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24 साल पहले तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने मुसहरों को दिया था भूमि पट्टा
घर बनवाने का िकया था वादा, पत्ते का है आशियाना हर गरीब-अमीर का एक सपना होता है. एक बंगला बने न्यारा. लेकिन, गनके की सानो कुंवर ने ऐसा कोई ख्वाब नहीं देखा था. 24 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पलामू आये. मुसहरों को जमीन का पट्टा दिया. इसके बाद सानो कुंवर ने बंगला […]
घर बनवाने का िकया था वादा, पत्ते का है आशियाना
हर गरीब-अमीर का एक सपना होता है. एक बंगला बने न्यारा. लेकिन, गनके की सानो कुंवर ने ऐसा कोई ख्वाब नहीं देखा था. 24 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पलामू आये. मुसहरों को जमीन का पट्टा दिया. इसके बाद सानो कुंवर ने बंगला तो नहीं, अपने आशियाने का सपना देखना जरूर शुरू कर दिया. पति से कहा कि अब कहीं नहीं जायेगी, गनके में ही अपना घर बना कर रहेगी. लेकिन, 24 साल बाद अब उसका सपना टूट चुका है. उसके जैसे महादलित परिवार के और भी लोग हैं, जो घोर अभावों में भीख मांग कर गुजारा करते हैं. पत्ते से बने घर में रहते हैं.
पलामू : सानो कुंवर 35 वर्ष की रही होगी, जब अपने पति के साथ चियांकी प्रखंड के गनके गांव आयी थी. यहीं रहने का मन बनाया था. आज 65 वर्ष की हो चुकी है. उसे आज भी याद है, जब 1992-93 में सरकारी महकमे के लोग यहां आये थे. बंजारों की तरह जीवन बसर करनेवाले सभी मुसहरों के नाम-पते दर्ज किये. पूछा कि कोई गांव से बाहर तो नहीं जायेगा. गांव के सभी मुसहरों ने एक स्वर में कहा था, ‘नहीं बाबू, हमलोग यहीं रहेंगे. कहीं नहीं जायेंगे.
जमीन की बंदोबस्ती करा दीजिए.’ सानो कुंवर को ठीक-ठीक समय और साल तो याद नहीं, लेकिन इतना याद है कि तब के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद दुबियाखांड आये थे. एक बड़ा समारोह हुआ था. उसी समारोह में सानो कुंवर और गांव के तमाम मुसहर समाज के लोगों को जमीन का पट्टा दिया गया. मुसहरों की खुशी का ठिकाना नहीं था, क्योंकि पट्टा देने के बाद उनसे कहा गया कि भविष्य में सबको पक्का मकान मिलेगा.
मुसहर समाज के लोग तरह-तरह के सपने सजाने लगे. लेकिन, यह खुशी ज्यादा दिन नहीं रही. पट्टा देने के बाद कोई अधिकारी या सरकारी कर्मचारी झांकने तक नहीं आया. फिर कभी कोई नेता भी नहीं आया, इस संबंध में बात करने. मुसहर समाज के लोग आज भी जमीन का पट्टा संभाल कर रखे हुए हैं कि कभी उनका भी अपना आशियाना होगा.
आज इनका जीवन पलास के पत्ते की झोपड़ी में बीतता है. पूस की कंपकंपाती रात हो या जेठ की दोपहर. सावन-भादो की घनघोर बरसात से भी पत्ते से बने घर ही इनकी रक्षा करते हैं.
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