नयी दिल्ली/रांची : शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने पिता के निधन के 28 वर्ष बाद उनके बैंक खाते का विवरण मांगने संबंधी एक व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया है. साथ ही कहा कि बैंक को सेवा में कमी का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह अनुरोध बहुत लंबे समय बाद किया गया है.
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने झारखंड निवासी शिव बचन झा की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया. याचिका राज्य आयोग के एक आदेश के खिलाफ दायर की गयी थी. राज्य आयोग ने शिव बचन झा की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने अपने पिता के खाते के बारे में भारतीय केंद्रीय बैंक को निर्देश देने की मांग की थी. लेकिन, आयोग ने उसकी मांग को मानने से इनकार कर दिया था.
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केंद्रीय उपभोक्ता आयोग की अध्यक्ष सदस्य रेखा गुप्ता ने कहा, ‘लगभग 28 वर्ष की चूक के बाद याचिकाकर्ता प्रतिवादी (बैंक) को रिकाॅर्ड उपलब्ध नहीं होने पर सेवा में कमी का दोषी नहीं ठहरा सकता.’ झा ने जो शिकायत की थी, उसके अनुसार, वर्ष 1984 में गुजरे उनके पिता का बैंक में बचत खाता था. झा को अगस्त 2011 में पासबुक मिली, जिसमें पाया गया कि खाते में 35 हजार रुपये पड़े हैं. इसके बाद वह बैंक गये.
बैंक से अपने पिता के खाते के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी. बैंक ने विस्तृत जानकारी देने से इनकार कर दिया. इसमें यह भी कहा गया कि मामला खाताधारी की मृत्यु के 28 वर्ष बाद दायर किया गया है और बैंक को इतने लंबे समय तक रिकाॅर्ड को संभाल कर रखने की जरूरत नहीं है.
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जिला फोरम ने हालांकि बैंक को झा को सूचना देने और पांच हजार रुपये मुआवजा और 10 हजार रुपये खर्च के रूप में देने के निर्देश दिये थे. लेकिन, राज्य आयोग ने जिला फोरम के आदेश को खारिज कर दिया और झा को राहत देने से इनकार कर दिया. इसके बाद शिव बचन झा ने शीर्ष उपभोक्ता आयोग का रुख किया था.