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एमबीबीएस में लगातार बढ़ी रही है छात्राओं की संख्या

रांची : एमबीबीएस करनेवाली छात्राओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. छात्रों से ज्यादा छात्राएं मेडिकल में नामांकन ले रहीं हैं. रिम्स की बात की जाये, तो यहां हर साल छात्राओं की संख्या बढ़ रही है. रिम्स स्टूडेंट सेक्शन के आंकड़ों को मानें तो वर्ष 2014 में 150 में 70 छात्राएं थी. वहीं वर्ष […]

रांची : एमबीबीएस करनेवाली छात्राओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. छात्रों से ज्यादा छात्राएं मेडिकल में नामांकन ले रहीं हैं. रिम्स की बात की जाये, तो यहां हर साल छात्राओं की संख्या बढ़ रही है.
रिम्स स्टूडेंट सेक्शन के आंकड़ों को मानें तो वर्ष 2014 में 150 में 70 छात्राएं थी. वहीं वर्ष 2015 में 150 एमबीबीएस सीट में 85 छात्राअों ने नामांकन लिया था. प्रबंधन को इस साल भी उम्मीद है कि छात्राओं की संख्या छात्राें से अधिक होगी.
छात्राओं को कम आंकते थे मेडिकल कॉलेज
देश के मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस में छात्राओं को कम आंकते थे. जानकार बताते हैं कि देश के मेडिकल कॉलेज में यह माना जाता था कि सीट के अनुपात में 20 से 25 फीसदी ही छात्राओं का सेलेक्शन होगा. रिम्स में भी पहले ऐसा ही होता रहा है, लेकिन विगत कुछ सालों से छात्राओं की संख्या तेजी से बढ़ी है. इसकी वजह से रिम्स मेंहॉस्टल की कमी हो गयी है. छात्राएं पीजी के कई विभागों में भी रुचि दिखा रहीं हैं
सर्जरी व हड्डी में पीजी कर रही है छात्राएं
एमबीबीएस ही नहीं पीजी के कई विभाग में छात्राएं रुचि दिखा रहीं हैं. पहले छात्राओं की पहली पसंद स्त्री विभाग था, वहीं अब छात्राएं सर्जरी व हड्डी विभाग में भी पोस्ट ग्रेजुएट करने लगीं हैं. रिम्स के सर्जन डॉ शीतल मलुआ ने बताया कि सर्जरी में कई छात्राएं पीजी कर रहीं हैं. कई तो बाहर की छात्राएं है. हमारे राज्य की छात्राएं भी सर्जरी में पीजी कर रही है.
हॉस्टल की कमी हो गयी है
रिम्स में हॉस्टल की कमी होने की मुख्य वजह छात्राओं का ज्यादा सेलेक्शन होना है. रिम्स के डीन डॉ आरके श्रीवास्तव ने बताया कि पहले छात्राओं के लिए 25 से 30 कमरा रखा जाता था, लेकिन अचानक छात्राएं बढ़ने लगी हैं. इससे हॉस्टल की समस्या हो गयी है.
छात्राओं की संख्या रिम्स में हर साल बढ़ रही है. यह देश के अधिकांश मेडिकल में देखने को मिल रहा है. पहले हम यही मानते थे कि अधिकतम 25 प्रतिशत छात्राओं का नामांकन होगा, लेकिन अब छात्राओं की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक हो गयी है.
डॉ बीएल शेरवाल, निदेशक रिम्स

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