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दीक्षांत समारोह: ऐसे जीयें, जैसे कल ही मरनेवाले हैं

रांची: दोस्तों आपको मैं सफल जीवन जीने और मरने के बाद भी लोगों की यादों में जिंदा रहने के कुछ टिप्स देता हूं. ऐसे जीयें, जैसे कल ही आप मरने वाले हों. इस कल्पना मात्र से आप अपने प्रति गंभीर हो उठेंगे. किसी चीज को सीखते वक्त आप यह सोचें कि आप सदा जीवित रहेंगे. […]

रांची: दोस्तों आपको मैं सफल जीवन जीने और मरने के बाद भी लोगों की यादों में जिंदा रहने के कुछ टिप्स देता हूं. ऐसे जीयें, जैसे कल ही आप मरने वाले हों. इस कल्पना मात्र से आप अपने प्रति गंभीर हो उठेंगे.

किसी चीज को सीखते वक्त आप यह सोचें कि आप सदा जीवित रहेंगे. ऐसा सोचने पर आप चीजों को संजीदगी से सीखेंगे. हर आदमी को अपना मृत्युनामा लिखना चाहिए. इसमें जिक्र होना चाहिए कि आप लोगों के बीच किस तरह याद रहना चाहते हैं. कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है तथा ईमानदार व साफ मंशा रखने से आप जीत की ओर ही बढ़ेंगे. बीआइटी के 24वें दीक्षांत समारोह में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी) डॉ अरूप राय चौधरी ने उक्त बातें कहीं. डॉ चौधरी ने कहा कि 21वीं सदी का अशिक्षित वह नहीं है, जो लिख-पढ़ नहीं सकता. बल्कि वह है, जो सही चीज सीखने में सक्षम नहीं है.

जो डर गया समझो मर गया : बीआइटी मेसरा से ही 1978 में इंजीनियरिंग व इसके बाद आइआइटी दिल्ली से पीएचडी करने वाले डॉ चौधरी ने युवाओं को कहा कि जो डर गया, समझो मर गया और कल करे सो आज कर, जैसी नसीहत भी दी. कहा कि हमेशा स्मार्ट व जानकार लोगों के साथ रहें. इससे आपका ज्ञान व सीखने की क्षमता विस्तृत होगी. समारोह के दौरान राज्यपाल सह कुलाधिपति डॉ सैयद अहमद ने भी विद्यार्थियों को संबोधित किया. बीआइटी के कुलपति डॉ मनोज कुमार मिश्र ने संस्थान की उपलब्धियों का विस्तार से जिक्र किया. इस अवसर पर मुख्य सचिव आरएस शर्मा, आइएएस ए के पांडे, आरएस पोद्दार, रांची विवि के कुलपति डॉ एलएन भगत, रिम्स निदेशक डॉ तुलसी महतो , डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ एसएस अख्तर सहित अन्य उपस्थित थे.

सामाजिक समरसता व समानता जरूरी : राज्यपाल : राज्यपाल सह कुलाधिपति डॉ सैयद अहमद ने कहा कि विकास का अस्तित्व सामाजिक समानता व समरसता के बगैर मुमकिन नहीं है. समाज के विभिन्न तबकों को रोजगार प्रदान करने के लिए नये-नये अवसरों का सृजन जरूरी है. देश की महत्वपूर्ण संपत्ति सिर्फ इसका भौगोलिक क्षेत्र व प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं, बल्कि मानव संसाधन भी इसका अहम घटक है. इसे तैयार करने में बीआइटी जैसे संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका है.

जिसे चाहो, वही मुरगा मिलता था : बीआइटी मेसरा से 1978 में पासआउट डॉ चौधरी ने बीआइटी की अपनी यादें ताजा करते हुए एक प्रसंग सुनाया. कहा कि बीआइटी मोड़ पर एक सरदार ढाबा हुआ करता था. वहां जाने पर सरदार जी एक चारपाई देते थे. ग्राहक उस पर लेट जाता था. वहां चारों ओर मुरगे घूमते रहते थे. आप जिस किसी मुरगे की ओर इशारा कर दें, ढाबे में उसी मुरगे को काट कर पकाया जाता था. आज आते वक्त मुङो वहां पक्की बिल्डिंग नजर आयी.

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