी है. सुनवाई के दौरान वन विभाग, पथ निर्माण विभाग की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया. कोर्ट के पूर्व के आदेश के आलोक में संवेदक कंपनी रांची एक्सप्रेस वे की अोर से अपने उच्च अधिकारियों की संपत्ति का ब्योरा भी नहीं दिया गया. उल्लेखनीय है कि एनएच-33 के रांची-जमशेदपुर मार्ग की जर्जर स्थिति व फोर लेनिंग कार्य की धीमी गति को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.