आंगनबाड़ी केंद्रों का खुलना तीन से लेकर छह वर्षीय बच्चों के लिए जरूरी है, जिन्हें खिचड़ी सहित अन्य पोषाहार केंद्र पर ही पका कर खिलाया जाता है. पर इसमें लापरवाही बरती जा रही है. नामकुम प्रखंड के टाटी पूर्वी पंचायत स्थित टाटी-थ्री का केंद्र दिन के 10 बजे बंद मिला. उसी तरह सिलवे पंचायत के मानकी ढ़ीपा टोली तथा बाहेया के पास करमा ढ़ीपा टोली के आंगनबाड़ी केंद्र भी क्रमश: 10.10 बजे तथा 10.30 बजे बंद मिले. इसी प्रखंड के सिलवे पंचायत का उलातू आंगनबाड़ी केंद्र भी 10.40 बजे बंद मिला. बंद मिले सभी केंद्रों के आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि आंगनबाड़ी खुलने का दिन या समय तय नहीं है. मानकी ढ़ीपा के लोगों ने कहा कि बच्चे केंद्र पर आते हैं, पर केंद्र बंद देख लौट जाते हैं. उधर अनगड़ा प्रखंड के हेसल मझला टोली का आंगनबाड़ी केंद्र करीब 11 बजे खुला तो मिला, पर वहां सिर्फ पांच बच्चे थे. सेविका रीता देवी ने कहा कि करीब 15 बच्चे आते हैं, पर आज कम हैं. अटेंडेंस रजिस्टर मांगे जाने पर रीता ने कहा कि मंथली रिपोर्ट बनानी है, इसलिए दोनों रजिस्टर घर पर है. इस केंद्र की महिलाअों (गर्भवती) की तौल मशीन वर्ष 2007 से खराब है. बच्चों की तौैल मशीन भी सही वजन नहीं बताती. वहीं मेडिसिन किट चालू वर्ष में उपलब्ध नहीं कराया गया है.
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बंद रहते हैं आंगनबाड़ी केंद्र, मॉनिटरिंग सिस्टम फेल
समाज कल्याण विभाग बच्चों, किशोरियों तथा गर्भवती व धात्री महिलाओं को पोषाहार उपलब्ध कराता है. आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये संचालित यह योजना पूरक पोषाहार कार्यक्रम (सप्लिमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम या एसएनपी) कहलाती है. केंद्र प्रायोजित उक्त योजना पर राज्य गठन के बाद से अब तक 3,442 करोड़ रुपये(चालू वित्तीय वर्ष के भी पूरे बजट को मिला […]
समाज कल्याण विभाग बच्चों, किशोरियों तथा गर्भवती व धात्री महिलाओं को पोषाहार उपलब्ध कराता है. आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये संचालित यह योजना पूरक पोषाहार कार्यक्रम (सप्लिमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम या एसएनपी) कहलाती है. केंद्र प्रायोजित उक्त योजना पर राज्य गठन के बाद से अब तक 3,442 करोड़ रुपये(चालू वित्तीय वर्ष के भी पूरे बजट को मिला कर) खर्च किये जा चुके हैं. पर कैलोरी व प्रोटीन पर हुए इस खर्च के बावजूद ग्रासरूट पर कुपोषण बरकरार है. इससे आंगनबाड़ी केंद्रों, उनकी कार्य प्रणाली, सेविका व सहायिका की कार्यशैली सहित महिला पर्यवेक्षिका (लेडी सुपरवाइजर), सीडीपीओ, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी व विभाग के मॉनिटरिंग सिस्टम (अनुश्रवण तंत्र) पर सवाल खड़े होते रहे हैं.
रांची: आंगनबाड़ी केंद्रों की मॉनिटरिंग का सिस्टम रांची जिले में ही फेल कर गया है. व्यवस्था इस कदर चौपट है कि आंगनबाड़ी केंद्र खुल ही नहीं रहे हैं. नामकुम व अनगड़ा प्रखंड के पांच आंगनबाड़ी केंद्रों में से चार निरीक्षण के दौरान बंद मिले. जो एक खुला मिला, वहां बुनियादी सुविधाएं नहीं है.
आंगनबाड़ी केंद्रों का खुलना तीन से लेकर छह वर्षीय बच्चों के लिए जरूरी है, जिन्हें खिचड़ी सहित अन्य पोषाहार केंद्र पर ही पका कर खिलाया जाता है. पर इसमें लापरवाही बरती जा रही है. नामकुम प्रखंड के टाटी पूर्वी पंचायत स्थित टाटी-थ्री का केंद्र दिन के 10 बजे बंद मिला. उसी तरह सिलवे पंचायत के मानकी ढ़ीपा टोली तथा बाहेया के पास करमा ढ़ीपा टोली के आंगनबाड़ी केंद्र भी क्रमश: 10.10 बजे तथा 10.30 बजे बंद मिले. इसी प्रखंड के सिलवे पंचायत का उलातू आंगनबाड़ी केंद्र भी 10.40 बजे बंद मिला. बंद मिले सभी केंद्रों के आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि आंगनबाड़ी खुलने का दिन या समय तय नहीं है. मानकी ढ़ीपा के लोगों ने कहा कि बच्चे केंद्र पर आते हैं, पर केंद्र बंद देख लौट जाते हैं. उधर अनगड़ा प्रखंड के हेसल मझला टोली का आंगनबाड़ी केंद्र करीब 11 बजे खुला तो मिला, पर वहां सिर्फ पांच बच्चे थे. सेविका रीता देवी ने कहा कि करीब 15 बच्चे आते हैं, पर आज कम हैं. अटेंडेंस रजिस्टर मांगे जाने पर रीता ने कहा कि मंथली रिपोर्ट बनानी है, इसलिए दोनों रजिस्टर घर पर है. इस केंद्र की महिलाअों (गर्भवती) की तौल मशीन वर्ष 2007 से खराब है. बच्चों की तौैल मशीन भी सही वजन नहीं बताती. वहीं मेडिसिन किट चालू वर्ष में उपलब्ध नहीं कराया गया है.
विभाग का दावा फेल
समाज कल्याण विभाग व निदेशालय राज्य भर के 38432 आंगनबाड़ी केंद्रो के लिए हर वर्ष मेडिसिन किट, प्री-स्कूल किट, बच्चों व महिलाअों की तौल मशीन सहित पकाने-खाने के बर्तन के लिए बजट निर्धारित करता है. दावा किया जाता है कि सभी केंद्रों पर उक्त सभी उपकरण व सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं. पर आंगनबाड़ी केंद्रों में तौल मशीन का 10 वर्षों से खराब रहना तथा कई सवाल खड़े करता है. गौरतलब है कि पोषाहार (करीब 450 करोड़ रु), सेविका व सहायिका को मानदेय, केंद्रों का किराया, विभिन्न किट व तौल मशीन (जहां नहीं है या खराब है), जागरूकता, प्रचार-प्रसार व प्रशिक्षण सहित अांगनबाड़ी से जुड़ी अन्य योजनाअों पर हर वर्ष 900 करोड़ रु. से अधिक खर्च किये जाते हैं.
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