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विवि सेवानिवृत्त शिक्षक 22 को काला दिवस मनायेंगे
रांची : रांची विवि सेवानिवृत्त शिक्षक संघ की बैठक शुक्रवार को डॉ सुशीला मिश्रा की अध्यक्षता में संघ कार्यालय में हुई. बैठक में शिक्षकों ने कहा कि विवि प्रशासन सेवानिवृत्त शिक्षकों के मामले में कोताही बरत रहा है. ग्रीवांस सेल की अब तक एक भी बैठक नहीं बुलायी गयी, ताकि सेवानिवृत्त शिक्षक अपनी समस्या उक्त […]
रांची : रांची विवि सेवानिवृत्त शिक्षक संघ की बैठक शुक्रवार को डॉ सुशीला मिश्रा की अध्यक्षता में संघ कार्यालय में हुई. बैठक में शिक्षकों ने कहा कि विवि प्रशासन सेवानिवृत्त शिक्षकों के मामले में कोताही बरत रहा है.
ग्रीवांस सेल की अब तक एक भी बैठक नहीं बुलायी गयी, ताकि सेवानिवृत्त शिक्षक अपनी समस्या उक्त सेल में दर्ज करा सकें. शिक्षकों ने कहा कि पांचवें व छठे वेतनमान के एरियर का भुगतान शीघ्र किया जाये. विवि शिक्षक अपनी मांगों को लेकर 22 अगस्त का काला दिवस व पांच सितंबर को जेल भरो आंदोलन चलायेंगे. शिक्षकों ने संघ कार्यालय में कंप्यूटर व प्रिंटर की व्यवस्था कराने की मांग विवि प्रशासन से की है.
साथ ही राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध करायी गयी राशि का पूर्ण विवरण जारी किया जाये. बैठक में डॉ बबन चौबे, डॉ एमपी शर्मा, डॉ जीएस शर्मा, डॉ एचएस पांडेय, डॉ अमल चौधरी, डॉ सीके शुक्ला, डॉ ए विश्वास, डॉ वीएस गिरि, डॉ एके बरनवाल, डॉ सुधीर वर्मा, डॉ बीके सिन्हा, डॉ मिथिलेश, डॉ जेएन प्रसाद, डॉ रतन प्रकाश, डॉ एनआर राम, डॉ ए होरो आदि उपस्थित थे.
डॉ रामदयाल मुंडा झारखंड के रवींद्रनाथ टैगोर थे : मेघनाथ
रांची : पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा की 78वीं जयंती के उपलक्ष्य में रुम्बुल द्वारा जनजातीय शोध संस्थान में डॉ मुंडा के कार्य के विभिन्न आयामों पर चर्चा के लिए दो दिवसीय सेमिनार की शुरुआत हुई़ इसमें डॉ रामदयाल मुंडा के करीब रहे व उनके जीवन पर फिल्म बनाने वाले डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर मेघनाथ ने कहा कि डॉ मुंडा उपनिवेशिक मुक्ति के उदाहरण थे.
वे अमेरिका में रहे, लेकिन कभी अपनी पहचान को नहीं भूले़ वहां भी आदिवासी कला–संस्कृति को पहचान दिलायी़ वे झारखंड के रवींद्रनाथ टैगोर थे़ वे पूरी दुनिया से अच्छी चीजें लेते थे, लेकिन अपनी संस्कृति कभी नहीं छोड़ी़ बदलते समय में आदिवासियों के पास तीन रास्ते है़ं वे पुराने तौर-तरीकों के अनुसार जीयेें, स्वयं को तथाकथित मुख्यधारा में ढाल लें अथवा दूसरों से अच्छी चीजों लें, पर अपनी संस्कृति न छोड़ें. उन्होंने कहा कि आज धर्मांतरण का विषय चर्चा में हैं, पर डॉ मुंडा इस पर पहले ही अपने विचार व्यक्त कर चुके थे.
जिस तरह आदिवासियों के ईसाई धर्म में जाने को उचित नहीं मानते थे, उसी तरह हिंदुओं द्वारा उनका धर्मांतरण भी गलत ठहराते थे़ इसलिए उन्होंने ‘आदि धर्म’ में आदिवासियों के विश्वास के विस्तार से लिखा़ वे भाषा, कला-संस्कृति, धार्मिक विश्वास, राजनीति, सामाजिक हर क्षेत्र की व्यापक जानकारी रखते थे़ युवाओं को इससे प्रेेरणा लेने की जरूरत है़
रांची विवि में एंथ्रोपोलोजी विभाग के फैकल्टी डॉ कंचन रॉय ने कहा कि डॉ मुंडा ने साहित्य को एक स्तर दिया़ उनके कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत है़ वे पहनावे से लेकर अपने घर का डिजाइन भी खुद तैयार करते थे़ उन्होंने गीत, फिल्म, कविता, कला-संस्कृति, हर क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ी़ प्रोफेसर, डॉ पीके सिंह ने कहा कि डॉ मुंडा ने अपनी भाषा-संस्कृति पर काफी बल दिया़
डॉ उमेशानंद तिवारी ने कहा कि डॉ रामदयाल मुंडा अपने आप में एक संस्थान थे़ समाज के बौद्धिक खुराक थे़ उन्होंने रांची में सरहुल जुलूस की शुरुआत की़ डॉ. मीना जायसवाल ने कहा कि विद्यार्थी उनके आदर्शों पर चल कर उनके सपनों को पूरा कर सकते है़ं कई शोधार्थियों ने अपने पत्र प्रस्तुत किये़ डॉ रामदयाल मुंडा पर बनी फिल्म ‘जे नाची से बांची’ का प्रदर्शन भी हुआ़ इस अवसर पर गुंजल इकिर मुंडा, प्रो जो हिल, प्रो संजय बसु मल्लिक व अन्य उपस्थित थे़
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