संबंधित क्षेत्र में अपनी करीब तीन माह की पड़ताल के बाद संजय ने मंत्रालय से पश्चिमी सिंहभूम जिले में आदिवासियों की बदतर स्थिति की शिकायत की थी तथा उचित कदम उठाने का आग्रह किया था. लिखा गया था कि जिले के किरीबुरू, मेघाहातुबुरु, बड़ाजामदा, गुआ, कोटगढ, जेटेया, बड़ापासिया, लोकासाई, बालिझरण, दिरीबुरु, बराईबुरु, टाटीबा, पेटेदा, पोखरपी, कादाजामदा, महूदी व नोवामुंडी समेत अन्य गांवों में आदिवासियों की स्थिति चिंताजनक है.
सारंडा के आदिवासी बड़ी मुश्किल से जिंदगी गुजार रहे हैं. सारंडा एक्शन प्लान शुरू होने के बाद भी स्थिति नहीं बदली है. लगभग सभी जनजातीय बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. लौह अयस्क वाले इलाके में पीने के पानी की भी समस्या है. अस्पतालों में डॉक्टर व स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं. जीने के लिए पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर इन अादिवासियों की हालत देख कर लगता है कि इस क्षेत्र में सरकार व सिस्टम पूरी तरह फेल है. मंत्रालय द्वारा संज्ञान लिये जाने तथा राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखे जाने पर संजय ने कहा कि मंत्रालय की इस सक्रियता से बेहतरी की उम्मीद जगी है.